28 सितंबर 2011

चैत्र नवरात्र व्रत के लाभ

हिन्दू संस्कृति के अनुसार नववर्ष का शुभारम्भ चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि से होता है। इस दिन से वसंतकालीन नवरात्र की शुरूआत होती है।
विद्वानों के मतानुसार चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की समाप्ति के साथ भूलोक के परिवेश में एक विशेष परिवर्तन दृष्टिगोचर होने लगता हैं जिसके अनेक स्तर और स्वरुप होते हैं।
इस दौरान ऋतुओं के परिवर्तन के साथ नवरात्रों का त्यौहार मनुष्य के जीवन में बाह्य और आतंरिक परिवर्तन में एक विशेष संतुलन स्थापित करने में सहायक होता हैं। जिस तरह बाह्य जगत में परिवर्तन होता है उसी प्रकार मनुष्य के शरीर में भी परिवर्तन होता है। इस लिए नवरात्र उत्सव को आयोजित करने का उद्देश्य होता हैं की मनुष्य के भीतर में उपयुक्त परिवर्तन कर उसे बाह्य परिवर्तन के अनुरूप बनाकर उसे स्वयं के और प्रकृति के बीच में संतुलन बनाए रखना हैं।

नवरात्रों के दौरान किए जाने वाली पूजा-अर्चना, व्रत इत्यादि से पर्यावरण की शुद्धि होती हैं। उसी के साथ-साथ मनुष्य के शरीर और भावना की भी शुद्धि हो जाती हैं। क्योंकि व्रत-उपवास शरीर को शुद्ध करने का पारंपरिक तरीका हैं जो प्राकृतिक-चिकित्सा का भी एक महत्वपूर्ण तत्व है। यही कारण हैं की विश्व के प्राय: सभी प्रमुख धर्मों में व्रत का महत्व हैं। इसी लिए हिन्दू संस्कृति में युगों-युगों से नवरात्रों के दौरान व्रत करने का विधान हैं। क्योंकि व्रत के माध्यम से प्रथम मनुष्य का शरीर शुद्ध होता हैं, शरीर शुद्ध हो तो मन एवं भावनाएं शुद्ध होती हैं। शरीर की शुद्धी के बिना मन व भाव की शुद्धि संभव नहीं हैं। चैत्र नवरात्रों के दौरान सभी प्रकार के व्रत-उपवास शरीर और मन की शुद्धि में सहायक होते हैं।
नवरात्रों में किये गए व्रत-उपवास का सीधा असर हमारे अच्छे स्वास्थ्य और रोगमुक्ति के लिए भी सहायक होता हैं। बड़ी धूम-धाम से किया गया नवरात्रों का आयोजन हमें सुखानुभूति एवं आनंदानुभूति प्रदान करता हैं।
मनुष्य के लिए आनंद की अवस्था सबसे अच्छी अवस्था हैं। जब व्यक्ति आनंद की अवस्था में होता हैं तो उसके शरीर में तनाव उत्पन्न करने वाले शूक्ष्म कोष समाप्त हो जाते हैं और जो सूक्ष्म कोष उत्सर्जित होते हैं वे हमारे शरीर के लिए अत्यंत लाभदायक होते हैं। जो हमें नई व्याधियों से बचाने के साथ ही रोग होने की दशा में शीघ्र रोगमुक्ति प्रदान करने में भी सहायक होते हैं।
नवरात्र में दुर्गासप्तशती को पढने या सुनाने से देवी अत्यंत प्रसन्न होती हैं ऐसा शास्त्रोक्त वचन हैं सप्तशती का पाठ उसकी मूल भाषा संस्कृति में करने पर ही पूर्ण प्रभावी होता हैं।
व्यक्ति को श्रीदुर्गासप्तशती को भगवती दुर्गा का ही स्वरुप समझना चाहिए। पाठ करने से पूर्व श्रीदुर्गासप्तशती की पुस्तक का इस मंत्र से पंचोपचारपूजन करें- 
नमोदेव्यैमहादेव्यैशिवायैसततंनमः । नमः प्रकृत्यैभद्रायैनियताः प्रणताः स्मताम्॥
 जो व्यक्ति सुर्गासप्तशती के मूल संस्कृत में पाठ करने में असमर्थ हों तो उस व्यक्ति को सप्तश्लोकी दुर्गा को पढने से लाभ प्राप्त होता हैं। क्योंकि सात श्लोकों वाले इस स्त्रोत में श्रीदुर्गासप्तशती का सार समाया हुआ हैं।
जो व्यक्ति सप्तश्लोकी दुर्गा का भी न कर सके वह केवल  मंत्र नर्वाण मंत्र का अधिकाधिक जप करें।

देवी के पूजन के समय इस मंत्र का जप करे।
जयन्ती मड्गलाकाली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधानमोsस्तुते॥

देवी से प्रार्थना करें-
विधेहिदेवि कल्याणंविधेहिपरमांश्रियम्। रूपंदेहिजयंदेहियशोदेहिद्विषोजहि॥

