31 जुलाई 2010

मायावती ( Mayavati )


सपा प्रमुख मायावती देश की पहली ऐसी महिला हैं, जिन्होंने जमीन से उठ कर राजनीति के सब से ऊंचे पायदान पर कब्जा किया है देश के सब से बड़े प्रदेश की 4 बार मुख्यमंत्री बनांते का मौक़ा उन को मिला हिया। विरोध की राजनीति और विरोधियों का आक्रामक मुकाबला कर के मायावती ने दिखा दिया है की वे पलटवार में माहिर हैं। मायावती का यही आक्रामक ढंग उन के वोटबैंक को पसंद आता है, क्योंकि दलित वर्ग उसी के साथ रहना चाहता है, जो उस की रक्षा करने में सक्षम हो। 

मायावती का जन्म 15 जनवरी, 1956 को गाजियाबाद के छोटे से गाँव बादलपुर में प्रभुदयाल और रामरती के घर हुआ था। मायावती ने मेरठ विश्वविद्यालय से बी.एड. और दिल्ली विश्वविद्यालय से क़ानून की डिग्री हासिल की। दिल्ली के एक प्राइमरी स्कूल में बच्चों को पढ़ाने की नौकरी भी की।

उस समय मायावती दिल्ली के इन्द्रपुरी इलाके में छोटे से घर में रहती थी। 1985 में मायावती की मुलाक़ात कांशीराम से हुई। इस बाद बहुजन समाज पार्टी बनी तो मायावती उस की शुरूआती सदस्य बनीं।

मेहनत पर भरोसा
1984 में ही मायावती ने पहली बार कैराना लोकसभा निर्दलीय के रूप में चुनाव लडा। इस चुनाव में उन को 44 हजार वोट ही मिले। वे चुनाव हार गईं।
1989 में मायावती ने बिजनौर क्षेत्र से पहली बार चुनाव जीता।  1998 और 1999 में अकबरपुर से लोकसभा, 1994 में राज्यसभा की सदस्य बनीं। 1996 और 2002 में वे विधायक भी बनीं। 1995 में मायावती पहली बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं। 1997 और 2002 में भी मायावती मुख्यमंत्री बनीं। 3 बार मुख्यमंत्री बनने वाले वे पहली दलित महिला बनीं। सितम्बर, 2003 में मायावती बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष बनीं। 15वें विधानसभा चुनाव के बाद 2007 में मायावती चौथी बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं।

मायावती के काम करने का तरीका ही उन की सफलता की कहानी को बयान करता है। मायावती की दिन की शुरुआत सुबह  4 बजे ही हो जाती है, सुबह लगभग आधा घंटा वे घास पर नंगे पैर चलती हैं। पीने में कम गरम चाय उन को पसंद है। इस के बाद जिन लोगों को एक दिन पहले काम सौंपे होते हैं, उन से फोने पर बातचीत करती हैं। मायावती के पास अपने सभी पार्टी पदाधिकारियों के फोन नंबर होते हैं। फोन नंबर की या लिस्ट समयसमय पर संसोधित होती रहती है।
सुबह 7 बजे के बाद मायावती मुलाकातियों से मिलती हैं। इस के बाद कुछ समय वे पार्टी, समाज और राजनीति पर कुछ न कुछ लिखती हैं।

30 जुलाई 2010

ममता बनर्जी ( Mamta Banarjee )


न दिनों भारतीय राजनीति में अगर तेजतर्रार और जुझारूपन से भरपूर महिला की बात की जाए तो ममता बनर्जी का नाम सब से पहले उभर कर सामने आता है। ममता बनर्जी को ये विशेषताएं उन्हें अपने स्वतंत्रता सेनानी पिता प्रोमिलेश्वर बनर्जी से विरासत में मिलीं। जीवन में जो कुछ भी पाया, अपने दम पर हासिल किया। वे एक बार जो ठान लेती हैं, उस पर टिकी रहती हैं। ममता की माँ गायत्री बनर्जी का कहना है की वे बचपन से ही जिद्दी स्वभाव की रही हैं। एक बार मन बना लिया तो हर हाल में उसे पूरा करना है।

राज्य की सीपीएम के साथ तमाम राजनीतिक मुद्दों पर विरोध प्रदर्शन के दौरान राज्य पुलिस से ले कर सीपीएम कैडरों तक के नाम उन पर लाठीडंडे  बरसाए गए, इस दौरान मीडिया ने उन्हें अग्निकन्या नाम दिया। लेकिन तब उन की राजनीति राष्ट्रीय कांग्रेस के झंडे तले परवान चढ़ रही थी। यह वह समय था जब राज्य में कांग्रेस सीपीएम की 'बी टीम' के रूप में जानी जाती थी।

राजनीति में 1976 में महिला कांग्रेस की महासचिव के पद से ममता बनर्जी की राजनीतिक रेल चली। 1984 में कोलकाता के यादवपुर संसदीय क्षेत्र से पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ कर सीपीएम के हैवीवेट सोमनाथ चटर्जी को हरा कर संसद में सब से कम उम्र की सांसद का रूतबा हासिल किया। 1984 में इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद राजीव गाँधी के प्रधानमंत्रित्व काल में वे अखिल भारतीय राष्ट्रीय युवा कांग्रेस की महासचिव बनीं। लेकिन 1989 में कांग्रेस के खिलाफ चली हवा में ममता को झटका लगा और वे चुनाव हार गईं। इस दौरान उन्होंने खुद को पश्चिम बंगाल की राजनीति में झोंक किया। 1991 में उन की वापसी हुई। राव सरकार में उन्हें मानव संसाधन मंत्रालय, खेल और युवा मामलों के साथसाथ महिला व शिशु विकास मंत्रालय का दायित्व भी दिया गया।

व्यक्तित्व की धनि
लेकिन ममता का सनकी मिजाज पहली बार तब खुल कर सामने आया, जब उन्होंने खेल मंत्रालय में रहते हुए कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में रैली निकाल कर खेल मामले में केन्द्रीय सरकार के रवैये पर नाराजगी जताते हुए इस्तीफा देने की घोषणा कर दी।

अपनी एक अलग पार्टी तृणमूल कांग्रेस की स्थापना की और नए सिरे से तृणमूल कांग्रेस को राज्य की शाशाक्त विरोधी पार्टी के रूप में स्थापित करने का काम शुरू किया। इस काम में ममता सफल रहीं।

भारतीय राजनीति में बहुत सारी महिलाएं हैं, जिन्हों एक मुकाम हासिल किया। लेकिन ममता इन सब से अलग हैं। अब उन्हें पश्चिम बंगाल के 2011 में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिये भावी मुख्यमंत्री के रूप में देखा जा रहा है।

29 जुलाई 2010

टीना का करीब होना अच्छा लगता था ( Tina loved to be around )

