25 अप्रैल 2010

जिसकी आंखों का पानी सूख जाए, वह भक्त नहीं

भक्ति संवेदना और प्रेम का मामला है, इसमें कठोरता का कोई स्थान नहीं है। भक्ति अगर कठोर हो जाए तो फिर परमात्मा की प्राप्ति संभव नहीं है। भक्ति भी एक तरह की योग्यता है, गुण है, भक्ति उसी को मिल सकती है जिसके मन में संवेदनाएं जीवित हों, जिसकी आंखों में पानी हो। अगर आंखें सूख गई हैं तो फिर भक्ति भी चली जाती है।

आप जीवन के किसी भी क्षेत्र में हों भक्त बनने की तैयारी जारी रखें। भक्त हो जाना कोई एक दिन की घटना नहीं है यह सतत् प्रयास है। भक्त होना कठिन नहीं है लेकिन सरल भी न मान लिया जाए। भक्त शिरोमणी नारद ने नारद-भक्ति सूत्र नाम रचना में विस्तार से वर्णन किया है।पहली बात है भक्त की आंखों में नमी बनी रहे। जिनकी आंखों की नमी सूख गई फिर वे भक्त नहीं हो सकते। जीवन की गहराई को केवल आंखें नहीं इसके भीतर के आंसू देख पाते हैं। इसका सीधा अर्थ है व्यक्तित्व में संवेदनशीलता हो। दूसरी बात है, थोड़ा असहाय बने रहें। सब कुछ मैं ही कर लूंगा यह भाव न रखें, कुछ उस ऊपर वाले को भी करने दें। यह अहसास बना रहे कि जीवन भगवान भरोसे भी चलता है। तीसरी बात है भक्त होने के लिए थोड़ी मतवाली हिम्मत भी हो। जब आप भक्त होने की तैयारी कर रहे होंगे तब दुनिया आपका उपहास भी कर सकती है। बिना मतवाले हुई भक्त की मस्ती नहीं पाई जा सकती। कुछ लोग संसारी होकर भक्ति को कमजोर लोगों का कर्म मानते हैं। दरअसल भक्ति है हिम्मत का काम। यह दिल का सौदा दमदारी से होता है।भक्त होने के लिए चौथी और अंतिम बात जरा दार्शनिक है। भक्ति बुद्धि का नहीं, हृदय का विषय है। भक्त अपनी बुद्धि को विश्राम देना जानता है। संसारी लोगों की बुद्धि की जब मृत्यु हो जाती है तो वे पागल माने जाते हैं, लेकिन भक्त की बुद्धि की मृत्यु नहीं होती। भक्त द्वारा उसे विशिष्ट विश्राम दे दिया जाता है। वह अपनी बुद्धि को सेवानिवृत्त भी नहीं करता है बस विश्राम दे देता है। जैसे हम पुन: तरोताजा होने के लिए विश्राम करते हैं वैसे ही भक्त अपनी बुद्धि को विश्राम करा देते हैं और बुद्धि के इस विश्राम में ही परमात्मा का प्रवेश होता है।