अर्थात: हे देवी! आप मेरा कल्याण करो। मुझे श्रेष्ट संपत्ति प्रदान करो। मुझे रूप दो, जय दो, यश दो और मेरे काम-क्रोध इत्यादि शत्रुओं का नाश करो।
विद्वानों के अनुसार सम्पूर्ण नवरात्रव्रत के पालन में जो लोग असमर्थ हो वह नवरात्र के सात रात्री, पांच रात्री, दो रात्री और एक रात्री का व्रत भी करके लाभ प्राप्त कर सकते हैं। नवरात्र में नवदुर्गा की उपासना करने से नवग्रहों का प्रकोप शांत होता हैं।
 

27 सितंबर 2011

सृष्टि की सबसे अनुपम कृति है मानव

शिव शक्ति मंदिर में पण्डित भोलानाथ ने प्रवचनों में कहा कि मनुष्य जीवन इस सृष्टि की सबसे अनुपम कृति है। अत:मनुष्य को चाहिए कि वह अपने जीवन को सुधारने के लिए अच्छे कर्म करने के साथ-साथ रामनाम का जाप करे।
राम नाम का जाप करने से जहां मनुष्य का मन शुद्ध होता है। वहीं मनुष्य इससे परोपकारी भी हो जाता है। उन्होंने कहा कि मनुष्य को चाहिए कि वह अपनी इच्छाओं को त्याग कर दूसरों के भले ही सोचे और अपने मन को स्थिर करे। इस प्रकार सत्कर्म करने का फल उसे अवश्य मिलेगा और उसका जीवन व्यर्थ नहीं जाएगा।
उन्होंने कहा कि मनुष्य द्वारा श्रेष्ठ लक्ष्य की प्राप्ति में अनेक बाधाएं आना स्वाभाविक है, परन्तु मनुष्य अध्यात्म के बल पर सभी बाधाओं को आसानी से पार कर लेता हैं। अध्यात्म की शक्ति मनुष्य को प्रेरणा देती है कि वह कर्म फल की प्राप्ति के लिए आत्म समर्पण कर दे। साधना करने के परिणाम काफी सुखद होते हैं। हालांकि प्रारंभ में साधना करते हुए मनुष्य को कुछ परेशानियों का सामना करना पडता है परंतु आखिरकार इसके परिणाम काफी सुखद होते हैं। उन्होंने कहा कि धर्म जीवन का अभिन्न अंग है और धर्म के सेवन से ही प्रकृति में परिवर्तन आता है और मनुष्य के जीवन में आध्यात्मिक ऊर्ज का आविर्भाव होता है। ईश्वर की उपासना समर्पण भाव से की जानी चाहिए और मनुष्य को चाहिए कि वह अपने अंदर के रोग-द्वेष को अपने विवेक की कैंची से काट डाले तभी कल्याण का मार्ग प्रशस्त होगा। इसके लिए मानव को इंद्रियों पर काबू पाना सीखना चाहिए।
भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्रियों का संचालन करना मानव को सिखाया है। इंद्रियों का संचालन ही हृदय का गोकुल है। उन्होंने कहा कि भोजन थाली में होगा तो पेट में भी होगा और अगर थाली ही खाली हो तो पेट भरने की आश छोड देनी चाहिए। कुछ लोग मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं रखते, लेकिन इस पूजा से ही अंदर की पूजा तक पहुंचा जा सकता है।
उन्होंने कहा कि अंदर की पूजा को जानने से पहले यानी भगवान को जानने के लिए अंदर की पूजा से पहले बाहर की पूजा बहुत जरूरी है। आंखें जो बाहर देखती हैं उसी का ध्यान अंदर करती हैं। इसी प्रकार से कान बाहर से सुनकर उसका अंदर चिंतन करते हैं इसलिए पूजा की जोत की ज्वाला शरीर के बाहर तक ही नहीं बल्कि अंदर तक भी जानी बहुत जरूरी है।

बीती ताहि बिसारि दे, आगे की सुधि लेहु


देखें मुस्कुरा कर..
उन आंखों में झांक के देखो तो सही, प्यार झलकता है कि नहीं।
एक कदम बढा के देखो तो सही, राह मिलती है कि नहीं।
हाथ बंटा के देखो तो सही, काम होता है कि नहीं।
एक बार मुस्कुरा के देखो तो सही, दुनिया अपनाती है कि नहीं।
-योग गुरू स्वामी रामदेव
 
अतीत की यादों से मुक्त रहें। बीते हुए समय से सीख लेकर जीवन में आगे बढें। यह संकल्प लें कि समाज में जरूरतमंद लोगों की मदद कर देश की उन्नति में भागीदार बनेंगे। साथ ही, विश्व और घरेलू हिंसा को दूर करने करने का लक्ष्य बनाएं। स्वयं को तनावमुक्त रखने के लिए अपनी व्यस्त दिनचर्या में कुछ समय ध्यान, प्राणायाम, योग, प्रार्थना, संगीत और मौन के लिए भी निकालें। आत्मा समुद्र है, तो मन उसकी लहर और शरीर किनारा। इस प्रकार मन, आत्मा और शरीर तीनों आपस में जुडे हुए हैं। जैसे हम अपने शरीर को पानी से स्वच्छ करते हैं, वैसे ही अपने मन को ज्ञान से और आत्मा को ध्यान या निस्वार्थसेवा से साफ करते रहना चाहिए।
-श्री श्री रविशंकर

