25 अप्रैल 2010

नजरिया बदलें, नजर अपने आप बदल जाएगी

यह मानवीय व्यवहार है कि हम जिसके बारे में जैसा सुनते हैं, उसी के अनुसार अपना मानस भी तैयार कर लेते हैं। किसी के बारे में गलत सुना है तो फिर हम उसके भीतर हमेशा ही गलतियां ढूंढ़ने लगते हैं। अपना नजरिया बदलें, अच्छा देखने का भी प्रयास करें, आपको अच्छाई भी अपनेआप दिखाई देने लगेगी।

अपनी उपलब्धियों के पीछे उपयोग किए गए साधनों की शुद्धता के प्रति अत्यधिक सावधान रहें। आपके किए जा रहे काम की नीयत परिणाम पर उसर रखेगी। शहंशाह अकबर की तारीफ में स्वामी रामतीर्थ कहते थे जहां चाहे जिस गोद को चाहे अपना सरहाना बनाकर बेफिक्री से जो नींद निकाल सकता था, आईने अकबरी के लेखक अबुल फजल, पुर्तगाल के पादरी, बड़े बड़े हिन्दू पंडितों के दिल में जो राज करता था वो शाहंशाह अकबर था। उनकी नजर में अकबर एक आध्यात्मिक आदमी था। अकबर की दिनचर्या थी च्च्नमाजोरोजा ओ तसवीही-तोबा इस्तगफारज्‍ज यानी नमाज, रोजा तसबीह (माला) तोबा (पश्चाताप) और इस्तगफार (क्षमा-प्रार्थना)।दरअसल रामतीर्थ जिस ओर इशारा कर रहे हैं वह हमारे काम की बात है। अकबर के जीवन में लगातार जीत हांसिल हो रही थी। अकेले में अकबर को ख्याल आता था धन मेरा सेवक, वैभव मेरा अनुचर हो गया है आखिर इतनी ताकत मेरे दिल दिमाग में कहां से आती है, कौन देता है?

इसी कारण सूफी संतों की संगत उन्हें खूब लुभाती थी। ऐसी कामयाबी पर रामतीर्थ की टिप्पणी थी कि क्या भोग विलास और कामयाबी एक साथ चल सकते हैं। चिमगादड़ भले ही दोपहर के वक्त शिकार करने आ जाए लेकिन सियाह दिली (हृदय की मालिकता) सफलता के तेज को नहीं सह सकती है।रामतीर्थ का संकेत है कि सफल आदमी के जीवन का शुभ पक्ष देखा जाए तो हम भी अपने सफल होने के इरादे को मजबूत बनाए रख सकेंगे। हर राजा की आलोचना की जा सकती है और की भी गई है। अकबर के आसपास भी आरोपों का घेरा रहा है। रामतीर्थ अकबर के बहाने यह कह गए हैं कि योग्यता और सफलता को केवल आलोचनाओं से मत नवाजो, परखो। खूबियों को जाति-पाति, देश, काल, परीस्थिति के मुताबिक खुले दिल से कबूल किया जाए।