12 मई 2010

क्यों है लक्ष्मी भगवान विष्णु के पैरों में

कभी भगवान विष्णु के किसी चित्र के बारे में सोचा है, बीच समुद्र में शेषनाग के ऊपर आराम से लेटे और लक्ष्मी उनके पैर दबा रही है। कभी सोचा है भगवान विष्णु का यह रूप किस बात की ओर इशारा कर रहा है। इसमें हमारे लिए बहुत गहरा और गंभीर संदेश है। इसे अगर आत्मसात कर लिया जाए तो हमारा पारिवारिक और सामाजिक जीवन काफी हद तक बदल सकता है। आइए समझते हैं कि भगवान विष्णु का यह चित्र हमें क्या सिखा रहा है?इस सृष्टि के तीन प्रमुख भगवान हैं, ब्रह्मा, विष्णु और शिव। ब्रह्मा सृष्टि की रचना करते हैं, विष्णु उसका संचालन और शिव संहार। विष्णु सृष्टि के संचालक हैं। वे हमारी हर आवश्यकता की पूर्ति करते हैं, धर्म को स्थापित करते हैं, और जब धर्म पर अधर्म भारी होने लगता है तो अवतार भी लेते हैं। अधिक सरल शब्दों में कहा जाए तो विष्णु दुनियादारी या गृहस्थी के भगवान हैं। वे क्षीरसागर में रहते हैं, यह संसार भी एक सागर की तरह है, जिसमें सुख-दु:ख सभी भरपूर है। वे शेषनाग की शैय्या पर लेटे हैं, गृहस्थ का जीवन भी ऐसा ही होता है। जो घर का मुखिया होता है, उसके ऊपर कई जिम्मेदारियां होती हैं, इसलिए शेषनाग के कई फन हैं। फिर भी विष्णु का चेहरा मुस्कुराता है, यह सिखाता है कि हम भले ही कितनी ही जिम्मेदारियों से घिरे हों, धर्य नहीं खोना चाहिए, मन में शांति होना चाहिए और व्यवहार ऐसा हो कि परिवार का एक भी सदस्य आपसे दूर न रह सके। लक्ष्मी विष्णु के पैरों में है और उनकी सेवा कर रही है। यहां दो संदेश हैं पहला जो अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कुशलता से करता है, परिवार को प्रेम की डोर में बांधे रखता है लक्ष्मी सदा उसके पैरों की सेवा में लगी रहती है। दूसरा संदेश ऐसे भी समझा जा सकता है कि हमारे जीवन में परिवार और कर्तव्य का पहला स्थान हो और लक्ष्मी का आखिरी, तभी हमारे प्रेम में कभी लोभ या मोह नहीं आएगा।