18 मई 2010

स्वस्थ्य जीवन के दिन की शुरूआत ऐसे कीजिये

जीवन की सफ़लता के लिये स्वस्थ्य रहना महत्वपूर्ण होता है इसीलिये कहा गया है पहला सुख निरोगी काया। आयुर्वेद का भी प्रथम उद्देश्य जीवन को स्वास्थ्य रखना है जैसा कि वर्णित है।
स्वस्स्थ्यस्य स्वास्थ्य रक्षणम् आतुरस्थ विकार प्रशमनम् च ॥
प्रत्येक व्यक्ति स्वस्थ्य रहने का प्रयास करता है तथा इच्छा भी रखता है। स्वस्थ्य रहने हेतु केवल पौष्टिक आहार ही आवश्यक नहीं है अपितु संयमित और प्राकृतिक दिनचर्या भी अवश्यक है। पौष्टिक आहार स्वस्थ्य जीवन के लिये सहायक अवश्य है लेकिन प्राकृतिक जीवनचर्या जरूरी है। व्यक्ति को ब्रह्ममुहूर्त में उठना, स्नान, ध्यान, व्यायाम आदि सम्यक समय व मात्रा में प्राकृतिक तरीके से करना चहिये। इन सबको सही प्रकार से एक सन्तुलित मात्रा में करना ही स्वस्थ्य जीवन के लिये आवश्यक है।

आज के भागमभाग एवं व्यस्त दौर में व्यक्ति की दिनचर्या भी अस्त व्यस्त हो गई। व्यस्त दौर के कारण हम प्राकृतिक जीवनचर्या से दूर होते जा रहे हैं। किसी-किसी परिवार में ही आज के समय में प्राकृतिक दिनचर्या के फ़ायदों के बारे में निर्देश बच्चों को दिये जाते है। ज्यादातर व्यक्ति अपनी सुविधा और इच्छा के अनुसार दैनिक दिनचर्या बना लेते है। दिनचर्या के मामले में व्यक्ति स्वेच्छाचारी हो चुके है। स्वस्थ्य जीवन की अभिलाषा रखने वाले व्यक्ति को वास्तव में विचार करना चाहिए कि हमें, कब प्रात: शयन बैड त्याग करना, कब स्नान करना है, कब व्यायाम मालिश, भोजन आदि करना है। इन सब दिनचर्या विषयक बिन्दुओं की सही प्रकार से स्थूल रूप में जानकारी इस प्रकार है:-

प्रात:काल सूर्योदय से पहले जागना चाहिये
      व्यक्ति को प्रात:काल सूर्योदय पूर्व जगकर बिस्तर त्याग देना चाहिये। जैसा कि आयुर्वेद के शास्त्र अष्टांग संग्रह में लिखा हुआ है कि-
बह्मे मुहूर्त उत्तिष्ठेज्जीणाजीर्ण निरूपयन्।
रक्शार्थमायुष: स्वस्थो............................
         प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व जागना स्वस्थ्य जीवन के लिये आवश्यक है। विद्वानों के मतानुसार प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व उठने से व्यक्ति का शरीर स्वस्थ्य एवं फ़ुर्तीला बनता है। उपरोक्तानुसार जगने से शरीर में दिनभर ताजगी बनी रहती है। जो इन्सान देर तक सोते रहते हैं उनको सुर्य की किरणों का उक्त लाभ नहीं मिलता है। प्रात:काल उक्त समय में स्वस्छ एवं ताजी हवा बहती है जिसमें पैदल घूमना स्वस्थ्य वर्धक एवं लाभदायक होता है। योग-शास्त्र के अनुसार प्रात:काल सुषमा नाडी भी जाग्रत रहती है। जिससे स्वस्छ वायु का लाभ शरीर को मिलता है। प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व जगने के लिये आवश्यक है कि रात्रि को जल्दी सोया जावे। यदि देर से सोयेंगे तो सुबह जल्दी उठ पाना मुश्किल होगा।

