23 फ़रवरी 2011

संकष्ट चतुर्थी व्रत

यह व्रत आषाढ चतुर्थी को करते हैं। प्रात: स्नानादि दैनिक कार्य करने के बाद दाहिने हाथ में गन्ध, अक्षत, पुष्प और जल लेकर मम वर्तमानागामिसकल संकट निरसन पूर्वकसकलाभीष्टसिद्धयेसंकष्टचतुर्थीव्रतमहंकरिष्ये संकल्प करके दिनभर मौन रहकर अपना कार्य करें सायंकाल पुन: स्नान करके
तीव्रायै, ज्वालिन्यै, नन्दायै, भोगदायै, कामरूपिण्यै, उग्रायै, तेजोवत्यै,
 सत्यायैचदिक्षुविदिक्षु, मध्येविघ्ननाशिन्यैसर्वशक्तिकमलासनायैनम:
श्लोक से पीठ पूजा करने के बाद वेदी के बीच में स्वर्णादिधातु से निर्मित गणेशजी का-
गणेशाय नम: से आह्वान,विघ्ननाशिने नम: से आसन, लम्बोदराय नम: से पाद्य, चन्द्रार्धधारिणे नम: से अ‌र्घ्य, विश्वप्रियायनम: से आचमन, ब्रह्मचारिणे नम: से स्नान, कुमारगुरवे नम: से वस्त्र, शिवात्मजाय नम: से यज्ञोपवीत, रुद्रपुत्राय नम: से गन्ध, विघ्नहत्र्रे नम: से अक्षत, परशुधारिणे नम: से पुष्प, भवानीप्रीतिकत्र्रे नम: से धूप, गजकर्णाय नम: से दीपक, अघनाशिने नम: से नैवेद्य (आचमन), सिद्धिदाय नम: से ताम्बुल,सर्वभोगदायिने नम: से दक्षिणा अर्पण करके षोडशोपचारपूजनकरें। कर्पूर अथवा घी की बत्ती जलाकर नीराजन करें। दूर्वाकेअङ्कुरलेकर ॐगणाधिपायनम:, उमपपुत्रायनम:, अघनाशायनम:, विनायकायनम:,
ईशपुत्रायनम:, सर्वसिद्धिप्रदायककुमारगुरवेतुभ्यंपूजयामिप्रयत्नत:॥
स्तुति से दूर्वा अर्पण कर-यज्ञेन यज्ञ से मन्त्र-पुष्पांजलि अर्पण करें।
संसारपीडाव्यथितं हि मां सदा संकष्टभूतंसुमुख प्रसीद।
त्वंत्राहि मां मोचयकष्टसंघान्नमोनमोविघ्नविनाशनाय॥
इस श्लोक से नमस्कार करके
श्रीविप्राय नमस्तुभ्यंसाक्षाद्देवस्वरूपिणे।
गणेशप्रीतयेतुभ्यंमोदकान्वैददाम्यहम्॥
इससे मोदक, सुपारी, मूंग और दक्षिणा रखकर वायन(बायना) दें। चन्द्रोदय होने पर चन्द्रमा का गन्ध-पुष्पादि से विधिवत् पूजन करके
ज्योत्स्नापते नमस्तुभ्यंनमस्तेज्योतिषांपते।
नमस्तेरोहिणीकान्तगृहाणाघ्र्यनमोऽस्तुते॥
इससे गणेशजीको तीन अ‌र्घ्यप्रदान करें।
तिथीनामुत्तमे देवि गणेशप्रियवल्लभे।
गृहाणाघ्र्यमयादत्तंसर्वसिद्धिप्रदायिके॥
इससे पुन:अ‌र्घ्यदें।
आयातस्त्वमुमापुत्र ममानुग्रहकाम्यया।
पूजितोऽसिमयाभक्त्यागच्छ स्थानंस्वकंप्रभो॥
इससे विसर्जन कर ब्राह्मणों को भोजन करायें और स्वयं नमक वर्जित भोजन करें।

Part 2 


व्यासजीने कहा है कि अधिक मास में चतुर्थी को गणेश्वरके नाम से पूजा करनी चाहिए। पूजन की विधि षोडशोपचारहै। सर्व प्रथम पंचामृत से स्नान कराना चाहिए। लाल कनेर का फूल चढ़ा कर लड्डू आदि का भोग लगावें। लाल चन्दन, रोली, अक्षत और दूब को एक-एक नाम से अलग-अलग चढ़ायें।
तत्पश्चात् विश्वप्रियाय नम: से वस्त्र, पुष्टिदाय नम: से चन्दन,
विनायकाय नम: से पुष्प,
उमासुताय नम: से धूप,
रूद्रप्रियाय नम: से दीप,
विघ्ननाशिने नम: से नैवेद्य अर्पित करें।
फलदात्रे नम: से ताम्बूल,
सङ्कष्टनाशिने नम: से फल चढ़ावें।
इसके बाद विघ्नविनायकगणेश जी की प्रार्थना करें।
संसारपीडाव्यथितंभर्यातंक्लेशान्वितंमां सुमुख! प्रसीद।
त्रायस्वमां दु:खदारिद्यनाशन!नमोनमोविघ्नविनाशनाय॥
हे सुन्दर मुखवालेगणेशजी!मैं भव-बाधा से ग्रस्त, भय से पीडि़त और क्लेशों से सन्तप्त हूं, आप मेरे पर प्रसन्न होइए। हे दु:ख-दारिद्रय के नाशक गणनायकजी! आप मेरी रक्षा करें। हे विघ्नों के विनाशक! आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। फिर निम्नांकित मंत्र से पुष्पांजलि देकर चन्द्रमा को अ‌र्घ्यदेवें।
पुष्पांजल्यामिमंमन्त्रंचन्द्रायाऽघ्र्यप्रदापयेत्।
क्षीरम्भोधि-समुद्भूत!नमोनमोविघ्नविनाशनाय॥
हे क्षीरसागरसम्भव!हे द्विजराज,हे षोडश कलाओं के अधिपति। शंख से सफेद फूल, चन्दन, जल, अक्षत और दक्षिणा लेकर, हे रोहिणी के सहित चन्द्रमा! आप मेरे अ‌र्घ्यको स्वीकार करें, मैं आपको प्रणाम करता हूं। तदनन्तर ब्राह्मण को भोजन करावें। लड्डू और दक्षिणा दें। देवता और ब्राह्मण से बचे अन्न द्वारा स्वयं आहार ग्रहण करें। रात्रि में भूमि पर शयन करें, लालच विहीन होकर क्रोध से दूर रहें। हर महीने गणेश जी की प्रसन्नता के निमित्त व्रत करें। इसके प्रभाव से विद्यार्थी को विद्या, धनार्थी को धन प्राप्ति एवं कुमारी कन्या को सुशील वर की प्राप्ति होती है और वह सौभाग्यवती रहकर दीर्घकाल तक पति का सुखभोग करती है। विधवा द्वारा व्रत करने पर अगले जन्म में वह सधवा होती हैं एवं ऐश्वर्य-शालिनी बन कर पुत्र-पौत्रादि का सुख भोगती हुई अंत में मोक्ष पाती है। पुत्रेच्छुको पुत्र लाभ होता एवं रोगी का रोग निवारण होता है। भयभीत व्यक्ति भय रहित होता एवं बंधन में पड़ा हुआ बंधन मुक्त हो जाता है।

1 टिप्पणी:

  1. बहुत ख़ुशी होती है ये जानकार क आज के युग में भी धार्मिकता का परचार इस परकार किया जा रहा है..बहुत बहुत शुभकामनाये आपको..

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