अंतर्मन को जगाएं
हम सभी ढोंग, पाखंड, जातिवाद, घिसे-पिटे अंधविश्वास आदि से घिरे हुए हैं। नववर्ष के अवसर पर भारत को एक नया रूप देने, अपने लिए नया भविष्य तय करने का हम सभी संकल्प लें। सभी प्रकार के अविश्वास से बाहर निकलें, क्योंकि यह हमें अंधेरे की ओर ले जाता है। इसके लिए हमें एक लक्ष्य निर्धारित करना होगा। जैसे,

चारित्रिक या अध्यात्मिक उत्थान
बीमारी और बुराइयों से निकलकर देश को आर्थिक समृद्धि प्रदान करने का लक्ष्य। हम सभी जानते हैं कि हमारा मस्तिष्क, शरीर और आत्मा तीनों आपस में जुडे हुए हैं। मन अशांत होने पर इन तीनों में संघर्ष शुरू हो जाता है और हम गलत दिशा की ओर जाने लगते हैं। योग इन तीनों में संतुलन स्थापित करता है। आधे या एक घंटे का योग तीनों में तारतम्य बैठा सकता है। यदि आप दिन भर की भागदौड के बाद तनाव में आ जाते हैं, तो इतना जान लें कि शांति का संबंध अंतर्मन से है।

यदि हमारा अंतर्मन शांत है, तो अमीरी-गरीबी का इस पर कोई फर्क नहीं पडता है। इसलिए हम अपने अंतर्मन को जगाएं। इसके लिए हमें कुछ उपायों पर ध्यान देना होगा।

सृजन, साकारात्मकविचार, उत्पादन और गुणात्मक वृद्धि पर ध्यान देना होगा। सभी लोगों को समान रूप से सम्मान और समृद्धि मिले, यही हमारा संदेश है। -स्वामी रामदेव -नए संकल्प लें बीती ताहि बिसारिदे, आगे की सुधि लेहु।जो बीत गया, उसे सिर्फ याद रखें और आगे कार्य करते रहें। भगवान बुद्ध ने भी अपनी देशना में कहा है कि व्यक्ति को अपनी पिछली बात को भुलाकर नया संकल्प लेना चाहिए। वर्ष 2012 को निष्ठा वर्ष मानते हुए कर्म को पूजा बनाएं, ताकि जीवन की दशा और दिशा दोनों सुधर सके।

लक्ष्य निर्धारित न करें, क्योंकि यह स्वयं अपने आप बन जाता है। मनुष्य प्रगति पथ का पथिक है, उसे वांछित लक्ष्य पाना है, तो विश्वास का दीप जलाना होगा। हमें किसी एक लक्ष्य को पाकर रुक नहीं जाना चाहिए, बल्कि उस सीमा के भी पार जाना चाहिए, जिसके आगे कोई और राह न हो। हम दौड-भाग की जिंदगी में अपनी पुरानी बैट्री बदलना भूल जाते हैं। महर्षि पतंजलिने कहा है कि प्रतिदिन अपने मन को नए तरीके से तैयार करो। इसके लिए उन्होंने रेचन क्रिया करने की सहज विधि बताई। इसके द्वारा आप मन में जमा कूडा-करकट को बाहर निकाल सकते हैं। अपने अंतर्मन को प्रदूषण रहित करते हुए संरचनात्मककार्य करने का संकल्प लें। मन की शांति ढूंढने से नहीं, बल्कि कामनाओं को शांत करने से मिलती है।

दिन भर का तनाव खत्म करने के लिए आप कुछ क्षण के लिए निर्विचारहो जाएं, शून्य में खो जाएं, यानी ध्यान में उतरें। यदि आत्मतत्व जाग्रत हो जाए, तो यह शरीर और मस्तिष्क दोनों को नियंत्रित कर सकता है। नए साल पर हम लोगों को संदेश देते हैं, रहें पृथ्वी पर, लेकिन आंखें रखें अंतरिक्ष पर। हर कार्य सकारात्मक सोच के साथ करें।
-सुदर्शन महाराज

करें मंथन
पुराने साल के विदा होते ही आप अपने अवगुणों, कमियों को भी अलविदा कह दें। यह सच है कि नए साल के अवसर पर हम कई रिजॉल्यूशंसलेते हैं, लेकिन जनवरी की दस तारीख तक आते-आते उन सभी को भूल जाते हैं और पुरानी गलतियों को दोहराने में लग जाते हैं। समय के प्रवाह में हम अपने आपको जितना जागरूक, जितना चैतन्य बना सकते हैं, उतनी ही गहराई से हम अपने जीवन की अमूल्य निधि को शुभ प्रयोग में ला सकते हैं।

