11 सितंबर 2011

क्या एक शरीर को एक से अधिक आत्माएँ भोग सकती हैं...?


* मनुष्य व अन्य सभी जीवों का स्थूल शरीर मात्र पैकिंग हैं और उसमें विद्यमान यानि कि पैक्ड सूक्षम शरीर यानि कि आत्मा उस पैकिंग में वेष्ठित बहुमूल्य निधि।

* किसी भी अति प्रिय मनुष्य, वस्तु, पशु-पक्षी आदि का विछोह अथाह वेदना देता है। और मनुष्य/जीव की सबसे प्रिय निधि तो उसका अपना शरीर ही है।

* तभी तो संसारिक जीव अपनी मृत्यु से अथाह भयभीत होता है।

* शरीर छोड़ते हुए करूण रुदन करता है। मार्मिक दृष्टि से देखता है, कि कोई उसे मृत्यु से बचा ले, किंतु जो स्वयं को ही नहीं बचा पायेगा, उसे कैसे बचा लेगा?

* यदि किसी को पूर्व जन्म याद रह जाए तो प्रारम्भ में कष्ट होता है किंतु बाद में वह शरीर यानि कि पैकिंग के अनुसार ढल जाता है और उसके अनुसार ही जीवन जीने लगता है।
* गमन करते हुए कोई भी जीव या वस्तु साथ नहीं जाती है, मृत्यु से नहीं बचा सकती है, तब संचय में अनीति किस लिये? कुछ पल निकालकर सोचे, ज़रूर सोचे.......?

* अकर्मण्य नहीं बने, नैतिक बने, और पढ़े निम्न घटनाएँ, मनन् करे...?

इंग्लैंड की घटना:
लिवरपूल, इंग्लैंड में एक ऐसा केस सामने आया की एक बच्चा पैदा हुआ और उसके हाथ पर उसके स्वर्गीय पिता का गोदने का निशान था। प्रिसीला और टेडी फ्रेंटम पति और पत्नी थे। टेडी वक्कुम क्लीनर के पार्ट्स बनाने वाली कंपनी में काम करता था। टेडी की उम्र जब 16 साल की थी तब उसने अपने हाथ पर गोदना गुडवाया था। जब टेडी 35 वर्ष का था तब उसकी पत्नी गर्भवती हुई। टेडी अपने बच्चे का मुँह देख पाता कि इससे एक महीने पहिले ही उसकी मृत्यु हो गयी।

डॉक्टर और मनोवैज्ञानिकों दोनों ने टेडी के नवजात बच्चे के हाथ के गोदने का परीक्षण किया। प्रिसीला का मानना था की उसका पति अपने बच्चे के रूप में पुन: आ गया है। यानि कि बच्चे के शरीर में पहिले कोई आत्मा थी और टेडी की मृत्यु के बाद टेडी की आत्मा ने उस अजन्मे बच्चे के शरीर में प्रवेश कर लिया।

भारत की घटना:
कैरल सन 1937 में एक उच्च सैनिक अधिकारी के रूप में ब्रिटन से भारत आए थे। उन्होनें अपनी पुस्तक में ज़िक्र किया है कि लगभग सन 1939 कि बात है वें असम-बर्मा सीमा पर कैंप में थे। उनका कैंप एक नदी के किनारे लगा था। एक दिन मैने टेलिस्कोप से देखा कि एक युवक कि लाश बही जा रही है और एक दुर्बल और बूढ़ा दाढ़ी वाला उस लाश को नदी से बाहर खींचने का प्रयास कर रहा है। मैने इस घटना की ओर और साथी अधिकारीओं का ध्यान भी आकृष्ट किया। हम सबने अपनी-अपनी टेलिस्कोप से देखा कि वह बूढ़ा उस लाश को निकालकर एक पेड़ के पीछे ले गया। हम सब उत्सुकता से यह द्रश्य देख रहे थे। कुछ क्षणों बाद हमारे आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब हमने पेड़ के पास जवान आदमी को चलते देखा।
हमने सिपाहियों को बुलाया और उस आदमी को पकड़ कर लाने को कहा। सिपाही उस युवक को पकड़ कर ले आए। मैने उस युवक से कहा, `सच-सच बताओ, तुम कौन हो? मैने अच्छी तरह देखा था कि तुम बहे जा रहे थे और दाढ़ी वाला बूढ़ा तुम्हारी लाश निकालने कि कौशिश कर रहा था। अब तुम जिंदा हो।' इस पर उस युवक ने कहा कि वह वही बूढ़ा व्यक्ति है किंतु शरीर उस मृत्य युवक का है। उसने बताया कि वह योग साधना से शरीर परिवर्तन में निपुण है। जब भी उसका शरीर बूढ़ा हो जाता है तो वह ऐसा कर लेता है। कैरल ने उसकी बात पर यकीन नहीं किया। तो उसने कैरल से पेड़ के पास पड़े बूढ़े आदमी का शरीर मॅंगाकर देखने के लिए कहा. कैरल के कहने पर सैनिक पेड़ के पास से बूढ़े का मृत्य शरीर उठा लाए, जिसे देखकर सबके आश्चर्य का ठिकाना न रहा।