टीना मुनीम से मुलाकात फिल्म के सेट पर हुई थी। वह मेरा ऑटोग्राफ लेने आई थी। मैंने पूछा- 'क्या आप बॉम्बे से हैं?' हाँ, उसने कहा। स्कूल जाती हो। टीना ने कहा अब नहीं। मैं अरूबा में थी और मैंने मिस फोटोजेनिक का खिताब जीता है। फिर तुम्हें भी मुझे ऑटोग्राफ देना होगा। क्या करना चाहती हो? मैंने कुछ सोचा नहीं है टीना ने कहा। मैंने पूछा क्या फिल्मों में जाने के बारे में कभी सोचा है? आई डोंट केयर, टीना ने कहा और जब मैंने उससे स्क्रीन टेस्ट पर आने के लिए कहा तो वह मान गई। मैंने फिल्म 'देस परदेस'की नायिका को चुन लिया था। टीना का करीब होना अच्छा लगता था। ऐसा लगता था कि बुलबुले वाली रेड वाइन आपको परोस दी गई हो। टीना खूबसूरत, मसखरी लड़की थी, जिसे सभी पसंद करते थे।

कुछ यादें, कुछ बातें
* आपात काल के दौरान देव आनंद व दिलीप कुमार को दिल्ली में यूथ कांग्रेस की रैली में शामिल होने के लिए बुलाया गया था। इसके बाद टेलीविजन पर दोनों को संजय गाँधी के बारे में अच्छा बोलने के लिए कहा गया। देव आनंद ने साफ मना कर दिया और इसके बाददेव आनंद की फिल्में व खबरें टेलीविजन व अन्य सरकारी माध्यमों में आना बंद हो गई थीं।
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* राम जेठमलानी ने देव आनंद से जयप्रकाश नारायण के लिए एक रैली को संबोधित करने के लिए कहा था। सम्पूर्ण फिल्म इंडस्ट्री इंदिरा गाँधी की ओर थी और मैं एक तरफ था। मैंने एक रात्रि का समय माँगा और वह रात मेरे जीवन की सबसे कठिन रातों में से थी। दूसरेदिन मैंने तय किया कि मैं रैली में जाऊँगा। रैली में जाकर मैंने सही किया और चुनाव में जनता पार्टी सबसे आगे रही।
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* मुमताज भी देव आनंद के रूप की कायल थी। फिल्म 'तेरे मेरे सपने' के सेट पर जब मुमताज को यह पता पड़ा कि देव नेपाल में कोई फिल्म करने जा रहे हैं, तब उसने देव से कहा कि वे भी फिल्म करना चाहती हैं। फिल्म 'हरे रामा हरे कृष्णा' के लिए जब मैंने उसे बहनके किरदार के बारे में बताया तब मुमताज बोली किसी भी लड़की के लिए यह रोल गजब का है, लेकिन मुझे नहीं लगता कि मैं तुम्हारी बहन का रोल करना चाहूँगी। मुमताज ने अपने जवाब के साथ यह भी कहा कि क्योंकि देव जब तुम मेरे करीब होते हो तो मेरे अंदर बहनजैसे भाव नहीं उठते। मैंने कहा कि मेरे साथ रोमांटिक लीडिंग लेडी बनना चाहोगी? मुमताज ने स्टाइल के साथ जवाब दिया इजाजत है।

शीला दीक्षित ( Sheela Dixit )


जधानी में महंगाई और क़ानून व्यवस्था जैसी चुनौतियों का मुकाबला कर रही मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ऐसी महिला नेता हैं, जो मौकेबेमौके लोगों को अपने दायित्व व सामाजिक एहसास दिलाने का मौक़ा नहीं छोड़ना चाहतीं।

पंजाब के कपूरथला में जन्मीं शीला दीक्षित की शुरूआती शिक्षा दिल्ली के कान्वेंट आफ जीसस एंड मेरी स्कूल तथा कालेज की शिक्षा निरान्दा हाउस से हुई। उन की शादी भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी विनोद दीक्षित से हुई।

सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्री 
शीला दीक्षित 1984 से 1989 तक कन्नौज संसदीय क्षेत्र से लोकसभा सदस्य थीं। वे लोकसभा की प्राक्कलन समिति में रहीं। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के स्टेटस औफ़ विमन  के लिये बने आयोग में भारत की नुमाइंदगी की।

1986 से 1989 में वे केन्द्रीय मंत्रिमंडल में संसदीय मामले की राज्यमंत्री रहीं तथा बाद में प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री बनीं।

72 वर्षीय शीला दीक्षित पिछले साल लगातार तीसरी बार दिल्ली की मुख्य मंत्री बनीं हैं। 1988 में कांग्रेस ने पहली बार उन्हें मुख्यमंत्री के तौर पर दिल्ली की बागडौर सौंपी थी।

इस से पहले उन्हें दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया था। मुख्यमंत्री के रूप में शीला दीक्षित की प्राथमिकता प्रशासनिक स्तर पर सहिष्णुता, धर्मनिरपेक्षता तथा विकास पर अमल कराना रही है।

दिल्ली की मुख्यमंत्री के रूप में वे 2008 में देश की सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्री चुनी गईं। एनडीटीवी की ओर से उन्हें 2009 का 'पोलिटिशियन और दी ईयर' चुना गया। 70 के दशक में वे यंग विमान एसोसिएशन की अध्यक्ष थीं।

समस्याओं के प्रति गंभीर
राजधानी की विभिन्न समस्याओं को शीला दीक्षित ने हमेशा गंभीरता से लिया और दृढ़ता के साथ उन को हल कराने के प्रयास किये।
पुत्र संदीप दीक्षित (सांसद पूर्वी दिल्ली) व पुत्री लतिका सैयद की माँ शीला दीक्षित सादगी में यकीन रखती हैं।
साड़ी का सादा पहनावा, सादा खानपान ही उन्हें पसंद है। राजनीति के गढ़ दिल्ली में किसी महिला का राजनीतिक चालबाजियों, मक्कारियों, कूटनीतिक जोड़तोड़ की ओछी हरकतों के बीच खुद को साबित करना बेहत मुशिकल है।

जयललिता ( Jaylalita )



वन के हर संघर्ष को मुंहतोड़ जवाब दे कर ही अम्मा यानी जयललिता आज नारी शक्ति का प्राय बन गई हैं। 24 फरवरी, 1948 को जयललिता का जन्म तमिलनाडु के एक अय्यर परिवार में हुआ। महज 2 साल की उम्र में जयललिता के पिता उन्हें माँ के साथ अकेला छोड़ चल बसे।

इस के बाद शुरू हुआ गरीबी और अभाव का वह दौर जिस ने जयललिता को इतना मजबूत बना दिया की आज वे विषम परिस्थितियों में भी खुद को सहज बनाए रखती हैं। विपक्ष के लिये ख़तरा और अपने चाहने वालों के बीच अम्मा के नाम से मशहूर जयललिता ने अपनी राह अपनेआप तय की।

पिता की मौत के कुछ समय बाद ही जयललिता पढ़ाई छोड़ कर माँ संध्या के साथ चेन्नई आ गईं। जीवनयापन के लिये संध्या ने तमिल सिनेमा में काम करना शुरू कर दिया और जयललिता की पढाए भी आगे बढ़ने लगी। माँ के मार्गदर्शन में उन्होंने फिल्मों में जाने वाली राह चुनी।

