18 मई 2010

प्रवेश द्वार पर निर्भर घर की उन्नति

प्राचीन ऋषियों ने भवन की बनावट, आकृति तथा मुख्य प्रवेश द्वार के माध्यम से प्रवेश होने वाली ऊर्जा के सकारात्मक व नकारात्मक प्रभाव का गहनता से अध्ययन किया है। आदिकाल से प्रमुख द्वार का बड़ा महत्वा रहा, जिसे हम फाटक, गेट, दरवाजा, प्रवेश द्वार आदि के नाम से जानते हैं, जो अत्यंत मजबूत व सुंदर होता है। वास्तु के अनुसार प्रमुख द्वार सदियों तक सुखद व मंगलमय अस्तित्व को बनाए रखने में सक्षम होते हैं। प्रवेश द्वार चाहे किसी घर का हो, फैक्ट्री, कारखाने, गोदाम, आँफिस, मन्दिर, अस्पताल, प्रशासनिक भवन, बैंक, दुकान आदि का हो, लाभ-हानि दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, इससे जुड़े सिद्धांतों का सदियों से उपयोग कर मानव अरमानों के महल में मंगलमय जीवन बिताता चला आ रहा है।

मुख्य प्रवेश द्वार के जरिये शत्रुओं, हिंसक पशुओं व अनिष्टकारी शक्तियों से भी रक्षा होती है, इसे लगाते समय वास्तुपरक बातों जैसे, प्रवेश द्वार के लिये कितना स्थान छोडा जाए, किस दिशा में पट बंद हो एवं किस दिशा में खुलें तथा वे लकड़ी व लोहे किसी धातु के हों, उसमें किसी प्रकार की आवाज हो या नहीं। प्रवेश द्वार पर कैसे प्रतीक चिन्ह हों, मांगलिक कार्यों के समय किस प्रकार व किसे सजाना इत्यादि बातों पर ध्यान देना उत्तम, मंगलकारी व लाभदायक रहता है। इस बातों का ध्यान रख मानव सकारात्मक के सहारे उन्नति कर सकता है।

इनका रखें ध्यान

जिस घर में नियमों का सावधानीपूर्वक पालन किया जाता है, वहां सदैव लक्ष्मी, धन, स्वास्थय लाभ व आरोग्य रहता है.....
1. किसी भी मकान का एक प्रवेश द्वार शुभ माना जात है। अगर दो प्रवेश द्वार हों, तो उत्तर दिशा वाले द्वार का प्रयोग करें।
2. पूरब मुखी भवन का प्रवेश द्वार पूरब या उत्तर की ओर होना चहिये। इस्से सकारात्मक उर्जा प्राप्त होती है तथा दीर्घ आयु व पुत्र धन आता है।
3. पश्चिम मुखी मकान का प्रवेश द्वार पश्चिम या उत्तर पाश्चिम में किया जा सकता है, परंतु दक्षिण-पश्चिम में बिल्कुल नहीं होना चाहिए। भूखंड कोई भी मुखी हो, अगर प्रवेश द्वार पूरब की तरफ़ या उत्तर-पूरब की तरफ़ या उत्तर की तरफ़ हो तो उत्तम फ़लों में वृद्धि होती है।
4. उत्तर मुखी भवन का प्रवेश उत्तर या उत्तर-पूरब में होना चहिये। ऐसे प्रवेश द्वार से निरंतर धनी, लाभ, व्यापार और सम्मान में व्रिद्धि होती है।
5. दक्षिण मुखी भूखंड का द्वार दक्षिण या दक्षिण-पूरब में कतई नहीं बनाना चाहिए। पश्चिम या अन्य किसी दिशा में मुख्य द्वार लाभकारी है।
6. उत्तर-पश्चिम का मुख्य द्वार लाभकारी है और व्यक्ति को सहनशील बनाता है।
7. मेन गेट को ठीक मध्य (बीच) में नहीं लगाना चहिए।
8. प्रवेश द्वार को घर के अन्य दरवाजों की उपेक्षा बडा रखें।
9. प्रवेश द्वार ठोस लकडी या धातु से बना होना चाहिए। उसके ऊपर त्रिशूलनुमा छडी नहीं लगी होनी चाहिए।
10. ध्यान रखें, प्रवेश द्वार का निर्माण जल्दबाजी में नहीं करें।

विशेष बातें

सूर्यास्त व सूर्योदय होने से पहले मुख्य प्रवेश द्वार की साफ़-सफ़ाई हो जानी चाहिए। सायंकाल होते ही यहां पर उचित रोशनी का प्रबंध होना भी जरूरी है।

दरवाजा खोलते व बंद करते समय किसी प्रकार की आवाज नहीं आनी चाहिए। बरामदे और बालकनी के ठीक सामने भी प्रवेश द्वार का होना अच्छा नहीं माना गया है।

पूरब व उत्तर दिशा में अधिक स्थान छोडना शुभ है।

प्रवेश द्वार पर गणेश व गज लक्ष्मी कुबेर के चित्र लगाने से सौभाग्य व सुख में निरंतर व्रिद्दि होती है।

मांगलिक कार्यो व शुभ अवसरों पर प्रवेश द्वार को आम के पत्ते व हल्दी तथा चंदन जैसे शुभ व कल्याण्कारी वनस्पतियों से सजाना शुभ होता है।

इसे सदैव साफ़ रखना चाहिए। किसी प्रकार का कूडा या बेकार सामान प्रवेश द्वार के सामने कभी न रखें। प्रात: व सायंकाल कुछ समय के लिए दरवाजा खुला रखना चाहिए।