उस युवक की मृत्यु से पहिले युवक के उस शरीर को कोई दूसरी आत्मा भोग रही थी अब उसे इस बूढ़े की आत्मा इस्तेमाल करेगी।

* 32 वर्ष पूर्व प्रकाशित पुस्तक पूर्व जन्म की स्मृति में कैकई नन्दन सहाय की एक दिलचस्प घटना छपी थी और बताया कि उनके चचेरे भाई श्री नंदन सहाय को हैजा हो गया था। उस समय उनकी आयु 19 वर्ष की थी। उनकी मृत्यु हो गयी थी। मृत्यु के समय श्री नन्दन सहाय की पत्नी को दो मास का गर्भ था। पति की मृत्यु के बाद से ही पत्नी को ख़राब-ख़राब सपने आने शुरू हो गये। एक दिन सपने में पत्नी ने अपने मृत्य पति को देखा। वह कह रहे थे, `मैं तुम्हारे पास ही रहूँगा। तुम्हारे पेट से जन्म लूँगा. लेकिन तुम्हारा दूध नहीं पिऊंगा। मेरे लिये दूध का अलग से प्रबंध रखना। मेरी बात की सत्यता यह होगी कि जन्म से ही मेरे सिर पर चोट का निशान होगा।'

समय पर पुत्र ने जन्म लिया। बच्चे के सिर पर चोट का निशान था। बच्चा अपनी माँ का दूध नहीं पीता था। उसके लिये अलग से धाय रखी गई। धाय ही उसे दूध पिलाती थी।

बच्चा किसी और स्त्री का दूध तो पी लेता था किंतु अपनी पूर्व जन्म की पत्नी और इस जन्म की माँ का दूध न पिता था। माँ का दूध निकालकर चम्मच से पिलाने पर बच्चा वह दूध उलट देता था।
यानि कि दो माह तक गर्भस्थ शिशु में कोई अन्य आत्मा रही श्री नंदन सहाय ने अपनी पत्नी के गर्भ से अपने ही बालक के रूप में जन्म लिया।

* वेदांत के महान ज्ञाता अदिगुरु शंकराचार्य से महान मीमांसक मंडन मिश्र की धर्म पत्नी भारती ने शास्त्रार्थ किया और हारने लगी। भारती विदुषी थी। भारती ने सोचा की सन्यासी को कामकला का कुछ भी ज्ञान नहीं होता है। फिर अदिगुरु शंकराचार्य तो बालकपन में ही सन्यासी हो गये थे। अत: अदिगुरु शंकराचार्य को कामकला का बिल्कुल भी ज्ञान नहीं होना चाहिए। झट से भारती ने कामकला पर शास्त्रार्थ प्रारंभ कर दिया। तब अदिगुरु शंकराचार्य ने इसके लिए समय मांगा। भारती ने समय दे दिया। अदिगुरु शंकराचार्य ने एक मृत्य राजा की देह में प्रवेश करके कामकला का ज्ञान प्राप्त किया था और भारती को शास्त्रार्थ में पराजित किया था।
यानि की राजा के शरीर का उपभोग पहिले राजा ने किया और उनके मरने के बाद कुछ समय तक अदिगुरु शंकराचार्य ने किया।
सूक्ष्म शरीर जब स्थूल शरीर को छोड़कर गमन करता है तों उसके साथ अन्य सूक्ष्म परमाणु कहिए या कर्म भी गमन करते हैं जो उनके परिमाप के अनुसार अगले जन्म में रिफ्लेक्ट होते हैं, जैसे तिल, मस्सा, गोली का निशान, चाकू का निशान, आचार-विचार, संस्कार आदि।
मनुष्य की जिस वस्तु, जीव के प्रति आशक्ति होती है, उसके विछोह पर करूण रुदन करता है। सामान्य मनुष्य की सबसे अधिक प्रीति अपने शरीर के प्रति होती है। इसीलिए मृत्यु जैसी वेदना और किसी घटना में नहीं है। किंतु यह भी सत्य है कि स्थूल शरीर पॅकिंग है और उसमें विद्यमान सूक्षम शरीर उस पॅकिंग में वेष्ठित बहुमूल्य निधि।
इन घटनाओं से यह पता चलता है की एक शरीर का उपभोग एक से अधिक आत्माएँ कर सकती हैं। स्थूल शरीर को आत्माएँ किसी वस्त्र बदलने की तरह बदल देती हैं। इस स्थूल शरीर बदलने की क्रिया को ही जन्म-मरण या परकाया में प्रवेश कहा जाता है। संसारिक भाषा में हम आत्मा को सूक्ष्म शरीर कह सकते हैं।