जब तक आप मन में यह मंथन नहीं कर पाएंगे कि वर्तमान लक्ष्य को कितना समझदार और जागरूक तरीके से जिया जाए, तब तक अपने लिए कोई लक्ष्य निर्धारित करने का कोई मतलब ही नहीं है। अगर हम अपने इस वर्तमान पल को बदल सकें, तो तय है कि हमारे अगले आने वाले पल, दिन, हफ्ते, महीने, साल बिल्कुल वैसे ही
विवेकपूर्ण बीतेंगे, जैसा कि यह वर्तमान का पल।

यदि दिन भर की भागदौड के बाद हल्का होना चाहते हैं, तो आप एक लंबी गहरी सांस लें और उसे रोक लें। फेफडों में शक्ति और मन में धैर्य के अनुसार श्वास को रोकें। एक समय ऐसा आएगा कि आपके लाख सोचने पर भी श्वास रुकेगा नहीं, वह निकल ही जाएगा। पाठकों को मेरा संदेश है कि वर्तमान में होश से जियो।
जो होश से जीता है, वह मस्त होकर जीता है।

ठूँठ

जा मुन्नी, बुढऊ को चाय दे, आ हाथ में चाय का प्याला थमाती घृणा से मुँह फेरती बहू सुशीला ने कहा तो सुनकर पचासी वर्षीय वृद्ध मनीराम को कुछ पल के लिए हँसी आ गयी- आज एक राहगीर ने भी पूछा था- ऐ बुड्ढे, भीखू महाजन का घर किधर है? मनीराम सोचने लगा- तन कई वर्ष पुराना है तो सम्बोधन ही बदल गया, वह संज्ञा से विशेषण हो गया। आज उसे अपनी स्थिति एक जानवर से भी गई बीती लग रही थी। जिसका सम्बोधन आयु के साथ तो नहीं बदलता। मुन्नी के हाथ से चाय लेकर वह फिर वहीं बैठ गया। बीच आँगन में शेष ठूँठ के नीचे, यह उसके आँगन में था, अभी से नहीं बचपन से, बीच आँगन में नीम का एक विशाल पेड था। इसी के नीचे वह बैठकर पढता था, कुछ बडा हुआ तो खेत से थका-हारा लौटकर इसी के नीचे बैठ जाता और पत्तियों से छन-छनकर आती तृणमणि बनाती सूर्य-किरणों की अठखेलियों में खो जाता और विवाहोपरान्त, यहीं बैठकर रसोई में खाना बनाती, हाथ भर का घूँघट काढे पत्नी सुखिया को देखा करता था जो कभी-कभी घूँघट की आड में उसे देखकर मुस्करा देती थी, तो कभी शरमा जाती थी। मनीराम अतीत को सोचकर मुस्कराता रहता था। किन्तु भूतकाल के ही कुछ लम्हे उसे डराते थे। वह उन्हें याद करना न चाहता था। फिर भी वह सभी क्षण आँखों के सामने आ ही जाते और वह काँप जाता। वह उन लम्हों को इधर-उधर देख, ध्यान से हटाना चाहता था कि घर में बहू की सखी श्यामा की तेज-कर्कश आवाज सुनाई दी, बहू ने चटाई पर उसे बैठा लिया। श्यामा ने मुडकर सिर का पल्लू ठीक करते हुए, माथे को ढाकते हुए, खा जाने वाली नजर से मनीराम को घूरा फिर सुशीला से बोली- ये तुम्हारे बुढऊ ठीक हैं जो चुपचाप बैठे रहते हैं और हमारे बुड्ढे.. राम-राम, सुबह तीन बजे से उठकर बड-बड करते हैं, तो रात के दो बजे तक बडबडाते ही रहते हैं। चाहे कितना भी बुरा, भला कहो, दूसरे की सुनते ही नहीं। बस, अपनी ही कहते हैं पता नहीं- क्या सूझा मेरे बेटे को जो शहर से मशीन लाकर देने वाला है अपने दादा को सुनने के लिए। अब तुम्ही बताओ सुशीला, जब कुछ नहीं सुनते तो इतना बोलते हैं यदि सुनने लगे तो.. अब मुझे भी जबान दबाकर बोलना होगा- यदि बुढऊ ने सुन लिया और... मेरे बेटे से.. खैर.. इसकी भी मुझे कोई परवाह नहीं। आजकल की औलाद कौन अपनी है अच्छा... छोड ये सब, ये बता तेरे ये श्वसुर... नहीं श्वसुर को तो तूने देखा ही नहीं, ये दादा सौ तो पार कर गये होंगे। क्या मालुम.... कब तक यूँ ही ठूँठ से बैठे रहेंगे। बहू ने मुँह फुलाकर कहा। जाडा अपना प्रकोप पूरी तरह फैला चुका था। कई दिन तक हुई बारिश ने उसका सहयोग और कर दिया था। 

