01 मई 2010

कब और किसे मिलते हैं भगवान ?

भगवान, ईश्वर, खुदा, परमात्मा, वाहेगुरु .....आदि कितने ही नामों से उसे पुकारते हैं लोग। कोई साकार को मानने वाला है, तो किसी की आस्था निराकार के प्रति है। पर इतना निश्चय है कि उसे किसी न किसी रूप में मानते सभी हैं। यहां तक कि अब तो विज्ञान भी विनम्रता पूर्वक यह स्वीकार करने करने लगा हे कि इस अद्भुत, असीम और विलक्षण सृष्टि को किसी चेतन सत्ता ने ही बनाया है। आधुनिक विज्ञान आज एक विनम्र विद्यार्थी की तरह अध्यात्म के चरणों में सहर्ष बेठने को तैयार है। ईश्वर के अस्तित्व को लेकर आज विज्ञान के मन में कोई संका-संदेह नहीं है।

प्यास जगे तो बात बने: अध्यात्म क्षेत्र के तत्व ज्ञानियों का यह अनुभव सिद्ध मत है कि, जिसके बिना इंसान किसी भी कीमत पर रह ही न सके वो चीज उसे तत्काल और भरपूर मात्रा में मिल जाती है। हवा, पानी, प्रकाश आदि चीजें जितनी जरूरी हैं, ईश्वर ने उन्हैं उतना ही सुलभ बना रखा है। यही बात ईश्वर प्राप्ति के विषय में भी लागू होती है। यदि किसी भक्त के मन में ईश्वर को पाने की प्यास सांस को लेने की प्यास जितनी तीव्र हो जाए तो तत्काल ईश्वर मिल सकता है। मीरा, नानक, रैदास, कबीर, रामकृष्ण-परमहंस, सूर तथा तुलसी आदि भक्तों को भगवान तभी मिले, जब उनके मन में ईश्वर प्राप्ति की तीव्र प्यास जाग गई।