सिनेमा जगत में फहराया परचम
जयललिता न सिर्फ तमिल सिनेमा बल्कि तेलुगु सिनेमा में भी पहचान बनाई। 1972 में तमिलनाडु सरकार ने उन्हें कलईमामनी अवार्ड दिया। कुछ हिंदी फिल्मों में काम करने के साथसाथ उन्होंने कई फिल्मों के गीतों को अपनी आवाज भी दी।

राजनीति के गलियारे में
जयललिता के राजनीतिक सफ़र की शुरूआत एमजीआर के सान्निध्य में हुई। 1981 में जयललिता ने एआईएडीएमके एक साथ पार्टी में थे तब तक जयललिता की पार्टी में काफी सुनी जाती थी, लेकिन 1987 में एमजीआर की मौत के बाद जब एमजीआर की दूसरी पत्नी वीएन जानकी को पार्टी ने मुख्यमंत्री बनाया, तो पार्टी में जयललिता की मजबूती घट गई। लेकिन जब 1 साल बाद ही करूणानिधि ने द्रमुक बना कर पार्टी को 2 हिस्सों में बाँट दिया, तो अन्नाद्रमुक की कमान जयललिता को सौंपी गई। बस, फिर क्या था जयललिता ने एकएक कदम संभालसंभाल कर रखा और साल  1989 में वे पहली बार चुनाव जीत कर विपक्ष की चुनाव जीतने वाली महिला नेता बनीं।

अपने राजनीतिक दौर में उन्होंने बहुत काम दिए। महिलाओं को सक्षम बनाने हेतु सेल्फ हेल्प कार्यक्रमों का आयोजन, शिक्षा को बढ़ावा और बरसात के पानी को संरक्षित करने जैसे मुद्दों पर खूब काम किये।

जयललिता का नाम कई बार अपराधिक मामलों के लिये भी उछाला गया। सरकारी धन को अपने शौक व सुखसाधनों की पूर्ती के लिये इस्तेमाल करने का आरोप भी उन पर लगा। मीडिया पर भी जयललिता ने दबाव बनाने की कोशिश की और 'द हिन्दू' के सम्पादक तक को अरैस्ट करा  दिया। वजह महज यह रही की उस ने जयललिता के खिलाफ छापा था। 

27 जुलाई 2010

उनकी बाँहों में... ( In his arms ... )

हमेशा एक ऐसे आदर्श व्यक्ति की चाह रखती थी जो कुछ गंभीर तो कुछ बुद्धू सा हो, जिम्मेदार होने के साथ हाजिरजवाब हो और प्यार देने के मामले में भी बिल्कुल सच्चा हो। और बहुत से लोगों से मिलने के बाद मेरी आशाएँ और भी बढ़ गई थीं।

यहाँ गोआ में कितने खूबसूरत समुद्र तट हैं, चारों ओर सुंदरता मानो बिखरी हुई है। मनोहारी सूर्यास्त के दृश्य और गुजारा गया समय तो बहुत ही बेहतरीन है। अपने प्रियतम की बाहों में सिमटकर सूर्यास्त देखते हुए मुझे एक पल को अकेलापन महसूस नहीं हुआ। सुबह उसकी मुस्कान के साथ होती है तो दोपहर की गर्माहट को हम हाथों में हाथ डालकर घूमते हुए महसूस करते हैं।

उस पल को याद करती हूँ जब हम बस में सफर कर रहे थे और मैं बीच में फँसी बैठी थी। मेरे पड़ोस में कौन बैठा है इसका पता मुझे तब चला जब मेरी सहेली ने धूप से बचने के लिए खिड़की बंद की। वह मेरी ओर देखकर मुस्कराया, वैसे तो मैं अनजान लोगों की तरफ देखना भी पसंद नहीं करती लेकिन न जाने क्या बात थी उस निश्चल मुस्कान में कि मैं भी जवाब में मुस्करा दी। फिर उसने हैलो कहा मैंने जवाब दिया। इसके बाद बातचीत में घंटों ऐसे बीत गए जैसे हम बरसों से एक दूसरे को जानते हों। थोड़ी देर बाद बस रुकी और वह घूमने के लिए नीचे उतरा। मेरी सहेली ने चुटकी ली 'अरे मैं भी साथ में हूँ मुझसे तो बात ही नहीं की आपने और लगीं है उसे अजनबी से बतियाने में।' सहेली की बात मुझे लग गई। जब वह वापिस आया तो जानबूझकर मैंने अपना मुँह एक किताब में गड़ा लिया। जब भी किताब से नजरें हटाकर देखती तो पाती कि वह मुझे ही देख रहा है।

बस से हम लोग साथ ही उतरे। उसे उसी शहर की किसी और कॉलोनी में जाना था। फोन नंबर और घर के पतों का आदान-प्रदान पहले ही हो चुका था। मुझे लग तो रहा था कि वह फोन जरूर करेगा। उसने फोन किया, फिर से बहुत सी बातें हुई और यह सिलसिला चल निकला। मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि यूँ ही सफर के दौरान इतने अच्छे व्यक्ति से मुलाकात हो जाएगी। अरे उसका नाम तो मैंने बताया ही नहीं? उसका नाम है अवनीश। अवनीश बेहद अच्छा इंसान है स्वार्थ तो उसके मन में रत्ती भर भी नहीं है। वह हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहता है। अपने लिए उसके पास समय नहीं है लेकिन दूसरों के लिए समय निकाल ही लेता है।

अभी जब हम गोआ में हैं तब भी वह अपने कंप्यूटर पर लगा है और मुसीबत में पड़े दोस्तों की मदद कर रहा है। कभी-कभी तो वह दूसरों के लिए रात भर भी जागता है लेकिन सुबह उठकर जब भी मेरे साथ बीच पर हाथों में हाथ लिए टहलता है तो मुझे लगता है कि सारे जहाँ की खुशियाँ सिमटकर मेरे हाथों में आ गई हैं।

मुझे तो भरा पूरा परिवार मिला है पर उसने परिवार की खुशियाँ नहीं देखीं। उसके पिता बहुत अच्छे थे लेकिन उसने उन्हें बहुत जल्दी खो दिया। माँ भी उसे प्यार नहीं दे पाई क्योंकि वे मानसिक रोग से पीड़ित हैं। वह माँ की सेवा भी करता है। उसने जीवन में बहुत कठिनाइयाँ देखीं हैं और अब मैंने उसे अपनी कोमल बाँहों का सहारा दिया है। आज हमारी सगाई हो चुकी है और हम सोचते हैं कि उस दिन बस में मुलाकात नहीं होती तो क्या होता? आज हम गोआ में हैं और एक दूसरे से बहुत खुश हैं। वह कुछ भी ज्यादा नहीं चाहता पर मैं उसे सब कुछ देना चाहती हूँ।

सुषमा स्वराज ( Sushma Swaraj )