आज बारिश न थी फिर भी लगता था कि हड्डियाँ गली जा रही हैं। सामने वाले चबूतरे पर अलाव जल रहा था, हँसी ठहाके की आवाजें आ रही थीं। कभी वह भी, जब तक अलाव में कुछ गर्मी शेष रहती वह वहीं बैठा रहता था। न जाने कितनी, खेत खलिहान से लेकर समाज की अच्छी-बुरी बातें कहता व सुनता था। पास से पंडिताइन भावज निकलकर आतीं, तो मैं भौजी राम-राम कहता। बदले में वे ठिठोली करतीं, न जाने कितनी मजाकें करती हुई निकल जातीं। बस उनके गुलाबी हाथ पैर ही दिखते थे, चेहरा तो वह कभी दिखाती ही न थीं। होली पर रंग खेलने जाते तब भी नहीं। रंग डालने के बाद होली के ढेर से पकवान सामने रखकर चली जातीं। बिना आशीर्वाद दिये तो जाने ही न देतीं। यदि कोई भूल जाता तो कहतीं.. क्यों देवर जी, बिना आशीष लिये ही चले जाओगे। सब उनका सम्मान भी करते थे। जब दुनिया से गयीं तो अन्त में सभी ने उन्हेंश्रद्धांजलि दी थी उस निर्जीव काया को। अभी पंडिताइन भौजी याद आ ही रहीं थी कि अलाव में बैठे रामकिशोर ने आल्हा गाना शुरू कर दिया। मनीराम सुनकर बडबडाया ये रामकिशोरा लय तो ठीक ठाक ले जाता है किन्तु गाता गलत-सलत है। कल इससे कहूँगा जब इधर से निकलेगा कि पहले आल्हा ठीक से कंठस्थ करे, फिर सुर निकाले। मनीराम को एक झुरझुरी फिर आयी। फटा कम्बल उसने और कसकर लपेट लिया, क्या अच्छा होता अगर वह भी अलाव के पास गरम ताप ले रहा होता। किन्तु कैसे? अलाव तो तापना तभी से भयभीत लगने लगा था जब से बेटा नारायण को भरी जवानी में इस बूढे बाप ने आग दी। अलाव तापता तो नारायण के निर्जीव शरीर को भस्म करती आग की लपटें याद आ जातीं। कैसा रोग लगा नारायण बेटा को? उसे क्यों नहीं कोई रोग घेरने आया। रोग लगा तो बेटे को, वह भी क्षय रोग। अस्पताल का डाक्टर कहता ही रहा कि अब ये रोग लाइलाज नहीं, बस नियमित दवा व अच्छी खुराक देते रहना। जमीन एक मुकदमें में गिरवी चली गयी थी। उन्हीं गिरवी रखे अपने खेतों पर ही मजदूरी करके परिवार का पेट मुश्किल से भरता था। फिर दवा और अच्छी खुराक कहाँ से लाये। जब लाख प्रयत्न करता तब चार दिन की दवा का इन्तजाम हो पाता। छ: दिन बिना दवा के ही निकल जाते। जिसने किसी के सामने हाथ न पसारे हों उसे बेटे की दवा के लिए सभी के सामने हाथ पसारने पडते। सब मना ही कर देते सिवाय चौधरी के। फिर कितना क्षोभ होता मन को कि मैंने उधार माँगा ही क्यों? एक वर्ष का इलाज दो वर्ष चला, फिर भी नारायण न बच सका। अपने हाथों जवान बेटा सीने में ठूँठ सा धँसा लिया जो हर पल करकता रहता। नारायण की माँ व पत्नी गम न सह सकी। साल भर में दोनों चली गयीं और नारायण का ही दो साल का नन्हा बच्चा सीने से लगा कर पालता रहा। थोडा बडा हुआ कुछ जमात पढा फिर उसे करतार ड्राइवर ले गया अपने साथ ड्राइवरी सिखाने, अब वह ड्राइवर है। ट्रक चलाता है शहर में। जब कभी एक दो दिन को घर आ जाता है तब बेटे को उसमें ही देख आँखें ठंडी हो जाती हैं।

