09 मई 2010

सार्वभौमिक धार्मिक प्रतीक ऊँ

ओंकार ईश्वर का वाचक है। यानि ओंकार ध्वनि से ईश्वर(परमात्मा) की अभिव्यक्ति होती है। ईश्वर नामक भाव को व्यक्त करने के लिए विश्वभर में कई सारे शब्द प्रचलित हैं या हो सकते हैं। फिर आखिर ऊँ को ही क्यों चुना गया? इस प्रश्न का पूर्णत: वैज्ञानिक समाधान यह है कि ओम (अउम्) ही वह ध्वनि है जो अन्य सभी ध्वनियों की मूल स्रोत है। ओम ही वह ध्वनि है जो ज्ञात-अज्ञात सभी ध्वनियों की सटीक अभिव्यक्ति है। ऊँ ध्वनि का प्रथम अक्षर अ सभी ध्वनियों का मूल है। (जड़ या प्रारंभ है) वह सारी ध्वनियों की कुंजी (चाबी) के समान है। ' ऊँ ही है जो जिह्वा या तालु के किसी अंश को स्पर्श किए बिना ही उच्चारित होता है। ' ऊँ ध्वनि जिह्वा के मूल से लेकर ध्वनि के आधार की अंतिम सीमा तक मानो लुढ़कता आता है। और 'मÓ ध्वनि-श्रृंखला की अंतिम ध्वनि है।

'म का उच्चारण करने से दोनों होठों को बंद करना पड़ता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि ऊँ शब्द द्वारा ध्वनि उत्पान की संपूर्ण प्रक्रिया संपन्न होती है। अत: ऊँ शब्द के उच्चारण से उत्पन्न ध्वनि ही अन्य समस्त ध्वनियों की माता है। यानि जन्म देने वाली है। संसार भर में जितने प्रकार के शब्द या ध्वनियां उच्चारित होते हैं, या हो सकते हैं-'ओमÓ उन सभी का सर्वमान्य सूचक है। सूक्ष्मता और गहराई से देखने पर हम पाते हैं कि भारत में धर्म संबंधी जितने भी भिन्न-भिन्न भाव हैं। उन सबके केंद्र में ऊँ अवश्य है। भारत में धर्म के विकास की प्रत्येक अवस्था में ओंकार को अपनाया गया है। ईश्वर संबंधी सारे विभिन्न भावों को व्यक्त करने के लिए ओंकार का व्यवहार किया गया है। यहां तक कि नास्तिकों ने भी अपने उच्च आदर्शों को व्यक्त करने के लिए इस ओंकार का ही सहारा लिया गया है। ओंकार एक ऐसी ध्वनि है जिसे वैज्ञानिक आधार पर खुले हुए दिलों-दिमाग से हर कोई अपना सकता है।

अत: यदि हम यह कहें कि अन्य दूसरी भाषओं में ईश्वर वाचक जो शब्द हैं, वे ईश्वर को पूरी तरह से अभिव्यक्त करने में अपूर्ण एंव असमर्थ हैं। ईश्वर वाचक अन्य शब्दों में अपेक्षाकृत बहुत कम भाव व्यक्त करने की क्षमता है। ऊँ शब्द में ये सभी प्रकार के भाव विद्यमान हैं। अत: सभी को ऊँ को स्वीकार करना चाहिए।