05 अगस्त 2011

स्वस्थ्य कौन है?

आयुर्वेद ने स्वस्थ रहने के लिए तीन उपस्तंभ बताए हैं:- (1) आहार (2) निद्रा और (3) ब्रहमचर्य। इनमें आहार का नाम सबसे पहले लिया है क्योंकि आहार से ही शरीर कायम रहता है और शरीर की रक्षा करना और इसका पोषण करना सबसे ज्यादा जरूरी बताया है। कहा है - 'सर्वमन्यत्परीत्यज्य शरीर मनुपालयेत' (चरक संहिता) अर्थात सब कुछ छोड़ कर पहले शरीर का रक्षण और फिर पोषण करो क्योंकि 'तद्भावे हि भावानां सर्वा भावः शरीरिणाम' के अनुसार शरीर है तो सब कुछ है और शरीर ही न रहे तो कुछ भे न रहेगा। शरीर के स्वाथ्य रहने में आहार की क्या भूमिका और महत्ता है यह इस बोधकथा से समझें।

एक बार एक महर्षि चरक एक पक्षी का रूप धारण कर नदी के तट पर गए। वहां अनेक लोग स्नान कर रहे थे। पक्षी रूप में महर्षि मनुष्य की भाषा में बोले - स्वस्थ्य कौन है? स्वस्थ्य कौन है? वहां स्नान कर रहे व्यक्तियों में से एक बोला - जो च्वनप्राश रसायन खाता है। दूसरा व्यक्ति बोला- जो मकरध्वज और स्वर्ण भस्म खाता है। तीसरा व्यक्ति बोला - जो भोजन के बाद द्राक्षासव का सेवन करता है वह स्वथ्य है। इस प्रकार अनेक लोगों ने अनेक औषधियों के नाम गिनाते हुए स्वस्थ्य व्यक्ति को परिभाषित कर दिया। यह सुन कर पक्षी रूपी महर्षि चरक उदास हो गए और विकलता के साथ कहने लगे की मैंने आयुर्वेद शास्त्र इसलिए नहीं लिखा की मनुष्य औषधि के सहारे स्वास्थ्य रहे बल्कि मैंने यह शास्त्र इसलिए लिखा की मनुष्य अस्वस्थ्य हो जाने पर औषधि के प्रयोग से अपने रोग का निवारण कर सके। उनका मन असंतोष से भर उठा और वे सोचने लगे की मेरे शास्त्र का दुरुपयोग हुआ है। लोगों ने अपने पेट को औषधालय ही बना लिया है। पक्षी रूपी चरक यह सब विचरते हुए थोड़ा आगे बढे तो दूसरे तट पर जाकर फिर वही प्रश्न किया की स्वस्थ्य कौन है? उस पर तट पर महर्षि वाग्भट स्नान कर रहे थे उन्होंने जैसे ही सुना 'कोsरूक' (स्वस्थ्य कौन है?) वे बोल उठे - 'हितभुक्' - जो हितकर भोजन करता है। पक्षी ने दूसरी बार पूछा - स्वस्थ्य कौन है? वाग्भट फिर बोल उठे - 'मितभुक्' जो अल्प भोजन करता है। तीसरी बार पक्षी ने फिर पूछा - स्वस्थ्य कौन है? वाग्भट ने फिर उत्तर दिया 'रितभुक्' - जो ऋतु के अनुसार आहारीय पदार्थ खाता है। पक्षी रूपी चरक ने सुख की सांस ली और अपने निवास पर लौट गए। 

04 अगस्त 2011

काश! जवानी सोच सकती; बुढापा कर सकता?

कैसी विधि की विडम्बना है कि यौवन होता है तो अकल नहीं होती और अकल आती है तो यौवन चला जाता है। जब तक माला गूंथी जाती है, फूल कुम्हला जाते हैं।

काश! जवानी सोच पाती; और बुढापा कर पाता?

जवानी के साथ जोश आता है, होश नहीं और जब होश आता है तो जोश ठंडा पड़ जाता है। 

यौवन एक नशा है जिसमें चूर होने के बाद मनुष्य को कुछ नहीं सूझता। जवानी दीवानी है और दीवानापन मनुष्य को अंधा बना देता है।

बुढापा समझदारी का पर्याय है, लेकिन शक्ति के अभाव में समझदारी केवल पश्चाताप ही कर पाती है।

जवानी जिन्दगी का ज्वालामुखी है जिसमें असीम शक्ति भरी है। यौवन में एक उत्तेजना है, अग्नि है जो चिंगारी पाते ही दहक उठती है।

यौवन में कल्पना है और बुढ़ापे में चिन्तन। जवानी में जीवनी शक्ति है और बुढ़ापे में संजीवनी बूटी।

जवानी जिन्दगी का बसंत है और बसन्त में बहार है। बुढापा जीवन का शरद है और शरद में समझदारी ठंडी पड़ जाती है।

यौवन एक प्रवाह है और मात्र प्रवाह में दिशा-बोध का अभाव रहता है।

बुढापे में दिशा बोध है और प्रवाह का अभाव है। यौवन में गति है, बुढापे में ज्ञान। ज्ञान गति का दिशा दर्शन करता है तभी यौवन प्रगति के पथ पर अग्रसर होता है। यौवन में आवेश है बुढापे में अनुभव, जवानी में संवेग है, बुढापे में विवेक।

काश! जवानी के स्पेयर पार्ट्स मिल पाते ताकि उन्हें बुढापे की मशीन में फिट किया जा सकता और बुढापे के अनुभव प्राप्य होते ताकि वे जवानी को दिशा बोध कर पाते।