17 जनवरी 2012

रुकना जिन्हें मंजूर नहीं

'रुक जाना नहीं तू कहीं हार के....', शायद इन्हीं पंक्तियों से प्रेरणा लेते हैं डॉ. यू.एन.बी.राव। आंध्र प्रदेश के एक पिछड़े गांव टेकली में जन्मे डॉ. राव एक मध्यमवर्गीय परिवार से हैं। उनकी प्राथमिक शिक्षा गांव के ही गवर्नमेंट स्कूल से हुई। शुरू से ही मेधावी रहे डॉ. राव हमेशा अपनी क्लास में सर्वाधिक अंक प्राप्त करते थे। ग्यारहवीं की परीक्षा में डॉ. राव ने स्कूल टॉप कर दिखा दिया था कि वह असाधारण प्रतिभा के धनी हैं। इंजीनियर बनने का सपना देखने वाले डॉ. राव ने जब इंजीनियरिंग में जाने का निर्णय लिया, तो उस वक्त वे सिर्फ चौदह वर्ष के थे। चूंकि इंजीनियरिंग के लिए न्यूनतम आयु 16 साल रखी गई थी, इसलिए उन्हें इंजीनियरिंग में एडमिशन नहीं मिला। दो साल का समय बरबाद न हो, इस कारण प्री-यूनिवर्सिटी एग्जाम दिया और जियोलॉजी को अपना सब्जेक्ट बनाया। जियोलॉजी पढ़ने में उन्हें काफी इंट्रेस्ट आने लगा। मिट्‌टी, पहाड़, नदियों आदि प्राकृतिक चीजों के बारे में जिज्ञासा उत्पन्न होने लगी और उन्होंने जियोलॉजी में ही कैरियर बनाने की ठान ली। 1963 में बीएससी (जियोलॉजी) भी प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की और फिर आंध्र यूनिवर्सिटी से एमएससी (टेक) में एडमिशन लिया। वहां भी सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया और फिर लेक्चरर के रूप में अध्यापन से जुड़ गए। वे ढाई साल तक शिक्षण कार्य से जुड़े रहे। इसके बाद वर्ष 1966 में जियोलॉजिस्ट के रूप में जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया जॉइन किया। उनके शिक्षक ने उन्हें एमएससी के बाद आईएएस परीक्षा देने की सलाह दी, पर उस वक्त उन्होंने जियोलॉजी को ही अपना कैरियर बनाना उचित समझा।

आईएएस में चयन के बारे में वे बताते हैं कि इस एग्जाम को देने के पीछे एक रोचक घटना है, जो मेरी शादी से जुड़ी हुई है। मात्र 21 साल की आयु में श्री राव की शादी हुई। उस वक्त किसी रिश्तेदार ने उनके ससुराल वालों से कहा कि लड़का एक दिन कलेक्टर बनेगा। बस, फिर क्या था, जब भी कोई उनके ससुराल से आता, तो यही पूछता कि कब आईएएस बन रहे हो। वे उस वक्त हैदराबाद में थे। वहां भी आईएएस कल्चर था, जिससे प्रभावित होकर उन्होंने आईएएस परीक्षा देने का मन बनाया। डॉ. राव स्वीकार करते हैं कि हमेशा ही एकैडेमिक परफॉर्मेंस बेहतरीन रहने के कारण उन्हें थोड़ा ओवर कॉन्फिडेंस हो गया था। इसी ओवर कॉन्फिडेंस में उन्होंने बिना कोई एक्स्ट्रा प्रिपरेशन किए आईएएस एग्जाम दे दिया और सेलेक्शन भी हो गया। पर दुर्भाग्यवश उस वर्ष (1970 में) सिर्फ 42 लोगों को आईएएस के लिए चुना गया, जिसमें उनका नंबर 43वां था। उस दिन उन्हें अहसास हुआ कि ओवर कॉन्फिडेंस कितना गलत होता है। इसके बाद उन्होंने दिल्ली पुलिस जॉइन की और ट्रेनिंग के दौरान ही एक बड़ा केस सॉल्व करके अपनी काबिलियत सबके सामने साबित कर दी। ईमानदारी को अपना उसूल मानने वाले डॉ. राव कहते हैं कि पुलिस सेवा में यदि आपकी छवि अच्छी है, तो आप पर कोई बाहरी दवाब काम नहीं करता है। अपनी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के चलते उन्हें रॉ (आरएडब्ल्यू) में कैबिनेट सेक्रेटेरिएट के लिए चुना गया। पुलिस विभाग में उनकी बढ़िया छवि का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें 'ट्रबलशूटर' के नाम से संबोधित किया जाता था। जॉइंट कमिश्नर ऑफ पुलिस (सिक्योरटी, ट्रेनिंग), दिल्ली के पद पर काम कर डॉ. राव वर्तमान में मिनिस्ट्री ऑफ होम अफेयर्स के अधीन पुलिस एक्ट ड्राफ्टिंग कमेटी में सेक्रेटरी पद पर कार्यरत हैं।

अपने 21 वर्षीय पुत्र को एक एक्सीडेंट में खो चुकने के बाद भी डॉ. राव रुके नहीं। अब वे विषम स्थितियों से बाहर आने के लिए ज्यादा काम करते हैं। एक ओर वह एक अनुशासित पुलिस ऑफिसर हैं, तो दूसरी ओर किशोरों के प्रति काफी संवेदनशील दृष्टिकोण रखते हैं। किशोरों की मनोवैज्ञानिक और कैरियर काउंसलिंग के लिए उन्होंने यूरिवी विक्रम चैरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना की है। यह संस्था किशोरों के हर प्रकार के मार्गदर्शन में सक्रिय भूमिका निभा रही है।