तोड़ना

बडे भाई के रोएं खडे हो गए थे। चेहरे पर डर, असमंजस और अनिर्णय के ऐसे मिले-जुले भाव थे, जैसे उसके सामने ही किसी की हत्या कर दी गई हो। कुछ मिनटो तक वह वैसे ही सन्न खडा रहा, जैसे निर्णय नही कर पा रहा हो कि क्या किया जाए। फिर उसके चेहरे की भंगिमा बदलती गई। अब वहां जो कुछ हुआ, उसकी प्रतिक्रिया स्वरूप हिंसा की चाहना थी। उसकी आंखो मे लाल डोरे उभर आए थे। होठ फडक रहे थे। मै समझ गया कि क्या होगा। हुआ वही। उसने अपने दाएं हाथ से मेरे केशो को पकडा और उसका बायां हाथ तडातड मेरे गालो पर पडने लगा। फिर उसने ढकेल कर मुझे जमीन पर गिरा दिया। मैने भी एक-दो हाथ चलाए थे, लेकिन भाई ने उसे अपने मजबूत हाथो के ढाल से बेअसर कर दिया था। अंतत: मै जमीन पर पडा-पडा गालियां बकने लगा। उसने मेरी गालियो को अनसुना कर दिया और पास ही जमीन पर पडी उस मूर्ति को उठाकर देखने लगा। उसके चेहरे पर असीम पीडा का भाव छा गया। जैसे अपने बच्चे की लाश देख रहा हो। उस कछुए की गर्दन टूट कर एक किनारे शांत पडी हुई थी। काली स्याही से रंगी पीठ भी जगह-जगह से फट गई थी और अब पीली मिट्टी साफ दिख रही थी। जैसे रेगिस्तान मे खडे आदमी का भ्रम टूटा हो, जादूगर का जादू खत्म हो गया हो। मुझे लगा भाई रो पडेगा, लेकिन वह रोया नही। बस सुन्न-सा उस टूटी मूर्ति को कुछ देर निहारने के बाद धीरे से वही पटक दिया। आखिर मैने इसे बनाया ही क्यो था..? उसके मुंह से एक आह फूटी थी। वह तेज कदमो से चलता हुआ गैरेज से निकला और घर की ओर बढ गया। धीरे-धीरे अपने हाथ-पैर और कपडो मे लगी धूल झाडता हुआ मै उठ खडा हुआ। इस पंद्रह मिनट के अंतराल मे जो कुछ हुआ था तीन दिन पहले तक हम उसकी कल्पना भी नही कर सकते थे। सब कुछ कितना अप्रत्याशित था। भाई का मुझे डांटना, उसका दुखी होना..। 

अब मुझे दुख हो रहा था। भाई की आह मेरे आसपास चक्कर काट रही थी। उस आह को मै अपने अगल-बगल ढूंढने लगा, लेकिन वह नही मिली। कुछ क्षण के बाद मैने अपने से तीन चार फर्लाग दूर उस टूटी हुई मूर्ति पर नजर दौडाई, तो देखा- वह आह वहां जा चिपकी थी। मै समझ नही पा रहा था कि अचानक मेरे भीतर वह कौन-सा तूफान उठ खडा हुआ था। एक ऐसा आवेग, जिसे रोक पाना किसी भी हालत मे संभव न था। शायद वह आत्मीयता की शक्ति थी, अपने बेकाम होने की कुंठा थी। मैने रचने की कोशिश की थी, लेकिन रच नही पाया था इसलिए दूसरे की रचना नष्ट कर उसे अपने समानांतर खडा करने की दुष्ट कोशिश की थी।

पास के बाजार मे सडक किनारे फुटपाथ पर दशहरा और दीपावली मे ढेर सारे रंग-बिरंगे खिलौने बिकने के लिए आते थे। न जाने क्यो इन मूर्तियो को देखकर मेरा मन सतयुग की अतल-असीम गहराइयो मे डूबने उतराने- लगता है। मां और दादी से सुनी रामायण की अनंत कहानियों से अहिल्या का कल्पित चेहरा झांकने लगता है, जो रामजी के पांवो से ठोकर खाकर जीती-जागती स्त्री बन गई थी। निर्जीव से सजीव हो उठी थी। उन दिनो हमे सचमुच यह विश्वास नही हो पाता कि बेरूप की मिट्टी से भी इतने सुंदर रूपाकार गढे जा सकते है। गांव मे मैने कुम्हारो को देखा था और यहां बसंत-पंचमी के पहले ज्ञान और विद्या की आराध्यदेवी मां सरस्वती की मूर्तियां बनाने वाले कारीगरो को भी। यह देखकर हैरानी होती है कि उनके चेहरे, वेशभूषा आदि एक ही जैसे होते है। कडी, धनी, धनुषाकार मूछे, सांवला चेहरा, चौकन्नी आंखे, चेहरे पर चेचक के दाग और पुरानी धोती-कुरते मे लिपटी नाटी काया। मै अक्सर सोचता, भले ये कुरूप होते है, लेकिन इनके अंतर मे जरूर कोई ऐसी सुंदरता या दैवी शक्ति होती है, जिस कारण यह मिट्टी से इतने सुंदर और सजीव रूपाकार गढ लेते है। हमारे घर से तीस-चालीस फर्लाग की दूरी पर पीली चिकनी मिट्टी का एक ढेर था, जिसे हम मिट्टी की पहाडी कहते थे। दीवाली के घरौदे बनाने के लिए हम कई बार यही से मिट्टी खोद कर ले गए थे। 


