24 मई 2011

अहम को न बनाएं अहम


निरूद्ध और दीक्षा एक ही आँफिस में काम करते हैं। दोनों की शादी को साल भर भी नहीं हुआ कि आए दिन दोनों के बीच छोटी-छोटी बातों को लेकर लड़ाई होती रहती है, फिर चाहे वे आँफिस हो या घर पर। एक दिन तो हद ही हो गई जब दीक्षा ने अनिरूद्ध को अपने इंकरीमेंट के बारे में बताया तो अनिरूद्ध खुश होने के बजाए नाराज होने लगा। गुस्से में उसने दीक्षा से कहा, 'हाँ-हाँ तुम्हारी तो सैलरी बढनी ही थी, तुम सबकी चहेती जो हो। हर कोई तुम्हें इतना प्यार जो करता है, मैं तो कुछ भी नहीं हूँ तुम्हारे आगे।'

अनिरूद्ध की बात सुनकर दीक्षा सकते में आ गई। उसने कहा, 'अनिरूद्ध तुम्हें क्या हो गया है? मैं और आप अलग तो नहीं हैं न, अरे आपको तो खुश होना चाहिए और आप....।'
'बस, अपनी फालतू की बातों से मेरा दिमाग मत खाऊ। तुम्हें क्या लगता है कि मैं अंधा हूँ, मुझे दिखाई नहीं देता कि तुम आँफिस में कैसे रहती हो। हर किसी से जब हंसकर बात करोगी तो सब तो तुम्हें पूछेंगे ही। अनिरूद्ध ने फिर गुस्से में कहा। 'अनिरूद्ध मुझे नहीं समझ में आता कि आपको मुझसे अब क्या परेशानी हो गई। पहले तो ऐसा कुछ नहीं था, तब तो मेरी सारी खुशियाँ आपकी थी, पर अब...। दीक्षा की बात को बीच में काटते हुए अनिरूद्ध बोला, पहले क्या था वे भूल जाओ, अब क्या है वो देखो। तुम चाहती हो कि मैं हमेशा तुमसे नीचे रहूँ, तभी तो आँफिस में भी रौब दिखाती हो, अब तो और ज्यादा दिखाओगी, क्योंकि अब प्रमोशन के साथ सैलरी भी बढी है।' बस अनिरूद्ध बहुत हो गया, अब शांत हो जाओ। मैं कुछ नहीं बोल रही हूँ और तुम हो कि अनापशनाप बोलते चले जा रही हो।' दीक्षा ने गुस्से में कहा। 'हाँ अब तो मेरी बात तुम्हें बेकार लगेगी ही।' अनिरूद्ध बोला। 'प्लीज शांत हो जाओ अनिरूद्ध, मैं बात को बढ़ाना नहीं चाहती। प्लीज चुप रहो।' दीक्षा ने कहा। 'दीक्षा एक बात कान खोलकर सुन लो, अगर तुम्हें रहना है तो मेरे हिसाब से रहो नहीं तो अभे और इसी वक्त घर छोड़कर चली जाओ।' अनिरूद्ध की यह बात सुनकर दीक्षा के पैरो तले जमीन सरक गई, उसने रोते हुए अनिरूद्ध से कहा, 'अनिरूद्ध ये आप क्या कह रहे हो, इतनी सी बात को इतना बड़ा क्यों बना रहे हो। मैं कहीं नहीं जाऊंगी। दीक्षा का इतना बोलना था कि अनिरूद्ध ने एक थप्पड़ दीक्षा के गाल पर मारा और बोला, 'ये मेरा घर है, सो प्लीज यू कैन गो।' इतना कहकर अनिरूद्ध दूसरे कमरे में चला गया और दीक्षा रोते-रोते बेडरूम में चली गई।