र्वश्रेष्ठ सांसद के ख़िताब से नवाजी गईं सुषमा स्वराज लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष जैसे प्रतिष्ठित और महत्वपूर्ण पद हैं। इस से पहले वे अपने छात्र जीवन में एस.डी। कालेज में 1973 में 3 बार सर्वश्रेष्ठ कैडेट होने का भी गौरव हासिल किया था। 1977 में जब वे पहली बार हरियाणा  की  श्रममंत्री  बनाई गई  थीं, तब उन की उम्र महज 25 साल थी। कम उम्र में मंत्री बन जाने का उन का रिकॉर्ड अभी भी कायम है। विशेष दम्पती होने का रिकॉर्ड भी लिम्का बुक आफ रिकार्ड्स में उन के नाम दर्ज है।

14 फरवरी के दिन जब सारी दुनिया वैलेंटाइन दे मना रही होती है तब सुषमा स्वराज अपना जन्मदिन मनाती हैं। 1952 में इसी दिन अम्बाला छावनी में वे जन्मी थीं।

बुलंद हौसले
जयप्रकाश नारायण में खासी प्रभावित सुषमा स्वराज कैबिनेट मंत्री भी रहीं, दिल्ली की मुख्यमंत्री भी बनीं और भारतीय जनता पार्टी की तरफ से पहली महिला मंत्री बनने का गौरव भी उन्हें हासिल है। उन के पति कौशल स्वराज भी राजनीति से जुड़े  रहे हैं। वे राज्यसभा के सदस्य और मिजोरम के राज्यपाल रहे हैं।

सुषमा स्वराज में आखिर वह कौन सी बात है, जो उन्हें सफल बनाती है? इस का जवाब ढूंढ पाना आसान काम नहीं है। वे शालीन हैं, अच्छी वक्ता हैं और घोषित तौर पर किसी गुट में कभी नहीं रहीं। अटल और आडवानी दोनों उन की योग्यता का मूल्यांकन करते हुए उन्हें जिम्मेदारियां सौंपते रहे हैं। जब इन का युग ख़त्म हुआ तो वे एक तरह से खुद भाजपा की मुखिया बन गईं। बेल्लारी से सोनिया गाँधी के खिलाफ चुनाव लड़ने की हिम्मत भी उन्होंने की थी तो अब लोकसभा में सोनिया को घेरने की अहम् जिम्मेदारी भी उन्हीं पर है।

सोनिया गाँधी से उन की चिढ उस वक्त उजागर हुई थी जब 2004 में प्रधानमंत्री बनने के मसले पर सुषमा ने विरोधस्वरूप सिर मुंडाने की घोषणा कर दी थी। हिन्दू दर्शन में इस कृत्य के अपने मायने होते हैं। लिहाजा, सुषमा की धौंस को देश हलके ढंग से नहीं ले पाया था। मगर राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनें तो उन्हें कोई एतराज नहीं।

घरगृहस्थी को भी वे पर्याप्त समय  देती हैं और खुद की फिटनेस के प्रति भी सजग रहती हैं। 58 साल की उम्र में भी उन की फुर्ती देखते बनाती है। बड़ी बड़ी आँखें, लम्बे बाल और मौसम के हिसाब से शालीन पहनावा और इस सब से ज्यादा आकर्षित करती है उन के माथे पर लगी बड़ी बिंदी।

महाभारत - धृतराष्ट्र, पाण्डु तथा विदुर का जन्म

सत्यवती के चित्रांगद और विचित्रवीर्य नामक दो पुत्र हुये। शान्तनु का स्वर्गवास चित्रांगद और विचित्रवीर्य के बाल्यकाल में ही हो गया था इसलिये उनका पालन पोषण भीष्म ने किया। भीष्म ने चित्रांगद के बड़े होने पर उन्हें राजगद्दी पर बिठा दिया लेकिन कुछ ही काल में गन्धर्वों से युद्ध करते हुये चित्रांगद मारा गया। इस पर भीष्म ने उनके अनुज विचित्रवीर्य को राज्य सौंप दिया। अब भीष्म को विचित्रवीर्य के विवाह की चिन्ता हुई। उन्हीं दिनों काशीराज की तीन कन्याओं, अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका का स्वयंवर होने वाला था। उनके स्वयंवर में जाकर अकेले ही भीष्म ने वहाँ आये समस्त राजाओं को परास्त कर दिया और तीनों कन्याओं का हरण कर के हस्तिनापुर ले आये। बड़ी कन्या अम्बा ने भीष्म को बताया कि वह अपना तन-मन राज शाल्व को अर्पित कर चुकी है। उसकी बात सुन कर भीष्म ने उसे राजा शाल्व के पास भिजवा दिया और अम्बिका और अम्बालिका का विवाह विचित्रवीर्य के साथ करवा दिया।

राजा शाल्व ने अम्बा को ग्रहण नहीं किया अतः वह हस्तिनापुर लौट कर आ गई और भीष्म से बोली, "हे आर्य! आप मुझे हर कर लाये हैं अतएव आप मुझसे विवाह करें।" किन्तु भीष्म ने अपनी प्रतिज्ञा के कारण उसके अनुरोध को स्वीकार नहीं किया। अम्बा रुष्ट हो कर परशुराम के पास गई और उनसे अपनी व्यथा सुना कर सहायता माँगी। परशुराम ने अम्बा से कहा, "हे देवि! आप चिन्ता न करें, मैं आपका विवाह भीष्म के साथ करवाउँगा।" परशुराम ने भीष्म को बुलावा भेजा किन्तु भीष्म उनके पास नहीं गये। इस पर क्रोधित होकर परशुराम भीष्म के पास पहुँचे और दोनों वीरों में भयानक युद्ध छिड़ गया। दोनों ही अभूतपूर्व योद्धा थे इसलिये हार-जीत का फैसला नहीं हो सका। आखिर देवताओं ने हस्तक्षेप कर के इस युद्ध को बन्द करवा दिया। अम्बा निराश हो कर वन में तपस्या करने चली गई।

विचित्रवीर्य अपनी दोनों रानियों के साथ भोग विलास में रत हो गये किन्तु दोनों ही रानियों से उनकी कोई सन्तान नहीं हुई और वे क्षय रोग से पीड़ित हो कर मृत्यु को प्राप्त हो गये। अब कुल नाश होने के भय से माता सत्यवती ने एक दिन भीष्म से कहा, "पुत्र! इस वंश को नष्ट होने से बचाने के लिये मेरी आज्ञा है कि तुम इन दोनों रानियों से पुत्र उत्पन्न करो।" माता की बात सुन कर भीष्म ने कहा, "माता! मैं अपनी प्रतिज्ञा किसी भी स्थिति में भंग नहीं कर सकता।"