*  लोग समझते हैं कि चंद्रगुप्त मौर्य ने सम्राट महापद्म यानि कि घनान्द को जीता था। जी नहीं ऐसा नहीं हुआ था। सम्राट घनान्द तो एक नैतिक और बहुत बलशाली सम्राट था। सम्राट घनान्द के भय से तो सिकन्दर सिंधु नदी को पार करने का भी साहस न जुटा सका था और वापिस लौट गया था। महापद्म नन्द की मृत्यु के बाद उस शरीर में दूसरी आत्मा ने प्रवेश कर लिया था। कौन थी वह आत्मा?
सार:
इन घटनाओं से पता चलता है कि स्थूल और सूक्षम शरीर अलग-अलग हैं। स्थूल शरीर की भूमिका पॅकिंग भर की है। और सूक्षम शरीर की भूमिका शक्ति की है। एक स्थूल शरीर को दो भिन्न-भिन्न प्राण या कि आत्मा इस्तेमाल कर सकती हैं। किंतु उसे रहना वहीं होगा जहाँ का पॅकिंग है। जैसे शोभाराम त्यागी की आत्मा और शरीर जसवीर का, तो उसे जसवीर की जिंदगी जीनी पड़ी। अदिगुरु शंकराचार्य ने राजा के शरीर में प्रवेश करके राजा की जिंदगी जी। प्रत्येक घटना में शेष जीवन शरीर के अनुसार ही स्थान पर जीना पड़ा। किंतु यदि कोई आत्मा लावारिस लाश में प्रवेश करती है तो उसे कौनसी जिंदगी ज़िनी होगी यह परिस्थितियों पर निर्भर करेगा। तब कैसे जानोगे कि कौन अपना और कौन पराया, आज कौन धर्म के मानने वाले हो कल पता नहीं कौन धर्म मानना पड़ जाए, तब काहे का विरोध, काहे की कटुता.......? नैतिक बनो।

इससे यह सिद्ध होता है कि एक स्थूल शरीर का उपभोग दो प्राण यानि कि आत्माएँ कर सकती हैं। परकाया प्रवेश एक विद्या भी है और सिद्ध योगी अपना शरीर अपनी इच्छा के अनुसार बदल सकते हैं। कई बार परकाया प्रवेश अनायास ही हो जाता है। इसके कौन कारण हैं, यह अभी तक अज्ञात है.......?

हॉलैंड की घटना
एम्सटरडम के एक स्कूल में वहां के प्रिंसिपल की लड़की मितगोल के साथ हाला नम की एक ग्रामीण लड़की की बड़ी मित्रता थी। हाला देखने में बड़ी सुंदर और मितगोल विद्वान् थी। वें प्राय: पिकनिक और पार्टियाँ साथ मनाया करती थी। एक बार दोनों सहेली एक साथ कार से जा रही थी। गंभीर दुर्घटना घाट गयी। उनकी कार एक विशालकाय वृक्ष से जा टकराई। मितगोल को गंभीर चोटें आयी, उसका सम्पूर्ण शरीर क्षत-विक्षत हो गया और उसका प्राणांत हो गया। हाला को बाहर से तो कोई घाव नहीं थे किंतु अन्दर कहीं ऐसी चोट लगी की उसका भी प्राणांत हो गया. दोनों के शव कार से बाहर निकल कर रखे गए।
तभी एकाएक ऐसी घटना हुई कि जिअसे किसी शक्ति ने मितगोल के प्राण हाला के शरीर में प्रविष्ट करा दिए हों। वह एकाएक उठ बैठी और प्रिंसिपल को पिता जी कहकर लिपटकर रोने लगी। सब आश्चर्यचकित थे कि हाला प्रिंसिपल साहब को अपना पिता कैसे कह् रही है? उनकी पुत्री मितगोल का शरीर तो क्षत-विक्षत अवस्था में पड़ा हुआ है।
प्रिंसिपल साहब ने उसे जब हाला कहकर संबोधित किया तो उसने बताया कि पिता जी मैं हाला नहीं आपकी बेटी मितगोल हूँ। मैं अभी तक इस क्षत-विक्षत हो गए शरीर में थी। अभी-अभी किसी अज्ञात शक्ति ने मुझे हाला के शरीर में डाल दिया है।
हर तरह से परीक्षण किए गए और पाया गया कि सच में ही मितगोल के प्राण हाला के शरीर में आ गए हैं। इस प्रकार शरीर परिवर्तन की यह अनोखी घटना घटी।