20 जुलाई 2011

श्रम और तप का महत्व समझें

सारी सृष्टि का आधार श्रम है। श्रम से समाज आगे बढ़ता है, श्रम से परिवार संगठित रहता है। श्रम से सेहत बनती है, नींद अच्छी आती है, जो जितना कठोर श्रम करेगा, उसमें उतना ही धैर्य आएगा। यहां तक कि परमात्मा भी श्रम करता है। जो श्रम नहीं करते, आलस्य करते हैं वे शरीर बिगाड़ लेते हैं। भले ही धनी हो जाएं, पर बीमारियां पाल लेते हैं, श्रम से बुद्धि तेज होती है और पुरुषार्थ करके आदमी आगे बढ़ता है।

श्रम, तप से महत्वपूर्ण बनता है। तप का सहयोग श्रम को मिलना चाहिए। किसी बड़े उद्देश्य के लिए समर्पित होकर कष्ट उठाना तप है। जो जितना सहता है, उतना ही लहलहाता है। कष्ट सहना ही तप है। तप से श्रम सार्थक होता है। तप से मन में पवित्रता आती है। तप से ही ऐश्र्वर्य प्राप्त होता है।

आज राष्ट्र का, राष्ट्रवासियों का, विशेषतया माताओं का तप व्यर्थ जा रहा है। सभ्यता और संस्कृति नष्ट हो रही है। धर्म और संस्कृति के लिए मर-मिटने की तमन्ना बच्चों में नहीं जग रही है, न पवित्र भावना है न पवित्र आचार और न ही पवित्र व्यवहार। अपनी भाषा भी जीवन में प्रतिष्ठित नहीं हुई है। माताएं ही बच्चों में संस्कार जगा सकती हैं।

भीरुता बढ़ रही है। डरपोक तपस्वी नहीं हो सकता। माता निर्माण करती है, माता नियंत्रण करती है। ब्रह्म में ज्ञान द्वारा जीवन के विकास का मार्ग खोजना है, अज्ञान बहुत है। ज्ञान-साधिका माताएं बच्चों में सुसंस्कार जगाकर अज्ञान पर प्रहार करें। घर में धन आए, वह ईमानदारी की कमाई हो, श्रम से अर्जित हो, पाप की कमाई जीवन को बिगाड़ती है, धन का अपव्यय करना रोकें, सही उपयोग करना सीखें।

गृहस्थ की मर्यादा सत्य से प्रेरित हो। जीवन में सत्य को प्रतिष्ठित करें। बच्चों को सत्य से अनुराग करना सिखाएं। उन्हें संयम का पाठ पढ़ाएं। सदाचारी बनाएं। यशस्वी बनने की प्रेरणा दें। श्री का आह्वान करो, श्री आत्मधन है, उसे बटोर लो। जीवन को सुधारो, सुंदर विचारों से सुधार आएगा।