          सिद्ध पुरूष एवं योगी भी ब्रह्ममुहूर्त में उठकर चिरायु बने थे। स्वस्थ्य रहने के लिये व्यक्ति का सोने एवं जगने का समय निश्चित होना चाहिये। देर से सोने एवं जगने की आदतों से लोग अनेक बीमारियों से ग्रसित हो जाते है, चिकित्सकों के चक्कर लगाते हैं, आर्थिक व्यय करते हैं अत: सूर्योदय से पूर्व जगना चाहिये।

प्रात:उठकर तांबे के बर्तन में रखें पानी से आंखे धोयें
           प्रात:काल उठने के पश्चात आंखो को धोना चाहिये। इसके लियें अलग से तांबे के एक बर्तन में शाम को पानी भर कर रख देवे। प्रात:जगकर इस पानी से आंखो में धीरे-धीरे हल्के-हल्के छीटें मारना चाहिये। इससे आंखो के अन्दर मैल आदि शीघ्र निकल जात है। इससे नेत्र ज्योति ठीक बनी रहती है। प्रात:आंखें धोने से चश्मे की आवश्यकता नहीं पडती है। आंखो की अन्य कोई बीमारी भी नहीं होती है। शाम को सोते समय आंखों को पानी से धोना भी लाभदायक होता है।

रातभर तांबे के बर्तन में रखे पानी का प्रात:काल उठकर पीना चाहिये
          शौच जाने से पहले चार गिलास पानी (तांबे के बर्तन में रखा हुआ) पीना चाहिये। पेट भर कर पानी पीने से दस्त साफ़ आती है। कब्ज की शिकायत नहीं होती। मूत्र भी सही प्रकार से आता है। प्रात:काल खाली पेट पीये जाने वाले पानी को उषा पान कहा जाता है।

शौच जाने की प्रक्रिया
          जब व्यक्ति को जगने के पश्चात प्रात:काल पानी पीने के बाद यदि चाय की आदत हो तो पानी पीने के 20 मिनिट बाद चाय पीकर शौच के लिये जाना चाहिये। मल का विसर्जन बलपूर्वक नहीं करना चहिये। इससे बवासीर आदि बीमारी होने की संभावना रहती है। शौच दिन में उत्तर की और तथा रात्रि में दाक्शिन की ओर मुख करके तथा मौन रहकर करना चाहिये। जिन व्यक्तियों को शौच सही प्रकार से नहीं आता हो वे नीबू मिलाकर पानी पीयें तथा कुछ देर तक घूमने के पश्चात शौच जावें। यदि इस प्रक्रिया से दस्त साफ़ न हो तो किसी हल्की औषधि का सेवन भी कर सकते है परन्तु औषधि की आदत न बनावें।

दांतों की सफ़ाई
         टूथपेस्ट की अपेक्शा नीम की दातुन लाभप्रद एवं सुरक्शित है। दांतों को साफ़ करने के लिये नीम की दातुन उपलब्ध न हो तो अच्छी टूथब्रश से टूथपेस्ट लगाक दांतों को साफ़ करें। दांतों को भोजन के पश्चात एवं प्रात:साफ़ करना चाहिये, जिससे दांतो के रोग होने की संभावना नहीं रहती है। स्वस्थ्य जीवन हेतु दांतों की देखभाल अति आवश्यक है।

जीभ को साफ़ करना
         दांत साफ़ करने के पश्चात जीभ को भी साफ़ करना चाहिये। जिससे रात्रि में जमा जीभ का मैल साफ़ हो जावे। जीभ को साफ़ करने से मुख की दुर्गन्ध दूर होती है, तथा भोजन में रूचि बढती है। जीभ साफ़ करने के लिये बाजार में जीभी उपलब्ध है।

