25 अप्रैल 2010

अध्ययन कक्ष हो वास्तु अनुरूप

वास्तु नियम सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं और पढ़ाई में रुचि को बढ़ावा देते हैं।

जीवन को सफल बनाने की दिशा में शिक्षा ही एक उच्च सोपान है, जो जीवन में अंधकार के बंधनों से मुक्ति दिलाने का सामथ्र्य रखती है। शिक्षा के बल पर ही मानव ने आकाश की ऊंचाइयों, समुद्र की गहराइयों, भू-गर्भ और ब्रrांड में छिपे कई रहस्यों को खोज निकाला है। शिक्षा की अनिवार्यता प्राचीन ग्रंथों में भी मिलती हैं, जिनमें शिक्षा पर जोर देते हुए कहा गया है - माता बैरी पिता शत्रु येन बालों न पाठित:। न शोभते सभा मध्ये हंस मध्ये बको यथा।। अर्थात ऐसे माता-पिता बच्चों के शत्रु के समान हैं, जो उन्हें शिक्षित नहीं करते और वे विद्वानों के मध्य कभी सुशोभित नहीं होते।

शैक्षिक सफलता अध्ययन कक्ष की बनावट पर भी निर्भर करती है। वास्तु ऊर्जा भवन की आत्मा है, जिसके सहारे भवन में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति का जीवन संवर उठता है चाहे वह अध्ययन का क्षेत्र हो या कोई अन्य। कई होनहार विद्यार्थी मेहनत के बाद भी अपेक्षित फल नहीं प्राप्त कर पाते तथा फेल होने के भय से आत्महत्या जैसे कदम उठाने लगते हैं।

ऐसे मामलों मे कहीं न कहीं नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव देखा जाता है, जिससे विद्यार्थियों के सामने कई विकट समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं जैसे-पढ़ने में रुचि न होना, मन का उलझना, अकारण चिंता, तनाव, असफलता का भय, आत्मग्लानि, मंद बुद्धि, स्मरण शक्ति का अभाव आदि। ऐसे में वास्तु नियमों के अनुरूप सुसज्जित अध्ययन कक्ष में सकारात्मक ऊर्जा की बयार बहती रहती है, जिससे विद्यार्थियों को अच्छी सफलता मिलती है।

सकारात्मक ऊर्जा के नियम
* उत्तर-पूर्व या पूर्व में अध्ययन कक्ष शुभ, प्रेरणाप्रद व पश्चिम में अशुभ और तनाव युक्त रहेगा।

* अध्ययन कक्ष के दरवाजे उत्तर-पूर्व में ही ज्यादा उत्तम माने गए हैं। दक्षिण-पूर्व, दक्षिण-पश्चिम या उत्तर-पश्चिम दिशा में दरवाजे न रखें। इससे संदेह या भ्रम उत्पन्न होते हैं।

* पढ़ने की मेज चौकोर होनी चाहिए, जो अध्ययन शक्ति व एकाग्रता को बढ़ाती है। दो छोटे-बड़े पाएं, मोटे, टेढ़े व तिकोनी व कटावदार मेज का प्रयोग न करें।

* मेज को दरवाजे या दीवार से न सटाएं। दीवार से मेज का फासला कम से कम चौथाई फुट जरूरी है। इससे विषय याद रहेगा और पढ़ाई में रुचि बढ़ेगी। लाइट के नीचे या उसकी छाया में मेज सेट न करें, इससे अध्ययन प्रभावित होगा।

* मेज के ऊपर अनावश्यक किताबें न रखें। लैंप को मेज के दक्षिणी कोने में रखें।

* उत्तर-पूर्व में मां सरस्वती, गणोशजी की प्रतिमा और हरे रंग की चित्राकृतियां लगाएं। अध्ययन कक्ष में शांति और सकारात्मक वातावरण होना चाहिए। शोरगुल आदि बिल्कुल भी न हो।

* स्मरण व निर्णय शक्ति के लिए दक्षिण में मेज सेट कर उत्तर या पूर्व की ओर मुंह करके अध्ययन करें। उत्तर-पूर्व दिशा विद्यार्थी को योग्य बनाने में सहायक होती है।

* ट्यूशन के दौरान विद्यार्थी का मुंह पूर्व दिशा में हो। इससे आपसी तालमेल व रुचि बनी रहेगी।

* अध्ययन कक्ष में भारी किताबें, फाइलें और सोफे को दक्षिण या पश्चिम में रखें। कंप्यूटर, म्यूजिक सिस्टम को दक्षिण-पूर्व दिशा में रखें। अध्ययन कक्ष में टीवी कदापि न रखें।

* अध्ययन कक्ष के मध्य भाग को साफ व खाली रखें, जिससे ऊर्जा का संचार होता रहेगा।

* जिनका मन उचटता हो, उन्हें बगुले का चित्र लगाना चाहिए, जो ध्यान की मुद्रा में हो।

* लक्ष्य प्राप्ति हेतु एकलव्य या अजरुन की चित्राकृतियां लगानी चाहिए।

* मेज पर सफेद रंग की चादर बिछाएं। विद्या की देवी मां सरस्वती को प्रणाम कर अध्ययन शुरू करें। जिन विद्यार्थियों को अधिक नींद आती हो, उन्हें श्वान का चित्र लगाना चाहिए।

* दरवाजे के सामने या पीठ करके न बैठें।

* बीम के नीचे बैठकर न पढ़ें। अध्ययन कक्ष की दीवारों के रंग गहरे नहीं होने चाहिए। हरे, क्रीम, सफेद व हल्के गुलाबी रंग स्मरण शक्ति बढ़ाते हैं व एकाग्रता प्रदान करते हैं।

* अध्ययन कक्ष के पर्दे भी हल्के हरे रंग, विशेषकर हल्के पीले रंग के उत्तम माने जाते हैं।

* बिस्तर पर बैठकर न पढ़ें। कमरे में किताबों या अन्य वस्तुओं को अव्यवस्थित नहीं होना चाहिए।

* रात को सोते समय विद्यार्थी पूर्व की तरफ सिर करके सोएं। पूर्वी दीवारों पर उगते हुए सूर्य की फोटो लगाना उत्तम है।

* बेड के सामने वाली दीवार पर हरियाली वाली फोटो उत्तम मानी गई है।

उक्त वास्तु नियमों को अपनाकर प्रतिभाशाली व प्रखर बुद्धि वाले विद्यार्थी तैयार किए जा सकते हैं। विद्यार्थी अपने अध्ययन कक्ष को वास्तु अनुकूल बनाकर सफलता के सर्वोच्च शिखर को छूने का गौरव हासिल कर सकते हैं।