शादी के बाद हर पति-पत्नी के बीच छोटी-मोती नोंक-झोंक होती रहती है और यह जरूरी भी होता है क्योंकि प्यार में जब तक तकरार नहीं होती तो प्यार कैसे बढेगा। पर जब पति-पत्नी के बीच प्यार में इगो यानी अहम् आ जाता है तो हल्की-फुलकी लड़ाई भी बड़ा रूप ले लेती है। क्योंकि यह एक ऐसी भावना है, जो अपनी संतुष्टि के लिये दूसरों को नीचा दिखाने से नहीं चूकती। काउंसलर प्रांजलि मल्होत्रा कहती है, 'तेजी से बदलते समय के साथ जीवन के हर क्षेत्र में स्थापित मूल्यों के अर्थ बदल रहे हैं। कल तक महिलाओं के लिये घर की चारदीवारी से बाहर निकलना मुश्किल था, पर आज की स्त्रियाँ पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। यही उच्चता या श्रेष्ठता की भावना स्त्रियों में इगो उत्पन्न कर देती है, जिसको पुरूष प्रधान समाज स्वीकार नहीं कर पाता। वहीं मैरिज काउंसलर रिंकू कहती है, 'आज फेमिनिज्म का ज़माना है। महिलाएं पुरुषों के वर्चस्व को चुनौती दे रही हैं, जिसका असर वैवाहिक जीवन में पड़ रहा है। आज के जमाने में भी घर के सारे कार्यों के लिये पत्नी को जवाबदेह माना जाता है और यदि कोई गलती होती है तो पत्नी को ही दोषी माना जाता है। पर यदि दोनों स्वरूपों के यथार्थ को समझा जाए तो पति-पत्नी के बीच अहम् का अवसर ही नहीं आएगा। आजकल स्थिति बहुत प्रतिकूल हो चली है। पति-पत्नी आज समझौते के लिये पहल करने से पहले इगो को पहले रखते हैं, जिसका परिणाम यह हो रहा है कि रिश्ता मजबूत बनने से पहले ही टूट जाता है।'

क्या करें

अगर आप चाहते हैं कि दाम्पत्य जीवन में खुशहाली बनी रहे तो बहुत जरूरी है कि निम्न बातों का ध्यान रखें -
* अगर आपको लगता है आपके पति में कोई कमी है तो उसकी अक्षमताओं व कमजोरियों को उसके सामने बार-बार न कहें। पति जैसा भी हो पहले उसे समझें व स्वीकार करें।
* अगर आप दोनों के परिवार के किसी अन्य सदस्य को अक्षमता व कमजोरी का ज्ञान आप दोनों को है तो उसका जिक्र बाहर वालों के सामने न करें और न ही उसका मजाक उडाएं।
* किसी भी बात को प्रतिष्ठित का प्रश्न न बनाएं। यदि पति/पत्नी दोनों में कोई भी हर बात को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाने लगता है और इगो की भावना अपना लेते हैं तो परिवार में उसका महत्व ख़त्म होने लगता है।
* यदि परिवार के किसी सदस्य की कोई बात बुरी लगती है या जल्दी क्रोध आ जाता है तो आप दिल में उठने वाली भावना व विचारों को तुरंत प्रकट न करें। कुछ देर सोच-समझकर ही बात को कहें।
* पति-पत्नी दोनों एक-दूसरे के पूरक होते हैं, इसलिए एक-दूसरे की सफलता को अलग दृष्टि से नहीं देखना चाहिए।
* अगर दोनों के बीच लड़ाई हो गई है तो पहल करने की कोशिश करें। ये बात दिल से निकाल फेंकें कि हम क्यों पहले पहल करें।
* भूल से अगर कोई गलती हो गई है तो उस गलती को स्वीकारें न की गुस्सा होकर गलती को छुपाने की कोशिश करें।
* किसी भी बात को लंबा खींचना के लिये बहस न करें, बल्कि कोशिश करें कि बहस से बचें।
* एक दूसरे पर आरोप लगाने से पहले परेशानियों को समझें, उसके बाद ही कोई बात कहें।
* यदि किसी बात पर आपसी मतभेद हो गया है और दोनों में कोई भी बदलने को तैयार नहीं है तो इसे अपनी प्रतिष्ठा का मुद्दा न बनाएं।
* अपनी सफलता का श्रेय अपनी पत्नी को देना कभी न भूलें, क्योंकि वह आपकी जीवन संगिनी है।
* कितनी भी नाराजगी क्यों न हो कभी भी बातचीत बंद न करें, बल्कि इस सिलसिले को बनाए रखें।
* हमेशा ध्यान रखें कि इगो प्यार का दुश्मन है, इससे मसले सुलझते नहीं और भी उलझ जाते हैं। अतः जीवन में मधुरता व सहनशीलता के गुण अपनाएं।

2 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय बहुत सुन्दर ! प्यार,समर्पण का दूसरा नाम है सही कहा। विचारणीय ! आभार "एकलव्य"

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  2. बहुत बेहतरीन बहुत सुंदर विषय इस पर चर्चा होने अति आवयशक है क्योंकि एक छोटा सा अहम ही कई बार बहुत दूरियाँ या गलत फहमियां पैदा कर देता है ।

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