30 जुलाई 2010

ममता बनर्जी ( Mamta Banarjee )


न दिनों भारतीय राजनीति में अगर तेजतर्रार और जुझारूपन से भरपूर महिला की बात की जाए तो ममता बनर्जी का नाम सब से पहले उभर कर सामने आता है। ममता बनर्जी को ये विशेषताएं उन्हें अपने स्वतंत्रता सेनानी पिता प्रोमिलेश्वर बनर्जी से विरासत में मिलीं। जीवन में जो कुछ भी पाया, अपने दम पर हासिल किया। वे एक बार जो ठान लेती हैं, उस पर टिकी रहती हैं। ममता की माँ गायत्री बनर्जी का कहना है की वे बचपन से ही जिद्दी स्वभाव की रही हैं। एक बार मन बना लिया तो हर हाल में उसे पूरा करना है।

राज्य की सीपीएम के साथ तमाम राजनीतिक मुद्दों पर विरोध प्रदर्शन के दौरान राज्य पुलिस से ले कर सीपीएम कैडरों तक के नाम उन पर लाठीडंडे  बरसाए गए, इस दौरान मीडिया ने उन्हें अग्निकन्या नाम दिया। लेकिन तब उन की राजनीति राष्ट्रीय कांग्रेस के झंडे तले परवान चढ़ रही थी। यह वह समय था जब राज्य में कांग्रेस सीपीएम की 'बी टीम' के रूप में जानी जाती थी।

राजनीति में 1976 में महिला कांग्रेस की महासचिव के पद से ममता बनर्जी की राजनीतिक रेल चली। 1984 में कोलकाता के यादवपुर संसदीय क्षेत्र से पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ कर सीपीएम के हैवीवेट सोमनाथ चटर्जी को हरा कर संसद में सब से कम उम्र की सांसद का रूतबा हासिल किया। 1984 में इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद राजीव गाँधी के प्रधानमंत्रित्व काल में वे अखिल भारतीय राष्ट्रीय युवा कांग्रेस की महासचिव बनीं। लेकिन 1989 में कांग्रेस के खिलाफ चली हवा में ममता को झटका लगा और वे चुनाव हार गईं। इस दौरान उन्होंने खुद को पश्चिम बंगाल की राजनीति में झोंक किया। 1991 में उन की वापसी हुई। राव सरकार में उन्हें मानव संसाधन मंत्रालय, खेल और युवा मामलों के साथसाथ महिला व शिशु विकास मंत्रालय का दायित्व भी दिया गया।

व्यक्तित्व की धनि
लेकिन ममता का सनकी मिजाज पहली बार तब खुल कर सामने आया, जब उन्होंने खेल मंत्रालय में रहते हुए कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में रैली निकाल कर खेल मामले में केन्द्रीय सरकार के रवैये पर नाराजगी जताते हुए इस्तीफा देने की घोषणा कर दी।

अपनी एक अलग पार्टी तृणमूल कांग्रेस की स्थापना की और नए सिरे से तृणमूल कांग्रेस को राज्य की शाशाक्त विरोधी पार्टी के रूप में स्थापित करने का काम शुरू किया। इस काम में ममता सफल रहीं।

भारतीय राजनीति में बहुत सारी महिलाएं हैं, जिन्हों एक मुकाम हासिल किया। लेकिन ममता इन सब से अलग हैं। अब उन्हें पश्चिम बंगाल के 2011 में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिये भावी मुख्यमंत्री के रूप में देखा जा रहा है।