28 अप्रैल 2010

सबसे पहले स्वयं बदलने पर दें अपना ध्यान

अक्सर इंसान किसी न किसी विषय को लेकर अप्रसन्न या नाखुश बना ही रहता है। कभी कोई बात, कभी कोई व्यक्ति तो कभी हालात जिंदगी, कुछ तो ऐसा जरूर होता है जिसे लेकर वो असन्तुष्ट बना ही रहता है। लगता है जैसे नाखुशी उसके स्वभाव में ही शामिल है। स्वभाव में शामिल से मतलब यह नहीं है कि प्रकृति ने उसे ऐसा गढा़ हो, असल बात यह है कि इंसान ने स्वयं ही अपने स्वभाव को विकृत यानि रुग्ण बना लिया है।

हर इंसान दूसरों को अपने हिसाब से ढालना चाहता है। जबकि वह स्वयं तो अपने बीवी-बच्चों की कसोटी पर ही खरा नहीं है,दुनिया की बात ही कोन करे। लाख चाहकर भी कोई किसी को बदल नहीं पाता,उसे स्वयं ही बदलना होता है। जीवन का अनुभव यही सिखाता है कि दूसरों को बदलने की कोशिस करना अपना समय और श्रम बर्बाद करना है। इंसान की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि ईश्वर ने उसे स्यमं को बदलने की पूरी अथारिटी दे रखी है। जब वह खुद को बदल लेता है तो उसकी दुनियां में कमाल हो जाता है, चमत्कार ही उतर आता है। यदि जीवन और दुनिया के प्रति हमारा दृष्टिकोण या नजरिया बदल जाता है तो, निश्चित रूप से हमारा जीवन और हमारी दुनिया खुद ब खुद बदल जाते हैं। किसी के लिये जिंदगी और जहान में आनंद ही आनंद है तो किसी को सबकुछ दु:ख और उदासी से भरा हुआ लगता है। भले ही दोनों की आर्थिक व सामाजिक हालत समान हो। अत:हकीकत यही है कि इंसान का दृष्टिकोण बदलने से उसकी दुनिया भी बदल जाया करती है।