गर्मियो के दिन थे। दोपहर को चारो ओर उमस और एक अजीब-सी मनहूसियत छायी रहती। हम घरो मे दुबके होते और बाहर सायं-सायं करती लू चलती रहती। एक दिन दोपहर जब गर्मी और उमस उतनी ही थी, वैसी ही धूल उडाती लू चल रही थी, हम दोनो भाई एक पुराना थैला लिए उस मिट्टी की पहाडी की ओर जा रहे थे। हमने मिट्टी खोदी और थैला भरकर गैरेज मे आ गए। बडे भाई की सक्रियता बढी। वह कही से ढूंढकर टीन का एक डब्बा ले आया और थैले की सारी मिट्टी उसमे उलट दी। फिर उसने मुझे एक पुराना प्लास्टिक का मग देकर उसमे पानी भर लाने को कहा। जब मै मग मे पानी भरकर लाया तो टीन मे मिट्टी के अनुपात मे पानी डालकर वह उसे तन्मयता से आटा जैसा गूंधने लगा। जब मिट्टी और पानी पूरी तरह एक-दूसरे मे मिल गए, तो मै दंग रह गया। मिट्टी पानी से ज्यादा चिपचिपा न होकर गुंधे हुए आटे की तरह ठोस हो गया था। इतना सही अंदाजा। मै सोच भी नही सकता था। मैने भाई के चेहरे को देखा। भाई का रंग सांवला था। माथे के ऊपर केशो से पसीने की मोटी-मोटी बूंदे कान और गालो पर टपक रही थीं। मुझे उसका चेहरा उन्ही कुम्हारो और कारीगरो जैसा लगा, जो मेरे लिए हमेशा रहस्य और जुगुप्सा का विषय रहे है। मै कभी उसका चेहरा, कभी मिट्टी पर घूमते उनके हाथो को देखता रहा। उसने मिट्टी का एक बडा-सा गोला बनाया और उसके अगले भाग पर दाएं हाथ की उंगलियो से हल्का-हल्का जोर देकर डंडा जैसे आकार निकालने लगा। फिर उस गोले को धीरे-धीरे दबाकर बहुत बारीकी से फैलाने लगा। अब वह गोला एक स्पष्ट आकृति ग्रहण करने लगा था। थोडी देर और लगे रहने के बाद भाई ने उस गोले को कछुए की देह और उस डंडे को उसकी गर्दन का आकार दे दिया। आंखो की जगह उसने दोनो तरफ दो गोल-छोटे चमचमाते हुए शीशे लाग दिए और गर्दन के नीचे और पीछे वैसे ही खीचकर चार टांगे बना दीं।

सात अनमोल जीवन उपयोगी प्रेरणाएं

1.  त्याग से शांति व पवित्रता जीवन में आती है, ग्रहण करने से अशांति व अपवित्रता का आगमन होता है।
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2.  अपने हित-पूर्ती में क्रियारह रहना दानवता है, व सभी जीवों के कल्याण हेतु प्रयासरत रहना मानवता है।
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3.  विनयशीलता महान लोगों का गुण होता है, निरंकुश व्यवहार चेतन शून्य व अविवेकी व्यक्तियों का लक्षण होता है।
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4.  ईश्वर के लिए किया गया एक पल का प्रयास भी समय आने पर सार्थक व सफल परिणाम लाता है।
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5.  हमारे पास ईश्वरीय अनुग्रह से जो भी सामर्थ्य है, वह सभी के हित में बांटने के लिए है, हमें उस पर अपना एकाधिकार नहीं ज़माना चाहिए उसको अपने लिए ही संचित करके नहीं रखना चाहिए।
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6.  कामनाओं व वासनाओं की पूर्ती में लगा जीव विषय वासनाओं का गुलाम हो जाता है परिणामस्वरूप जीवन-भर दुखी जीवन जीने को मजबूर होता है।
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7.  कागज़ के नोट धन है तो भगवान् का भजन परमधन है अतः भागवत शरणागति में समर्पित होना चाहिए। इसी में परम लाभ की प्राप्ति संभव है।

25 सितंबर 2011

निवेश एक नहीं कई जगह

आज रिश्ते से ऊपर पैसे की अहमियत हो गई है, तो बचत भी बहुत जरूरी है। जब बात महिलाओं की आती है तो अब वें आर्थिक तौर पर अब किसी पर निर्भर नहीं रहीं, खुद कमाने, खुद खर्च करने के लिए स्वतंत्र हैं। आमतौर पर कहा जाता है कि महिलाएं बहुत खर्चीली होती हैं लेकिन अब जब उन्हें आफ़िसों में दिनरात खटना पडता है, कडी मेहनत करनी पडती है तो पैसे की वैल्यू वे भी अच्छी तरह जानती हैं। आज लोगों को कमाई के साथसाथ अपनी बचत का निवेश कई जगह करना चाहिए, ताकि वे अपना और परिवार का भविष्य सुरक्शित तथा चिंतारहित बना सकें। निवेश के लिए कई फ़ैक्टर हैं। आप अविवाहित हैं या विवाहित, बच्चे और आश्रित कितने हैं, इन सब बातों को देखते हुए निवेश की प्लानिंग करनी चाहिए। सब से मह्त्वपूर्ण बात यह है कि आप केवल एक ही जगह नहीं, कई जगह निवेश करें ताकि कम से कम आप अपना और परिवार का भविष्य सुरक्षित बना सकें।

