18 मई 2010

सुकून एवं आनन्द के लिये प्रतिदिन पन्द्रह मिनट मंत्रोचार पूजन कीजिये

प्रात: काल उठकर नित्यक्रिया से निव्रत होकर अपनी प्रतिदिन की पूजा सही विधि-विधान से करनी चाहिये। पूजा आरंभ करने से पहले हमें सभी आवश्यक सामग्री एकत्रित कर लेनी चहिये पूजा करते समय हमारा मुख पूर्व दिशा की ओर रहना चहिये।

आसन:- पूजा में आसन का महत्व अत्यधिक होता हैं। आसन सफ़ेद/लाल रंग का गर्म होना चहिये। आसन की शुद्धि अत्यधिक ध्यान देना चाहिए। पूजा के आरंभ में हमें सर्वप्रथम आसन पर बैठते समय आसन मंत्र बोलना चाहिए।

आसन मंत्र : मुलतो ब्रह्मरूपाय मध्यतो विष्णु सपिते।
नमो दु:स्वनाशाय सुस्वप्र फ़लदायिने ॥
ॐ अश्व्त्थाय नम:, आसनं स:।

आचमनीय मंत्र : आसन पर बैठने के बाद आचमनीय करना चाहिए। आचमनीय से हम केवल अपनी ही शुद्धि नहीं करते अपितु ब्रह्मा से लेकर trin तक प्रप्त कर देते हैं। आचमन न करने पर हमारे सारे कार्य व्यर्थ हो जाते है हमें आचमन करते समय आचमनीय मंत्र बोलना चाहिए।

आचमनीय मंत्र : त्वंक्षीर फ़लकशचैव शीतलश्च वनस्पत।
त्वमाराध्य नरोविंधात दैहिकामुष्मिकं फ़लम॥
ॐ अश्वत्थान नम: आचमनीयं समर्पयामि
(बायीं हथेली पर जल लेकर दायें हाथ की अंगुलियों से मुहं पर जल के छींटे के लिये जो जल दिया जाता है उसे आचमन कहते है)

मूर्ती स्नान: आचमन करने के पश्चात हम पूजा आरंभ करते हुए मूर्ती स्नान हेतु स्नान मंत्र बोलते हुए भगवान को जल के छींटो से स्नान करायें।

स्नान मंत्र : चलद्दलाय वृक्षाय सर्वदाश्रित विष्णवे।
बोधितत्वाय देवाय हयश्वथाय नमो नम:।।
ॐ अश्वत्थाय नम: स्नानीयं समर्पयामि

रोली, अक्श्त एवं पुष्प चढाना: रोली तिलक लगाने के बाद पुष्प चढाये।

पुष्प मंत्र: यं दृष्टवामुच्यते रोगै: स्प्रष्ट: पापै: प्रमुच्यते॥
यदाश्रियाच्चिरंजीवी तमश्वत्थं म नमाम्यहम॥
ॐ अश्वत्थाय नम: पुष्प समर्पयामि

धूप प्रज्जवलित करना : पुष्प चढाने के पश्चात धूप प्रज्जवलित करनी चाहिये।

दीप दर्शन : धूप जलाने के बाद दीप दर्शन मंत्र बोलने के साथ दीप प्रज्जवलित करना चाहिए।

दीप दर्शन मंत्र : साज्यं च वर्ति संयुक्तं वहिनिना च योजितं मया।
देपं गृहाण देवेश ममज्ञान प्रदोभव॥
ॐ अश्वत्थाय नम: दीपं दर्शयामि।

नैवैध चढाना : दीप दर्शन करने के पश्चात भगवान को नैवैध मंत्र बोलते हुए नैवैध चढाना चाहिए।

नैवैध मंत्र : नैवैध ग्रहयतां देव भक्तिं में हय चलां कुरू।
ई च वरंदेहि परत्रेह परांगतिम।
ओम अश्वत्थाय नम: नैवैधं समर्पयामि

नैवैध अर्पित करने के बाद आचमन हेतु जल देना (किसी पात्र से भगवान की तस्वीर/मूर्ती के सामने जल की कुछ बूंदे जमीन पर गिरा दें) चाहिए।

इसके पश्चात पूजा को आगे बढाते हुए प्रतिदिन की देव मंत्रोचार पूजा गणपति मंत्र से प्रारम्भ करें।

1. गणपति मंत्र : ॐ गं गणपतेय नम:

गायत्रीमंत्र को 108 बार रुद्राक्ष की माला से करें-
2. गायत्री मंत्र : ॐ भूभुर्व: स्व: तस्य वितुर्वरेण्यम भर्गो देवस्य धीमहि धियो योन: प्रचोदयात

शिव मंत्र का जप 108 बार रुद्राक्श की माला से करना चाहिये।
3. शिव मंत्र : ॐ नम: शिवाय

सूर्य मंत्र न्यूनत्म 28 बार बोलना चाहिये
4. सूर्य मंत्र : ॐ भास्कराय विदमेह दिवाकराय
धीमहि तन्नो सूर्याय प्रचोदयात

इसके बाद श्री दुर्गा देवी जी का स्मरण करते हुए हमें दुर्गा सप्तश्लोकी मंत्र बोलना चाहिये-
5. दुर्गा सप्त श्लोकी मंत्र :
ओम ग्यानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा।
बलादाक्रिष्य मोहाय महामाया प्रयच्छ्ति॥
दुर्गे स्म्रता हरसि भीतिमशेषजन्तो:,
स्वस्थै: स्म्रता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्रादु:खभयाहारिणि का त्वदन्या, सर्वोपकारकरणाय सदाद्र्चित्ता॥
सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणि नमोSस्तुते॥
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणें।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोSस्तु ते॥
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोSस्तुते॥
रोगानाशेषानपहंसि तुष्टा, रूष्टा तु कामान सकलानभीष्टान।
त्वामाश्रितानां न विपत्रराणां, त्वामाश्रिता ह्र्याश्रयतां प्रयान्ति॥
सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम॥

श्री राम का स्मरण करते हुए हम तारक मंत्र बोलेंगे:
6. श्री राम जय-राम जय-जय राम

पूजा के अंत में हम श्री लक्ष्मी जी का ध्यान करते हुए लक्ष्मी मंत्र बोलेंगे।

7. लक्ष्मी मंत्र :- श्री महालक्षम्यै विदमहे हरि प्रियायै
धीमहि: तन्नो महालक्ष्मी प्रचोदयात।