25 अप्रैल 2010

इसलिए सूर्य को देते हैं अघ्र्य

सूर्य जो जीवन का दाता है, ऊर्जा का केंद्र है। मानव जीवन को भी प्रभावित करता है। एक छोटे से पौधे को भी पेड़ बनने के लिए जल के साथ-साथ सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता होती है। सूर्य के प्रकाश में विटामीन-ई प्रचुरता से विद्यमान होता है। जो त्वचा के लिए उत्तम होता है। प्रात: काल सूर्योदय के समय सूर्य की जो रश्मियां निकलती हैं वह स्वास्थ्यवर्धक होती है। उनसे त्वचा, सांस, कफ, पित्त, वात, अनिद्रा, हृदय आदि रोगों में रक्षा होती है। धर्म शास्त्रों में इसलिए ही प्रात: सूर्य को जल चढ़ाने का विधान किया गया है। उसमें यह भी बताया गया है कि सूर्य से कभी सीधे नजरें नहीं मिलाना चाहिए। इससे आंखे की रेटिना पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है तथा ज्यादा देर तक सूर्य की ओर देखने से नेत्र भी खो सकता है। सूर्यास्त के समय भी सूर्य के दर्शन नहीं करने चाहिए। वह भी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। सूर्य अपनी प्रचण्ड गर्मी से समुद्र, तालाब, झीलों के पानी को वाष्प बनाकर उड़ाता है जो बादल के रूप में वर्षा करते हैं। जिससे सभी प्राणियों को अन्न एवं जल मिलता है। यही जल नदियों के द्वारा कई प्राणियों का पोषण करता है। इसी से सूर्य को प्रत्यक्ष देवता माना गया है। जो समुद्र के खारे जल को भी मीठे में परिणीत कर सभी का पोषण करता है। अपने स्वयं के प्रकाश एवं प्रभाव से भी जगत को संचारित करता है।