यह सुन कर माता सत्यवती को अत्यन्त दुःख हुआ। अचानक उन्हें अपने पुत्र वेदव्यास का स्मरण हो आया। स्मरण करते ही वेदव्यास वहाँ उपस्थित हो गये। सत्यवती उन्हें देख कर बोलीं, "हे पुत्र! तुम्हारे सभी भाई निःसन्तान ही स्वर्गवासी हो गये। अतः मेरे वंश को नाश होने से बचाने के लिये मैं तुम्हें आज्ञा देती हूँ कि तुम उनकी पत्नियों से सन्तान उत्पन्न करो।" वेदव्यास उनकी आज्ञा मान कर बोले, "माता! आप उन दोनों रानियों से कह दीजिये कि वे एक वर्ष तक नियम व्रत का पालन करते रहें तभी उनको गर्भ धारण होगा।" एक वर्ष व्यतीत हो जाने पर वेदव्यास सबसे पहले बड़ी रानी अम्बिका के पास गये। अम्बिका ने उनके तेज से डर कर अपने नेत्र बन्द कर लिये। वेदव्यास लौट कर माता से बोले, "माता अम्बिका का बड़ा तेजस्वी पुत्र होगा किन्तु नेत्र बन्द करने के दोष के कारण वह अंधा होगा।" सत्यवती को यह सुन कर अत्यन्त दुःख हुआ और उन्हों ने वेदव्यास को छोटी रानी अम्बालिका के पास भेजा। अम्बालिका वेदव्यास को देख कर भय से पीली पड़ गई। उसके कक्ष से लौटने पर वेदव्यास ने सत्यवती से कहा, "माता! अम्बालिका के गर्भ से पाण्डु रोग से ग्रसित पुत्र होगा।" इससे माता सत्यवती को और भी दुःख हुआ और उन्होंने बड़ी रानी अम्बालिका को पुनः वेदव्यास के पास जाने का आदेश दिया। इस बार बड़ी रानी ने स्वयं न जा कर अपनी दासी को वेदव्यास के पास भेज दिया। दासी ने आनन्दपूर्वक वेदव्यास से भोग कराया। इस बार वेदव्यास ने माता सत्यवती के पास आ कर कहा, "माते! इस दासी के गर्भ से वेद-वेदान्त में पारंगत अत्यन्त नीतिवान पुत्र उत्पन्न होगा।" इतना कह कर वेदव्यास तपस्या करने चले गये।

समय आने पर अम्बा के गर्भ से जन्मांध धृतराष्ट्र, अम्बालिका के गर्भ से पाण्डु रोग से ग्रसित पाण्डु तथा दासी के गर्भ से धर्मात्मा विदुर का जन्म हुआ।

26 जुलाई 2010

सोनिया गाँधी ( Sonia Gandhi )





श्व की ताकतवर महिलाओं में शुमार सोनिया गाँधी आजकल वे महिला आरक्षण विधेयक को हर कीमत पर पारिक कराने के लिये दृढतापूर्वक जुटी है। भाजपा जैसी विरोधी पार्टी को अपने जाल में फंसाने और महिला आरक्षण के विरोधी तथा सरकार में सहयोगी रहे लालू यादव जैसे दिग्गज की सोनिया गाँधी ने मजाकमजाक में बोलती बंद कर दी।

न...न... करते हुए राजनीति में आए सोनिया गाँधी का शुरूआती रूप गूंगी गुडिया जैसा लग रहा था। कहा जाता था की वे औरों की सलाह पर फैसले लेते हैं। उन्हें खुद को राजनीति की समझ नहीं है। इस तरह की अनेक बातें कही जाती थीं पर जैसे-जैसे दिन बीतते गए, सोनिया गाँधी की काबिलीयत, उन की राजनीतिक परिपक्वता जनता के सामने आने लगी और उन विरोधियों की जबान बंद हो गई, जो उन के बारे में गलतफहमी में थे।

सोनिया गाँधी मई, 2005 में कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष बनी। वे नेहरू परिवार की 5वीं सदय हैं, जो कांग्रेस अध्यक्ष बनीं। मोतीलाल नेहरु, जवाहरलाल नेहरु, इंदिरा गाँधी और राजीव गाँधी भी महत्वपूर्ण राजनीतिक पदों पर रह रहे हैं।

व्यक्तिगत परिचय
6 दिसंबर, 1946 को इटली के तुरीन से 80 किलोमीटर दूर ओवास्सान्जो नामक स्थान पर एक परम्परावादी रोमन कैथोलिक परिवार में जन्मी एड्विग एंटोनिया एल्बिना मैनो यानी सोनिया गाँधी की शुरूआती पढ़ाई कैथोलिक स्कूल में हुई। उन के पिता भवन ठेकेदार थे। 1964 में वे कैम्ब्रिज आ गईं। यहाँ राजीव गाँधी से उन की मुलाक़ात हुई। पढाए के दौरान ही दोनों के बीच प्यार हुआ और 1986 में देश के प्रतिष्ठित नेहरुगांधी परिवार में वे ब्याही गईं।

1984 में इंदिरा गाँधी की मृत्यु के बाद वे पूरी तरह भारतीय नागरिक बन गईं। उस से पहले राजीव गाँधी पर राजनीति में आने का दबाव बढ़ रहा था, पर सोनिया गाँधी उन्हें मना करती थी। आखिरकार 1980  में संजय गाँधी की मौत के बाद राजीव गाँधी ने इंडियन एयरलाइंस के पायलट पद से इस्तीफा दे कर राजनीति जौइन कर ली।

21 मई, 1991 में पति राजीव गाँधी की मृत्यु के बाद करीब 6 साल तक वे खामोश बैठी रहीं। पर 1997 में उन्होंने कांग्रेस की प्राथमिक सदस्य ग्रहण कर ली। 2004 के आम चुनावों में सोनिया गाँधी ने तूफानी दौरे किये। जनता से रूबरू हुई तो भीड़ उमड़ पडी और मतदाताओं ने उन्हें सिराखों पर बैठा लिया।

राजीव गाँधी की मौत के बाद गर्त में पहुँच चुकी पार्टी को सोनिया गाँधी ने उबार लिया। पुराने कांग्रेसी, जो आपस में कलह के कारण इधरउधर चले गए थे, पार्टी में लौट आए। उस समय विपक्षी दलों ने सोनिया गाँधी के विदेशी मुद्दे को खूब परवान रखा था। बावजूद इस के लोगों ने सोनिया गाँधी के महत्वा को समझा भाजपा की अगुआई वाली एनडीए सरकार को इस मुद्दे पर करारी शिकस्त मिली।

25 जुलाई 2010

प्रतिभा पाटिल ( Pratibha Patil )



 मार्च को राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने मूर्तिदेवी पुरस्कार समारोह में साहित्य के योगदान पर कहा था की समाज के निर्माण और प्रगति में साहित्य की बड़ी भूमिका है। हमारा उद्देश्य मजबूत राष्ट्र का निर्माण करना है तथा समाज को प्रकाशवान बनाना है, इस के लिये साहित्य का योगदान सर्वोपरि है।