पी.पी.एफ़., पी.एफ़.(लौंग टर्म निवेश)
आप चाहे वेतनभोगी हों या बिजनेसमैन, अपनी बचत का करीब 25% लौंग टर्म योजनाओं में निवेश कर सकते हैं। दीर्घकालीन निवेश में पब्लिक प्रोविडेंट फ़ंड, प्रोविडेंट फ़ंड और लाइफ़ इंश्योरेंस में 15 से 25 साल तक का निवेश किया जाना चाहिए।
पी.पी.एफ़. और पी.एफ़. योजनाओं में मौजूदा समय में 8% वार्षिक रिटर्न मिल रहा है।

एल.आई.सी.
एल.आई.सी. में भी कई स्कीमें हैं। इन में बीमारी, एक्सीडेंट, लोन सुविधा कवर होने के साथसाथ परिपक्वता में मोटी राशि मिल जाती है। एल.आई.सी. में 5 से 7% रिटर्न मिलता है। यह सेल्फ़ इनवेस्टमेंट है। इस से आप खुद और आप की फ़ैमिली सुरक्षित रह्ती है। परिवार पर दवाब नहीं पडता। मुसीबत के समय बच्चों की पढाई, बीमारी, विवाह जैसे काम रूकते नहीं।

इक्विटी [शेयर मार्केट]
इस के बाद अगर आप के पास सरप्लस मनी बचती है तो हाई रिस्क और हाई रिटर्न के लिए इक्विटी सेक्टर यानी शेयर मार्केट है। जहां आप के धन में गुणात्मक बढोतरी होती रह्ती है। लेकिन इस में रिस्क को ध्यान में रखना होगा।
इस में फ़ंडामेंटल स्ट्रोंग कंपनियां हैं जैसे बैंकिग सेक्टर, पावर सेक्टर, आई.टी. सेक्टर, आटो सेक्टर, मेटल सेक्टर, टेक्सटाइल, इंफ़्रास्ट्रक्चर सेक्टर आदि।
बैंकिग में सब से पौपुलर और विश्वसनीय है एस.बी.आई., एच.डी.एफ़.सी., आई.सी.आई.सी.आई., आई.डी.बी.आई. आदि।
पावर सेक्टर में एन.टी.पी.सी. यह पब्लिक के लिए सब से भरोसेमंद है।
आई.टी. में इनफ़ोसिस, विप्रो, टी.सी.एस. प्रमुख हैं।
मेटल में हिंडालको, सेल, टिस्को हैं।
आटो सेक्टर में मारूति, हीरो होंडा मह्त्वपूर्ण हैं।
टेक्सटाइल में रिलायंस इंडस्ट्रीज, ग्रासिम आदि तथा इंफ़्रास्ट्रक्चर सेक्टर में डी.एल.एफ़., यूनिटेक का नाम आता है।

गोल्ड में निवेश
आप गोल्ड, सिल्वर आदि में निवेश कर सकते हैं। लेकिन इस में अधिक नहीं, क्योंकि एक हद से अधिक फ़ायदा इस में नहीं मिलता। इस में अपनी बचत का 15 से 25% ही निवेश करें तो ज्यादा ठीक रहेगा। सोनेचांदी जैसी धातुओं में उतारचढाव चलता रहता है।

एन.एस.सी. में निवेश
एन.एस.सी. एक लौंग टर्म व सेफ़ निवेश योजना है। यह भी आप के लिए फ़ायदेमंद रहेगी।

प्रौपर्टी में निवेश
अपनी बचत के हिसाब से प्रौपर्टी में भी निवेश किया जा सकता है। अगर इक्विटी में आप को अच्छा प्रोफ़िट मिलता है तो उस हिस्से को डाइवर्ट कर के रीयल एस्टेट में ट्रांसफ़र कर देना चाहिए।
मान लीजिए आप ने इक्विटी में 15 हजार रूपय लगा रखे हैं और 2-3 साल में वह 15 गुना हो जाता है। यह राशि दोढाई लाख हो जाती है तो उसे रीयल एस्टेट में शिफ़्ट कर देना समझदारी है। अन्यथा क्या पता आप की यह राशि दोढाई लाख से कब 5-10 हजार रूपय पर आ लुढके।

म्यूचुअल फ़ंड

यह सिस्टेमैटिकल इनवेस्टमेंट प्लान है। इस में इनवेस्टर पैसा डायरेक्ट न लगा कर फ़ंड मैनेजर के माध्यम से लगाता है। इस में आप हर महीने अपनी सेविंग के हिसाब से धन लगा सकते हैं। इस में 15 से 20% रिटर्न मिल जाता है। यह मार्केट कंडीशन पर निर्भर करता है। यह भी रिस्की है।
इस के अलावा आर.डी. अकाउंट में भी निवेश किया जा सकता है।
एक खास बात और जरूरी है, वह है आप को कुछ प्रतिशत लिक्विडिटी के लिए सेविंग अकाउंट में इमरजेंसी के लिए रखना चाहिए, यह बचत आप किसी भी वक्त जरूरी काम पडने पर निकाल सकतें हैं।
इस तरह 3-4 या सुविधा के अनुसार ज्यादा योजनओं में डिवाइड कर के निवेश किया जा सकता है। आप को पोर्टफ़िलियो बना कर निवेश करना चाहिए।