30 जून 2011

दैनिक जीवन में मुहूर्त का महत्त्व

भारतीय जीवनशैली में काल की शुभता-अशुभता का बहुत महत्व है। किसी भी कार्य का आरम्भ शुभ समय में ही होना चाहिए, ऐसी हमारे देश के ज्योतिषीयों/विद्वानों तथा बुजुर्गों की मान्यता है। शुभ समय में किया गया कार्य शीघ्र एवं अनुकूल होता है। शुभ समय में शुरू किया गया कार्य आधा हो गया मानते हैं। शुभ समय की जानकारी के लिये ऋषियों ने मुहूर्त नामक पद्वति का आविष्कार किया, जो कि तत्कालीन गोचर (वर्तमान) ग्रहों पर आधारित होती है। मुहूर्त पद्वति ज्योतिष के संहिता भाग के अंतर्गत आती है, जो पूर्णतः गणित पर आधारति होती है। शुभ मुहूर्त का आविष्कार गणितीय शुद्धता है। ऐसा कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि ज्योतिष का विकास मुहूर्तों की उपयोगिता के कारण ही हो पाया है। वर्तमान समय में हर छोटे-छोटे कार्यों के लिये मुहूर्त तय किये जाते हैं।

जैसे-जैसे ज्योतिष का विकास हुआ वैसे ही इसकी उपयोगिता भी बढी है। वर्तमान में गर्भाधानादि 16 संस्कार, ग्राहारम्भ, गृहनिर्माण, यात्रा, व्यापाराम्भ, शपथग्रहण, पदग्रहण, वाहनक्रय, आवेदन पत्र भरने, पर्चादाखिल आदि सभी क्षेत्रों में मुहूर्त देखे जाने की परम्परा है।

वर्तमान समय में व्यक्ति की आवश्यकताएं और क्षेत्र अतिविस्तृत हो गए हैं। जिन कार्यों को कभी छोटा समझा जाता था, वे आज आजीविका के मुख्य साधन बन गए हैं। ऐसे कुछ महत्वपूर्ण कार्यों को प्रारम्भ करने के पूर्व शुभ मुहूर्त के सामान्य सिद्धांत निम्नलिखित हैं:

मुहूर्त संबंधी जानकारी

1. अमावस्या तिथि में मांगलिक कार्यों को प्रारम्भ नहीं करना चाहिए।
2. रिक्ता तिथियों (चतुर्थी, नवमी, चतुर्दर्शी) में आजीविका संबंधी किसी भी कार्य को प्रारम्भ नहीं करना चाहिए।
3. नंदा तिथियों (प्रतिपदा, षष्ठी, एकादशी) में किसी भी योजना को पारित अथवा क्रियान्वित नहीं करें।
4. रविवार, मंगलवार एवं शनिवार को मेल-मिलाप एवं संधि के कार्य नहीं करें।
5. कोई भी गृह जिस दिन अपनी राशि परिवर्तित करे, उस तिथि और नक्षत्र में किसी भी कार्य की रूपरेखा नहीं बनाएं और ना ही कोई कार्य प्रारम्भ करें।
6. जिस दिन नक्षत्र एवं तिथि योग 13 आए, उस दिन पारिवारिक अथवा सामाजिक उत्सव अथवा कार्य का आयोजन नहीं करें.
7. जब भी कोई ग्रह उदय अथवा अस्त हो, तो उससे तीन दिन पूर्व और बाद तक भी अपने किसी विशेष कार्य की शुरूआत नहीं करें।
8. अपनी जन्म राशि का और जन्म नक्षत्र का स्वामी जब अस्त हो, वक्री हो अथवा शत्रु ग्रहों के मध्य हो, उस समय में भी निजी जीवन से जुड़े और आय संबंधी क्षेत्रों का विस्तार अथवा योजनाओं का क्रियान्वयन नहीं करें। बुध ग्रह को अस्त का दोष कम लगता है।
9. तिथि, नक्षत्र एवं लग्न की समाप्ति हो रही हो, उस समय जीवन, मृत्यु और आय से जुड़े किसी कार्य को अंजाम नहीं देना चाहिए।
10. क्षय तिथि को भी त्यागना चाहिए।
11. समीपवर्ती ग्रहण जिस नक्षत्र में हुआ हो, उस नक्षत्र को अगले ग्रहणपर्यंत शुभ कार्यों से दूर रखा जाता है।
12. जन्म राशि से चौथी, आठवीं और बारहवीं राशि पर जब चन्द्रमा हो, उस समय प्रारम्भ किए गए कार्य नष्ट हो जाते हैं।
13. शुभ कार्यों के प्रारम्भ में भद्राकाल से बचना चाहिए।
14. चन्द्रमा जब कुम्भ अथवा मीन राशि में हो, उस समय घर में अग्नि संबंधी वस्तुएँ जैसे ईधन, गैस सिलेंडर, प्रेट्रोल, अस्त्र-शस्त्र, नए बर्तन, बिजली का सामान अथवा मशीनरी नहीं लानी चाहिए।
15. विवाह के लिए मंगलवार को कन्या का और सोमवार को वर का वरण नहीं करना चाहिए।
16. जन्मवार एवं जन्म नक्षत्र में नए कपडे पहनना अच्छा होता है।
17. पुष्य नक्षत्र केवल विवाह को छोड़कर अन्य सभी कार्यों में शुभ होता है।
18. देवशयन अवधि में बालक को स्कूल में दाखिला नहीं दिलाना चाहिए।
19. चार (गतिशील यात्रा संबंधी) कार्यों हेतु चार लग्न (मेष, कर्क, तुला, मकर), स्थिर कार्यों (विवाह एवं भवन निर्माण) के लिये स्थिर लग्न (वृषभ, सिंह, वृश्चिक, कुंभ) तथा द्विस्वभाव राशियों का पूर्वार्ध स्थिर कार्यों के लिये प्रयोग किया जा सकता है।
20. घर के किसी बुजुर्ग का श्राद्ध दिवस हो अथवा मृत्यु तिथि हो, उस दिन भी किसी नए कार्य की शुरूआत नहीं करनी चाहिए।
21. साक्षात्कार लेने और देते अथवा परीक्षा फ़ार्म भरने में नन्दा और ज़या तिथियाँ शुभ मानी जाती हैं।
22. सूर्य जब बुध और गुरू की राशियों में हो, तो उस समय नए भवन में प्रवेश नहीं करना चाहिए।
23. मंगलवार को धन उधार नहीं लेना चाहिए और बुधवार को नहीं देना चाहिए।
24. मंगलवार को ऋण चुकाना और बुधवार को धन संग्रह करना शुभ होता है।
25. सोमवार और शनिवार को पूर्व दिशा में, गुरूवार को दक्षिण दिशा में, रविवार और शुक्रवार को पश्चिम दिशा में, मंगलवार और बुधवार को उत्तर दिशा में व्यावसायिक अथवा पारिवारिक कार्य हेतु यात्रा नहीं करनी चाहिए।