खुद के जीवन में शिक्षा, साहित्य व अधयन्न के महत्वा को अच्छी तरह जानने वाली देश की प्रथम महिला राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल अपनी प्रतिभा के बल पर यहाँ तक पहुँची है। उन्होंने आर्ट्स और क़ानून की नाइक मंत्रिमंडल में शिक्षा उपमंत्री बनीं। कांग्रेस सरकारों में विभिन्न मुख्यमंत्रियों वसंत दादा पाटिल, बाबा साहेब भोंसले, एसबी चव्हान और शरद पवार के मंत्रिमंडल में वे पर्यटन, समाज कल्याण और हौसिंग मंत्री में भी रहीं। अपने राजनीतिक जीवन में एदलाबाद और निकटवर्ती जलगांव से चुनाव लड़ती रहीं तथा कभी चुनाव नहीं हारीं।

मजबूत राष्ट्र मजबूत समाज
प्रतिभा पाटिल का विवाह राजस्थान के देवीसिंह शेखावत के साथ हुआ था। शेखावत वर्षों पहले पढ़ाई अपने छोटे कसबे और फिर मुंबई में की थी।

महाराष्ट्र  के नडगाँव में जन्मी प्रतिभा पाटिल में कालेज समय में ही बुलंदियों पर पहुँचने के लक्षण दिखने लगे थे। बांबे यूनिवर्सिटी में उन्होंने कई इंटर कालेज टेनिस टूर्नामेंट जीते तथा 1962 में वे मूलजी जेठा कालेज में कालेज क्वीन चुनी गई।

प्रतिभा पाटिल ने अपना राजनीतिक करियर 27 वर्ष की उम्र में वरिष्ठ लीडर बाबा साहेब गोपालराव खेडकर और पूर्व मुख्यमंत्री यशवंतराव चव्हान के नेतृत्व में शुरू किया था। 1962 में वे महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से महाराष्ट्र के जलगांव जिले के एदलाबाद क्षेत्र से चुनाव जीतीं। 1967 में दूसरी बार विधानसभा चुनाव में विजय हासिल की और वसंतराव अमरावती चले गए थे और वहां वे शिक्षण संस्था चलाते थे। प्रतिभा पाटिल ने राजनीति के साथ-साथ शिक्षा के प्रसार के लिये भी काम किया। पति के साथ मिल कर उन्होंने विद्याभारती शिक्षण प्रसारक मंडल की स्थापना की जिस के तहत जलगांव और मुंबई में स्कूलों और कालेजों की एक श्रृंखला चल रही है। उन्होंने श्रम साधना ट्रस्ट नाम से एक ट्रस्ट भी बनाया, जो मुंबई, पुणे व दिल्ली में कामकाजी औरतों के लिये हॉस्टल संचालित करता है। उन का जलगांव में एक इंजीनियरिंग कालेज भी चल रहा है। जलगांव में ही उन्होंने हैन्डीकैप्ड बच्चों के लिये औद्योगिक प्रशिक्षण स्कूल तथा विमुक्त व आदिवासी जातियों के गरीब बच्चों के लिये स्कूल भी खोला है।

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ससुराल गेंदा फूल ( Laws marigold flowers )


विवाह के बाद लड़की जहाँ हजार सपने संजोय, नए जीवन की शुरुआत करती है, वहीँ कई प्रकार के रिश्तों से वह जुड़ जाती है, क्योंकि विवाह केवल को व्यक्तियों का नहीं, बल्कि दो परिवारों, दो सभ्यताओं व दो विचारधाराओं का भी होता है, जिसको निभाना हर लड़की का कर्त्तव्य होता है, क्योंकि ससुराल पक्ष के सपने नए-नवेली दुल्हन से जुड़े होते हैं, पर ऐसे में बहू द्वारा अनजाने में हुई एक छोटी-सी चूक घर में कलह का कारण बन जाती है, इसलिए वधु को चाहिए की ससुराल में सोच-समझकर ही कोई कदम उठाए, सिर्फ पति को ही नहीं, बल्कि परिवारवालों को भी अपनाए।

कैसे बैठाएं सामंजस्य
एक लड़की को विवाह के बाद पत्नी बनने के अलावा बहू, भाभी, देवरानी व चाची का सम्बन्ध भी निभाना पड़ता है। ऐसे नहीं की यह सम्बन्ध सिर्फ बहू की तरह से ही बनाते हैं, बल्कि दोनों तरफ से भी बताते हैं। जब लड़की नए घर में प्रवेश करती है तो उसे इन संबंधों को पूरा आदर मान देना चाहिए। ससुराल के सभी रिश्तेदारों को समझना चाहिए और फिर उनकी उम्मीदों को पहचानना चाहिए। इसके अलावा बहुत जरूरी है की वह कुछ बातों का ख़ास खाया रखे, जो विवाह के बाद नए घर जाने वाली हर लड़की के लिये एक से होते हैं। क्या है आइए जानें-

बहू और सास का सम्बन्ध
कहते हैं की यदि बहू अपनी सासू मां को खुश रख पाती है तो निश्चय ही यह उसकी बड़ी जीत होती है। आज के समय में आधुनिक सास आधुनिक बहू की कल्पना रखती है, मतलब वह एक सुघड़ बहू चाहती है, जो पढ़ी-लिखी व आधुनिक होने के साथ-साथ पारंपरिक भी हो। पर कुछ सासें ऐसी भी होती हैं, जिनके लिये बहू चाहे अपनी आदतें बदले, इच्छाएं बदले लेकिन वे मीनमेख निकाले बिना नहीं रह सकती हैं।

कैसे बनाएं मधुर सम्बन्ध
मनोवैज्ञानिक प्रांजलि मल्होत्रा का कहना है की हर रिश्ते के बीच की महत्वपूर्ण कड़ी आपसी व्यवहार व संवेदना है, इसलिए सासू माँ का दिल जीतने के लिये उनका विश्वास जीतना बहुत जरूरी है। एक बहू के रूप में उसको चाहिए की सास की भावनाओं का सम्मान करे, उसके प्यार भरे व्यवहार में अपनेपन की झलक पाए और उन्हें माँ मानते हैं, पर कई बार बहू का व्यवहार इतना गलत होता है की ससुर के अरमानों पर पानी फिर जाता है, जिससे रिश्ते में कडवाहट आ जाती है।

बहू और ससुर का सम्बन्ध
ससुराल में बहू के सम्मान का मुख्य केंद्र बिंदु ससुर होते हैं, क्योंकि सारे निर्णय, अधिकार और घर के सारे नियम-क़ानून ससुर के हाथ में ही होता है। इसलिए बहू का कर्त्तव्य बनता है की वह ससुर का पूरा ध्यान रखे। पहले की उपेक्षा आज ससुर और बहू के संबंधों में काफी बदलाव आया है, कल तक जो ससुर घर में प्रवेश करते समय खांस कर आते थे, अब वह बहू का नाम लेकर पुकारते हैं। आज तो वाहू और बेटी के बीच में फर्क नहीं समझते, बल्कि अपनी बहू को बेटी की तरह मानते हैं, पर कई बार बहू का व्यवहार इतना गलत होता है की ससुर के अरमानों पर पानी फिर जाता है, जिससे रिश्ते में कडवाहट आ जाती है।

