10 दिसंबर 2011

कलयुग केवल नाम अधारा

संतो व सिद्धों को अपनी गति और नियति का पहले से ही अनुमान होता है। हुनमान भक्त पुरुषोत्तम दास जी भी ऐसे ही संत हैं। सबसे पहले कई दशक पूर्व वे माघ माह में स्नान करने प्रयाग आए, यहीं उनका परिचय कानपुर के अयोध्या प्रसाद शुक्ल और गंगा सागर मिश्र से हुआ। उनकी हनुमत भक्ति और विद्वता से प्रभावित होकर ही दोनों ने उन्हें कानपुर आने का आमंत्रण दिया और पनकी के पंचमुखी हनुमान जी के दर्शन का आग्रह किया।

माघ समाप्त होने के बाद पुरुषोत्तम दास जी कानपुर आए और पनकी स्थित पंचमुखी हनुमान जी के दर्शन किए। पुरुषोत्तम दास जी के मन में काफी दिनों से एक शंका थी कि हनुमान चालीसा की चौपाई 'हाथ वज्र और ध्वजा विराजे' में हुनमान जी का वज्र कहां है? पुरुषोत्तम दास जी की इस शंका का निवारण भी पंचमुखी हनुमान जी के दर्शन के बाद हो गया। उन्होंने अपने एक शिष्य को बताया कि हनुमानजी की कृपा से ही मुझे यह ज्ञान मिला कि वज्र खुद हनुमान जी का हाथ ही है। इसी प्रकार पुरुषोत्तम दास जी के मन में एक शंका यह भी थी कि अगर हनुमान जी शिव जी के अवतार हैं तो पार्वती जी कहां हैं? पंचमुखी हनुमान जी के दर्शन के बाद पुरुषोत्तम जी अपने एक शिष्य से बोले, 'पार्वती जी हनुमान जी के साथ उनकी पूंछ में प्रतिष्ठापित थीं। जब शंकर जी ने विश्वकर्मा से पार्वती जी के लिए लंका का निर्माण करवाया तो गृहप्रवेश के समय रावण को ही उन्होंने अपना आचार्य बनाया था। लेकिन रावण ने शिव जी से दक्षिणा में लंका ही मांग ली। इससे पार्वती बहुत रुष्ट हुईं। शिव जी को पार्वती जी उतनी ही प्रिय थीं जितनी वानर को अपनी पूंछ। अतः शिव जी ने जब हनुमान जी के रूप में अवतार लिया तब पार्वती जी उनकी पूंछ बनी और इसी पूंछ से उन्होंने लंका को जलाकर रावण से अपना बदला लिया।

पुरुषोत्तम दास जी कहते हैं कि कलयुग में प्रभु नाम का स्मरण ही मोक्ष का माध्यम है। प्रभुनाम स्मरण स्वतंत्र साधना है और यह बाह्य आचरण पर निर्भर नहीं है। शायद इसीलिए उन्होंने १३ करोड़ राम नाम के जप का संकल्प लिया था जिसे १२ अक्तूबर १९८५ को पूरा के बाद बिठूर में महाराज घाट पर गंगा में विसर्जित कर दिया।

                                                                                                                                                                                -शशिशेखर त्रिपाठी