15 सितंबर 2010

नारद कंस मिलन

सूतजी आगे बोले, मुनिवरों । जब सम्पूर्ण देवगण और भगवान विष्णु पृथ्वी पर अवतरित हो गये, तो नारद पृथ्वी पर आये । वह कंस से मिले । देवलोक से चलकर नारद मथुरा के एक उपवन में आये । वहाँ से उन्होंने अपना एक दूत उग्रसेन के पुत्र राजा कंस के पास भेजा । उसने कंस को नारद के आगमन की सूचना दी । समाचार पाकर कंस तुरन्त चल पड़ा । निद्रिष्ट स्थान पर उसने अत्यन्त तेजधारी और दिव्य नारद जी को देखा । उनको नमस्कार कर उनकी अभ्यर्थना की । तत्पश्चात कंस के दिए अग्नि सदृश रक्त वर्ण आसन पर नारद जी बैठ गये ।

नारद जी बोले, मैं स्वर्ग से प्रस्थान कर समेरु पर्वत पर गया था । वहां सम्पूर्ण देवलोक उपस्थित था । वहां पर कुछ निर्णय किया जा रहा था । बातचीत से मुझको पता चला कि तुम्हारे अनुयायियों सहित तुम्हारे वध की योजना बनाई गयी है । तुम्हारी बहन देवकी के गर्भ से उत्पन्न आठवी संतान तुम्हारा काल बनेगी । वह वास्तव में विष्णु का अवतार होगा । वह पूर्व जनमों में भी तुम्हारे विनाश का कारण बन चुके है यही बात मैं तुमसे कहने आया हूं । तुम सावधान हो जाओ और देवकी के समस्त गर्भ नष्ट करने का प्रयत्न करो । मेरा तुम पर विशेष स्नेह है । इस कारण यह गोपनीय रहस्य मैंने तुमको बतला दिया है । अब मैं वापस जाता हूँ तुम्हारा कल्याण हो ।

इतना कहकर देवर्षि नारद चले गये । उनके जाने के बाद कंस अट्टहास करने लगा । अपने साथ आये सेवकों से बोला, नारद मुझको डराने आया था । अभी उसको मेरी शक्ति का ज्ञान नहीं है । मुझे को ई भी परास्त नहीं कर सकता । इस पृथ्वी पर ऐसा कोई भी शक्तिशाली नहीं है । जो मेरा मुकाबला कर सके । मैं सम्पूर्ण भूलोक, देवलोक, यमलोक अपने बाहुबल पर नष्ट कर सकता हूँ । फिर भी हयग्रीव, केशी, प्रलम्ब, धेनुक, अरिष्ट, वृषयऋ पूतना, कालिया नाग को खबर दे दो कि वह स्वेच्छापूर्वक परिवर्तन कर भूमंजल में विचरण करें । जहां भी मेरा विपक्षी दिखलाई पड़े, उसका वध कर डालें । हयग्रीव और केशी गर्भस्थ बालकों पर निगरानी रखेंगे । नारद की यह बात सुनकर हमको भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है । नारद का तो काम ही है, इधर की उधर लगाना । भय उत्पन्न कर मन-मुटाव पैदा करना, अतएव सब निर्भय होकर रहे ।

इसप्रकार कंस हंसता हुआ अपने राजभवन की ओर चल पड़ा, पर उसका मन शंकाओं से भर गया था ।
उसने राजभवन आकर मंत्रीगणों को आदेश दिया कि वह सावधान रहे । तत्परतापूर्वक प्रारम्भ से ही देवकी के गर्भ नष्ट करते रहे । देवकी और वासुदेव की विशेष रुप से सावधानीपूर्वक देखभाल करें । देवकी के गर्भ की सावधानीपूर्वक गणना करें । उसके सभी गर्भ सावधानीपूर्वक नष्ट कर दिये जाएं । मुनिवरों कंस ने इस प्रकारी की व्यवस्था तो कर दी, पर मन ही मन नारद की बातों के कारण भयभीत हो गया था । उसने देवकी के सभी गर्भ नष्ट करने की उचित व्यव्स्था कर दी ।

यह बात योगबल से भगवान विष्णु को भी ज्ञात हो गयी उनको यह सोचना पड़ा कि कंस द्घारा सात गर्भ नष्ट करने पर आठवें गर्भ में वह किस प्रकार अवतार (जन्म) लेंगे । तभी भगवान विष्णु को कालनेमि के छह पुत्रों का ध्यान आ गया । हिरण्यकशिपु ने उनको शाप दिया था कि तुम सब देवकी के गर्भ में जाओगे और जन्म से ही पूर्व गर्भ के समय ही तुम सबकी मृत्यु होगी । हिरण्यकशिपु ने उनको यह शाप इसलिये दिया था कि उन्होंने बिना अनुमति के ब्रहृ की तपस्या कर वरदान पा लिया था । अतएव इस शाप को पूरा करना आवश्यक था । अतएव भगवान विष्णु तुरन्त भूतल लोक को गये । वहां पर छहों कालनेमिके पुत्र जल-शय्या पर निद्रामग्न थे । विष्णु भगवान अपनी योगमाया के बल पर उनके शरीर में प्रवेश कर गये और उनके प्राण हरण कर निद्रा को दे दिए । उसे आदेश दिया की वह एक-एक प्राण देवकी के गर्भ में स्थापित करे । सातवें गर्भ के समय गर्भ परिवर्तन कर दे । देवकी के गर्भ को रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दे । इस प्रकार के संकर्षण से उत्पन्न बालक मेरा बड़ा भाई होगा । आठवें गर्भ के समय मैं जन्म लूंगा और तब तुम भी जन्म लोगी । मैं यशोद के पास पहुंच जाऊंगा । तुम देवकी के पास रहोगी । इस प्रकार तुमको देवकी की आठवीं संतान मानकर कंस तुम्हारा वध करेगा, पर तुम त्यन्त दिव्यरुप में आकाश में तिरोहित हो जाना । इन्द्र तुम्हारा अभिषेक करेगा । वह तुमको अपनी बहन मानेगा । बाद में तुम देवी के रुप में पूजति होंगी । शुंभ-निशुंभ नामक दो दैत्यों का वध कर तुम मेरे अंश से उत्पन्न देवी के रुप में पूजी जाओगी । तुम्हारा जप करने वाला धन-सम्पत्ति, पुत्रादि का सुख पायेगा । उनके संकट तुम सदा दूर करने में समर्र्थ रहोगी ।

इस प्रकार भगवान विष्णु ने निद्रा को अपने कार्य में भागी बना लिया । वह वापस आ गये । सारी योजना बन गयी ।