कैसे बनाएं मधुर सम्बन्ध
हर बहू का दायित्व है की वह अपने ससुर से मीठा बोले व पलट कर कभी भी जवाब न दे। नपे-तुले शब्दों में अपनी बात को उनके आगे प्रकट करे, उन्हें पिता की तरह उचित मां-सम्मान दे, ताकि ससुर के मन में जगह बना सके। सास अथवा पति की शिकायत ससुर से न करे, जब भी समय मिले उनको पर्याप्त समय दे, उनकी दिनचर्या संबंधी आदतों तथा पसंद-नापसंद का ध्यान रखे, बर्थडे व मैरिज एनीवर्सरी पर कोई गिफ्ट जरूर दे। ससुर की इच्छा के विरूद्ध  कोई भी कार्य न करे। अगर ससुर के मुंह से मायके पक्ष के लिये भूल से अपशब्द निकल जाए तो उनको तुरंत जवाब न दें, बल्कि शांत स्वभाव से कारण पूछें।

भाभी और ननद का सम्बन्ध
ससुराल में जिस तरह से सास की अत्यंत अहम् भूमिका होती है, उस महत्वपूर्ण रिश्ते से एक अति महत्वपूर्ण रिश्ता होता ननद का। ननद किसी भी परिवार का ऐसा अभिन्न अंग होती है, जो परिवार में लोगों को जोड़ने अथवा तोड़ने का कार्य करती है। यदि किसी भाभी ने अपनी ननद का दिल जीत लियी तो समझो ससुराल में आधी बाजी मार ली, क्योंकि ननद विवाहित हो अथवा अविवाहित हर दृष्टि से उसका परिवार में एक महत्वपूर्ण स्थान होता है। ननद एक प्रकार से बहू व सास के बीच की कड़ी होती है। इसलिए हर भाभी का कर्त्तव्य होता है की वह ननद को पूरी तरह से खुश रखने का प्रयास करे।

कैसे बनाए मधुर सम्बन्ध
नई नवेली बहू को अपनी ननद को बहन के समान समझना चाहिए और उसी प्रकार व्यवहार करना चाहिए। सास व पति से ननद की बुराई नहीं करें। कहीं बाहर जा रही हैं तो ननद को साथ जरूर साथ ले जाएं। जब भी खाली समय मिले ननद के साथ बैठकर बातें करें, ताकि ननद की आदतों व इच्छाओं से भली-भांति परिचित हो सकें और उसके अनुसार ही अपना व्यवहार संतुलित रखें। यदि आपको लगे की आपकी ननद बहुत ज्यादा फैशनेबल है तो उसे कुछ उसकी पसंद की चीजें उपहार में दें। उसके दोस्तों के आने पर उसकी तहेदिल से खातिरदारी करें।

भाभी और देवर सम्बन्ध
देवर भाभी का बेहत स्नेहिल रिश्ता होता है, जिसमें छेड़छाड़, माजाक होना आम बात है। भाभी मजाक में देवर से अथवा देवा भाभी से हंसी-मजाक में कुछ कह दे या खिंचाई कर दे, परिवार में बुरा नहीं माना जाता। पर जब यह छेड़छाड़ बढ़ने लगती है तो घर वालों को अखरने लगती है। ऐसे में पति को अपने भाए पर क्रोध आता है और बिना बात पत्नी पर गुस्सा उतारता है।

कैसे बनाएं मधुर सम्बन्ध
असल में देवर भाभी के लिये छोटे भाई के समान होता है, इसलिए भाभी को चाहिए की वह अपने देवर से संयमित व्यवहार रखे। उससे हंसी-मजाक करे, लेकिन सीमित दायरे में रहकर। इस बात का ख़ास ध्यान रखे की अगर परिवार वालों को अच्छा नहीं लगता है, तो ज्यादा बात न करें। देवर के अकेले में ज्यादा हंसी-मजाक न करें। कहने का तात्पर्य यही है की देवर भाभी के रिश्ते की गरिमा तभी बनी रह सकती है, जब दोनों एक-दूसरे का समान करे। साथ ही खुले दिल से एक-दूसरे से हंसी-मजाक करे।

जेठानी-देवरानी का सम्बन्ध
अक्सर देखने में आता है की जेठानी व देवरानी के रिश्ते में तकरार होती रहती है। उनमें आपसी प्यार के स्थान पर ईर्ष्या व भीतरी तनाव बना रहता है। अक्सर देखने में आता है की जब संयुक्त परिवार होता है और देवरानी जेठानी एक ही घर में रहती हैं तो उनमें शुरू में खूब प्यार बना रहता है, परन्तु समय बीतने के साथ-साथ उनमें प्यार के स्थान पर प्रतिस्पर्धा व द्वेष की भावना पनपती जाती है।

कैसे बनाएं मधुर सम्बन्ध
देवरानी-जेठानी को आपस में प्रेम बनाए रखना चाहिए, जेठानी को सदैव देवरानी को छोटी बहन के समान समझना चाहिए। यदि किसी बात पर देवरानी को बुरा लगे या क्रोध आ जाए तो जेठानी को इसे अपनी बेइज्जती न समझकर देवरानी को माफ़ कर देना चाहिए। इसी प्रकार देवरानी को भी नरम व्यवहार अपनाना चाहिए। आपसी छोटी-मोती बातों पर बहस से बचना चाहिए। एक-दूसरे की इच्छाओं व आवश्यकताओं का ध्यान रखना चाहिए। घरेलू कार्यों में झगड़ों से बचना चाहिए। घर के सभी कार्यों में एक-दूसरे को पूर्ण सहयोग देना चाहिए।

बहू और जेठ का सम्बन्ध
ससुराल में जेठ की अपनी अलग भूमिका होती है, घर में बड़े होने के कारण उसका सम्मान करना बहू का फर्ज होता है। इसलिए यह रिश्ता बहुत नाजुक होता है, क्योंकि यह दो भाइयों का रिश्ता होता है। यदि भाई-भाई में अनबन रहती है, तो पत्नी की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। यदि पत्नी सुघड़ विचारों वाली है तो भाइयों में सुलह भी करा सकती है और घर में शांति बनाए रख सकती है।

कैसे बनाएं मधुर सम्बन्ध
अगर दो भाई शादीशुदा हैं तो दोनों पत्नियों को चाहिए की आपसी इर्ष्या न रखें। एक दूसरे की स्थिति को समझते हुए एक-दूसरे से सहयोग करें व आपस में लड़ाई न करें। हर पत्नी का कर्तव्य है की वह पति का साथ दे, लेकिन उसका मतलब यह नहीं की वह पति को भाई के विरुद्ध उकसाए। पति के गलत निर्णय लेने पर पत्नी को उसे समझाना चाहिए। एक-दूसरे से इर्ष्य के स्थान पर पत्नियां प्रेम की  भावना जगाएं, क्योंकि प्रेम व सद्भाव से बड़ा सुख संसार में कोई नहीं है।

रामायण - अयोध्याकाण्ड - कैकेयी द्वारा वरों की प्राप्ति ( Ramayana - Ayodhyakand )

