27 जून 2010

ज्ञान का सागर - अनमोल वचन (101-125) ( Knowledge of the ocean - precious promise (101-125)

101    उठो, जागो और लक्ष्य प्राप्ति होने तक मत रुको।
102    जिस तेजी से विज्ञान की प्रगति के साथ उपभोग की वस्तुएँ प्रचुर मात्रा में बनाना शुरू हो गयी हैं, वे मनुष्य के लिये पिंजरा बन रही हैं।
103    जिस व्यक्ति का मन चंचल रहता है, उसकी कार्यसिधि नहीं होती।
104    अपराध करने के बाद डर पैदा होता है और यही उसका दण्ड है।
105    अभागा वह है, जो कृतज्ञता को भूल जाता है।
106    पूर्वजों के गुणों का अनुसरण करना ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि देना है।
107    वृद्धावस्था बीमारी नहीं, विधि का विधान है, इस दौरान सक्रिय रहें।
108    अतीत की स्म्रतिया और भविष्य की कल्पनाएँ मनुष्य को वर्तमान जीवन का सही आनंद नहीं लेने देतीं। वर्तमान में सही जीने के लिये आवश्य है अनुकूलता और प्रतिकूलता में सम रहना।
109    मानसिक शांति के लिये मन-शुद्धी, श्वास-शुद्धी एवं इन्द्रिय-शुद्धी का होना अति आवश्यक है।
110    अडिग रूप से चरित्रवान बनें, ताकि लोग आप पर हर परिस्थिति में विश्वास कर सकें।
111    जैसे एक अच्छा गीत तभी सम्भव है, जब संगीत व शब्द लयबद्ध हों; वैसे ही अच्छे नेतृत्व के लिये जरूरी है कि आपकी करनी एवं कथनी में अंतर न हो।
112    अपने व्यवहार में पारदर्शिता लाएं। अगर आप में कुछ कमियाँ भी हैं, तो उन्हें छिपाएं नहीं; क्योंकि कोई भी पूर्ण नहीं है, सिवाय एक ईश्वर के।
113    मनुष्य सफलता के पीछे मुख्यता उसकी सोच, शैली एवं जीने का नजरिया होता है।
114    गुण व कर्म से ही व्यक्ति स्वयं को ऊपर उठाता है। जैसे कमल कहाँ पैदा हुआ इसमें विशेषता नहीं, बल्कि इसमें है कि कीचड में रहकर भी उसने स्वयं को ऊपर उठाया है।
115    हमें अपने अभाव एवं स्वाभाव दोनों को ही ठीक करना चाहिए; क्योंकि ये दोनों ही उन्नति के रास्ते में बाधक होते हैं।
116    अगर हर आदमी अपना-अपना सुधर कर ले तो सारा संसार सुधर सकता है; क्योंकि एक-एक के जोड़ से ही संसार बनता है।
117    अपनों के लिये गोली सह सकते हैं, लेकिन बोली नहीं सह सकते। गोली का घाव भर जाता है, पर बोली का नहीं।
118    भगवान् से निराश कभी मत होना, संसार से आशा कभी मत करना; क्योंकि संसार स्वार्थी है। इसका नमूना तुम्हारा खुद शरीर है।
119    धन अच्छा सेवक भी है और बुरा मालिक भी।
120    जिसका मन-बुद्धि परमात्मा के प्रति वफादार है, उसे मन की शांति अवश्य मिलती ह।
121    राग-द्वेष की भावना अगर प्रेम, सदाचार और कर्त्तव्य को महत्व दें तो मन की सभी समस्याओं का समाधान हो सकता है।
122    कुमति व कुसंगति को छोड़ अगर सुमति व सुसंगति को बढाते जायेंगे तो एक दिन सुमार्ग को आप अवश्य पा लेंगे।
123    यह सच है कि सच्चाई को अपनाना बहुत अच्छी बात है, लेकिन किसी सच से दूसरे का नुक्सान होता हो तो ऐसा सच बोलते समय सौ बार सोच लेना चाहिए।
124    स्वर्ग व नरक कोई भौगोलिक श्तिति नहीं है, बल्कि एक मनोस्थिति है। जैसा सोचोगे, वैसा ही पाओगे।
125    पूरी तरह तैरने का नाम तीर्थ है। एक मात्र पानी में डूबकी लगाना ही तीर्थस्नान नहीं।

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