स्नान से पूर्व शरीर की मालिश करनी चाहिये
         शरीर को स्वस्थ एवं प्रसन्न रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति को किसी उपयुक्त तेल से शरीर की मालिश अवश्य करनी चाहिये इस हेतु सरसों का तेल उपयुक्त होता है। मालिश के लिये सर्दियों में हल्का एवं सुहाता गुनगुना तैल तथा गर्मियों में ठंडा तैल काम लेना चाहिये। तेल मर्दन करने से शरीर की पुष्टि होती है, शरीर दृढ, मजबूत होता है तथा अच्छी नींद आती है। मालिश करने वाले को बुढापा देर से आता है।

प्रतिदिन कम से कम 15 मिनट योगासन करना चाहिये
         स्वस्थ्य शरीर हेतु व्यायाम अति आवश्यक है। प्रात: टहलने जाना चाहिये तथा योगासन करने चाहिये। प्रतिदिन कम से कम 15 मिनट व्यायाम करने से शरीर में रक्त संचार ठीक प्रकार से होता है व्यायाम करने से शरीर फ़ुर्तीला बनता है जठ्राग्रि प्रदीप्त होती है। मोटापा नहीं होता है। शरीर का प्रत्येक अंग मजबूत होता है।

स्नान विधि
        स्नान करने से आयु बढती हैं एवं बल वृद्धि भी होती है। अत: प्रत्येक व्यक्ति को स्नान अवश्य करना चाहिये। आयुर्वेद में स्नान के महत्व को इस प्रकार बताया गया है-
दीपनं वृष्यमायुष्यं स्नानमूर्जा बल प्रदम्। कण्डू मल श्रमस्वेद तन्द्रातृड दाहपाष्मजित॥
स्नान यथा संभव ताजा पानी से ही करना चाहिये। स्नान के पश्चात शरीर को सूती कपडे (तौलिये) से अच्छी तरह पोंछना चाहिये जिससे शरीर के रोम-कूप अच्छी तरह खुल जावें। आयुर्वेद के मन्तव्य में मुख, आंखे व कान के रोगी, दस्त रोगी को तथा भोजन के पश्चात स्नान नहीं करना चाहिये।

प्रतिदिन अपने इष्ट एवं अराध्य देव का ध्यान कीजिये
        दीर्घायु एवं अच्छे स्वास्थ्य की कामना रखने वाले व्यक्ति को सदाचार रूपी रसायन का सेवन करते हुए भगवान का ध्यान एवं उपासना करनी चाहिये। भगवान का ध्यान करने से मानसिक शान्ति प्राप्त होती है। भगवान का ध्यान करने से मानसिक एकाग्रता एवं विश्वास की प्राप्ति होती है। अत: व्यक्ति को अपने-अपने इष्ट एवं अराध्य देव की पूजा करनी चहिये। विश्वास एवं श्रद्धा के साथ ध्यान, पूजा एवं अर्चना करनी चाहिये, जिससे आयु, विद्या एवं बल वृद्धि  होती है।

स्वस्थ्य जीवन हेतु कुछ अन्य उपयोगी टिप्स:-

1. लंच एवं डिनर के बीच की समयावधि में पर्याप्त अन्तर रखना चाहिये।
2. देर रात खान नहीं खाना चाहिये।
3. रात के खाने में गरिष्ट चीजों का उपयोग नहीं करे।
4. खाना खाने के तुरन्त बाद पानी नहीं पिये। कम से कम 45 मिनट बाद ही जल पियें।
5. खाने में अत्यन्त बारीक आटे की जगह थोडा मोटा पिसा आटा काम में लेना चाहिये। गेहूं के आटे में चना एवं जौ का आटा मिश्रित कर लेना चाहिये।
6. प्रतिदिन दाल एवं शुद्ध सलाद का सेवन अच्छा रहता है।
7. प्रात:काल नाशते में अंकुरित मूंग, मेथी, इत्यादि का सेवन करना चाहिये।
8. मैदा एवं बेसन का कम से कम उपयोग करना चाहिये।
9. प्रतिदिन छाछ का सेवन करना चाहिये।