01 अप्रैल 2010

श्री गायत्री स्तुति



हे देवी सावित्री! हे त्रिपदे! हे अजरअमर ! माँ गायत्री! इस संसार सागर में से मुझे मुक्ति दो। सूर्य सामान तेजस्वी और सूर्य को उत्पन्न करने वाली हे अमले! हे गायत्री आपको में प्रणाम करता हूँ। ब्रहमविद्या तथा महाविद्या स्वरुप हे वेदमाता गायत्री! आपको में प्रणाम करता हूँ। अनंत कोटि ब्रह्माण्ड में व्याप्त परम ब्रह्मचारिणी, सदा आनंद स्वरुप है। महामाया ईश्वरी! आपको में प्रणाम करता हूँ। आप ब्रहम को आप विष्णु हो आप साक्षात रूद्र और इन्द्रदेव हो। आप मित्रहो। आप वरुण हो। अप अग्नि और अश्विनी कुमार हो। आप भाग स्वरुप भी हो। पूषा, अर्पमामरूत्वान, ऋषियों, मुनियों, पिता नाग, यज्ञ गन्धर्व, अप्सराएं, राक्षस, भूत, पिशाच भी आप ही हो, और ऋग्वेद यजुर्वेद, सामवेद तथा अर्थवेद भी आप ही हो। आप ही सर्वशास्त्र, संहिता, पुराण और तंत्र हो। हे माँ गायत्री! पंचमहाभूत, जगत के सभी तत्त्व, ब्राह्मी, सरस्वती, संध्या, तुरीय चार स्वरुप आप हो। ततसद ब्रह्म्स्वरूप और सदसदात्म भी आप हो। हे परे से भी परे, हे अम्बिके, हे माँ गायत्री आपको मैं प्रणाम करता हूँ।