21 फ़रवरी 2012

विश्व में अशांति का कारण है द्वेष: गोपालदास

बाला जी मंदिर में प्रवचन सुनाते हुए महंत गोपालदास ने कहा कि आज परिवार व समाज तथा विश्व में अशांति का कारण द्वेष, क्रोध तथा कामना है।
महंत जी ने कहा कि कामना से वैराग्य और संतोष दोनों का ही नाश होता है। जिस प्रकार मोर के पंख हमेशा हिलते रहते हैं। उसी प्रकार कामना ग्रस्त मनुष्य का मन भी सदा हिलता रहता है। द्वेष, क्रोध तथा कामना ही मनुष्य के समस्त दुखों का कारण हैं। पंडित जी ने कहा कि पशु दिन भर जंगल में जाकर आहार करते हैं और रात के समय आकर खूंटे से बांध दिए जाते हैं। उसी प्रकार अज्ञानी मनुष्य दिन को घर छोडकर व्यवहार के अर्थात सांसारिक क्रियाओं के फेर में फिरता रहता हैं और रात के समय घर में आ जाता हैं। इस प्रकार वह अपना सारा जीवन व्यर्थ कर देता हैं।

भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं कि हे अर्जुन जिस काल में यह पुरुष मन में स्थित संपूर्ण कामनाओं को भली भांति त्याग देता है उस काल से आत्मा से ही आत्मा में संतुष्ट हुआ स्थिर बुद्धि वाला कहा जाता है। प्रत्येक व्यक्ति में चेतन शक्ति है और वही चेतन शक्ति यदि लोभ में चली जाए तो यह मनुष्य निर्मल होते हुए भी लोभी विकारी हो जाता है तथा सदाचारी से दुराचारी हो जाता है। गीता हमारे जीवन में एक दर्पण है। आज परिवार व समाज तथा विश्व में अशांति का कारण द्वेष, क्रोध तथा कामना है।
उन्होंने कहा कि मनुष्य के जीवन में सुख-दुख दोनों आयेंगे तथा जो दुख आने पर बौखला न जाए वही गीता के अनुसार स्थित प्रज्ञ है तथा उसी को स्थायी सुख की प्राप्ति हो सकती है।

भलाई को अपनाने पर स्वत:ही मनुष्य का कल्याण संभव है। इसीलिए विद्वानों ने कहा है कि बुराई त्याग दो भलाई अपने आप आ जाएगी। भलाई के दरवाजे पर अगर बुराई दस्तक देती है तो भलाई को अपमानित होना पडता है। लेकिन अगर बुराई के दरवाजे पर भलाई दस्तक दे तो वह बुराई को अपनी ओट में छुपा लेती हैं। सच कहा जाए तो इंसान मरने के बाद भी भलाई और बुराई के अलावा दुनिया से कुछ नहीं लेकर जाता है। समाज में इंसान का व्यवहार जैसा होता है मरने के बाद उसको वैसा ही कहा जाता है।