राजदरबारियों से निबटकर महाराजा दशरथ अत्यन्त उल्लास के साथ राम के राजतिलक का शुभ समाचार अपनी सबसे प्रिय रानी कैकेयी को सुनाने के लिये पहुँचे। कैकेयी को वहाँ न पाकर राजा दशरथ उसके विषय में एक दासी से पूछा। दासी ने बताया कि महारानी कैकेयी अत्यन्त क्रुद्ध होकर कोपभवन में गई हैं। महाराज ने चिन्तित होकर कोपभवन में जाकर देखा कि उनकी प्राणप्रिया मैले वस्त्र धारण किये, केश बिखराये, पृथ्वी पर अस्त व्यस्त पड़ी है। उन्हें मनाते हुये राजा दशरथ ने कहा, "प्राणवल्लभे! मैंने तो ऐसा कोई कार्य नहीं किया जिससे क्रुद्ध होकर तुम्हें कोपभवन में आना पड़े। मुझे अपने कुपित होने का कारण बताओ। मैं वचन देता हूँ कि मैं तुम्हारे दुःख का निराकरण अवश्य करूँगा।"

कैकेयी बोलीं, "हे प्रणनाथ! मेरी एक अभिलाषा है जिसे मैं पूरी होते देखना चाहती हूँ। यदि आप उसे पूरी करने की शपथपूर्वक प्रतिज्ञा करेंगे, तभी मैं उसे आपसे कहूँगी।" इस पर राजा दशरथ ने मुस्कुराते हुये कहा, "बस, इतनी से बात के लिये तुम कोपभवन में चली आईं? कहो तुम्हारी क्या अभिलाषा है। मैं अभी उसे पूरा करता हूँ।" कैकेयी बोली, "महाराज! पहले आप सौगन्ध खाइये कि आप मेरी अभिलाषा अवश्य पूरी करेंगे।" कैकेयी के इन वचनों को सुनकर महाराजा दशरथ ने कहा, "हे प्राणेश्वरी! यह तो तुम जानती ही हो कि मुझे संसार में राम से अधिक प्रिय और कोई नहीँ है। उसी राम की सौगन्ध खाकर मैं तुम्हें वचन देता हूँ कि तुम्हारी जो भी कामना होगी, मैं उसे तत्काल पूरी करूँगा। बोलो क्या चाहती हो?"

महाराज दशरथ से आश्वासन पाकर कैकेयी बोली, "देवासुर संग्राम के समय जब आप मूर्छित हो गये थे, उस समय मैंने आपकी रक्षा की थी और इससे प्रसन्न होकर आपने मुझे दो वर देने की प्रतिज्ञा की थी। वे दोनों वर मैं आज माँगना चाहती हूँ। पहला वर मुझे यह दें कि राम के स्थान पर मेरे पुत्र भरत का राजतिलक किया जाये और दूसरा वर मैं यह माँगती हूँ कि राम को चौदह वर्ष के लिये वन जाने की आज्ञा दी जाये। मैं चाहती हूँ कि आज ही राम वक्कल पहने हुये वनवासियों की भाँति वन के लिये प्रस्थान कर जाये। आप सूर्यवंशी हैं और सूर्यवंश में अपनी प्रतिज्ञा का पालन प्राणों की बलि चढ़ाकर भी किया जाता है। इसलिये आप भी मुझे ये वर दें।"

कैकेयी के मुख से निकले हुये शब्दों ने राजा के हृदय को तीर की भाँति छेद डाला और वे इसकी असह्य पीड़ा को न सहकर वहीं मूर्छित होकर गिर पड़े। कुछ काल पश्चात मूर्छा के भंग होने पर वे क्रोध और पीड़ा से काँपते हुये बोले, "हे कुलघातिनी! मेरे किस अपराध का तूने ऐसा भयंकर प्रतिशोध लिया है? नीच! पतिते! राम तो तुझ पर कौशल्या से भी अधिक श्रद्धा रखता है। फिर क्यों तू उसका जीवन नष्ट करने के लिये कटिबद्ध हो गई है? बिना किसी अपराध के प्रजा के आँखों के तारे राम को मैं कैसे निर्वासित कर सकता हूँ? तू जानती है कि मैं अपने प्राण त्याग सकता हूँ किन्तु राम के बिना नहीं रह सकता। मैं तुझसे प्रार्थना करता हूँ कि राम के वनवास की बात को छोड़कर तू और कुछ माँग ले। मैं विश्वास दिलाता हूँ कि मैं तुझे मना नहीं करूँगा।"

राजा की दीन वाणी सुनकर भी कैकेयी द्रवित नहीं हुई और बोली, "राजन्! आपने पहले तो बड़े गौरव से वर देने की बात कही और जब वर देने का समय आया तो आप इस प्रकार वचन से हटना चाहते हैं। यह सूर्यवंशियों को शोभा नहीं देता। आप अपनी प्रतिज्ञा से हटकर अपने आप को और सूर्यवंश को कलंकित मत कीजिये। यदि आपने अपने प्रतिज्ञा की रक्षा न की तो मैं अभी आपके ही सम्मुख विष पीकर अपने प्राण त्याग दूँगी। इससे आप केवल प्रतिज्ञा भंग करने के ही दोषी नहीं होंगे वरन् स्त्री-हत्या के भी दोषी माने जायेंगे। इसलिये उचित है कि आप अपना प्रण पूरा करें।"

राजा दशरथ बार-बार मूर्छित हो जाते थे और मूर्छा टूटने पर कातर भाव से कैकेयी को मनाने का प्रयत्न करते थे। इस प्रकार पूरी रात बीत गई। आकाश में उषा की लालिमा देखकर कैकेयी ने उग्ररूप धारण करके कहा, "हे राजन्! समय बीतता जा रहा है। आप तत्काल राम को बुलाकर उसे वन जाने की आज्ञा दीजिये और नगर भर में भरत के राजतिलक की घोषणा करवाइये।"

उधर सूर्य उदय होते ही गुरु वशिष्ठ मन्त्रियों को साथ लेकर राजप्रासाद के द्वार पर पहुँचे और महामन्त्री सुमन्त को महाराज के पास जाकर अपने आगमन की सूचना देने के लिये कहा। कैकेयी-दशरथ सम्वाद से अनजान सुमन्त ने महाराज के पास जाकर कहा, "हे राजाधिराज! रात्रि समाप्त हो गई है और गुरु वशिष्ठ भी पधार चुके हैं आप शैया छोड़कर गुरु वशिष्ठ के पास चलिये।" सुमन्त की वाणी सुनकर महाराज दशरथ को फिर मर्मान्तक पीड़ा का अनुभव हुआ और वे फिर मूर्छित हो गये। इस पर कुटिल कैकेयी बोली, "हे सुमन्त! महाराज अपने प्रिय पुत्र के राज्याभिषेक के आनन्द के कारण रात भर सो नहीं सके हैं। अभी-अभी ही उन्हें तन्द्रा आई है। इसलिये तुम शीघ्र जाकर राम को यहीं बुला लाओ। महाराज निद्रा से जागते ही उन्हें कुछ आवश्यक निर्देश देना चाहते हैं।"

इस पर सुमन्त रामचन्द्र के महल में जाकर उन्हें बुला लाये।