05 अप्रैल 2010

व्यापार केंद्र के वास्तु सूत्र

केवल घर को शास्त्रसम्मत सूत्रों के अनुरूप निर्मित कराना पर्याप्त नहीं है। आजीविका के लिए आधारभूत कार्यालय, या दुकान भी शुभ लक्षणों से युक्त होने चाहिएं और उसके अंदर उपकरणों को यथास्थान कैसे सजाना है, या किस दिशा की ओर मुंह कर के आसीन होना है। इत्यादि बातों की जानकारी भी आवश्यक है।

दुकान के पूर्व में मुख्य द्वार हो, तो पश्चिम से पूर्व की ओर तथा दक्षिण से उत्तर की ओर फर्श को ढलानदार बनाने की व्यवस्था करनी चाहिए। व्यापारी, या दुकानदार को आग्नेय में, पूर्वी दीवार की सीमा का स्पर्श किये बिना, दक्षिण आग्नेय की दीवार से सट कर, उत्तराभिमुखी ही आसीन होना चाहिए और कैश बॉक्स को दायीं तरफ रखना चाहिए। उसी स्थल में पूर्वाभिमुखी हो आसीन होने पर तिजोरी को दायीं ओर रख लेना चाहिए। यहां पर चबूतरे नहीं बनवाने चाहिएं। फर्श, या गद्दे पर न बैठना चाहें, तो मेज-कुर्सी लगा कर बैठ सकते हैं। किंतु किसी भी हालत में ईशान और वायव्य दिशा की ओर आसीन नहीं होना चाहिए। यदि संभव हुआ, तो, नैर्ऋत्य में चबूतरे, या मेज का प्रबंध कर के, पूर्व, या उत्तराभिमुखी हो कर आसीन हो सकते हैं। थोड़ी सी गद्दी बना कर फर्श पर भी बैठ सकते हैं।

दक्षिणमुखी दुकान : दक्षिण से उत्तर की ओर तथा पश्चिम से पूर्व की ओर फर्श ढलाऊं बना कर नैर्ऋत्य में चबूतरे, या मेज के आगे कुर्सी पर, पूर्वाभिमुखी हो, बैठने पर दायीं तरफ गल्ले को रखना चाहिए। उसी स्थान पर उत्तराभिमुखी हो कर आसीन होने पर बायीं ओर गल्ला, अथवा तिजोरी का प्रबंध करवा लेना चाहिए। दक्षिण सिंह द्वार वाली दुकान में आग्नेय, वायव्य और ईशान दिशाओं में बैठ कर व्यापार नहीं करना चाहिए।

पश्चिम दिशाभिमुखी द्वार : पश्चिम से पूर्व की ओर, दक्षिण से उत्तरी दिशा में, फर्श को ढलाऊंदार बना कर, नैर्ऋत्य में चबूतरे, या कुर्सी पर, या नीचे उत्तराभिमुखी हो बैठ कर, बायीं ओर गल्ले को रखवा लेना चाहिए। पश्चिममुखी द्वार वाली दुकान में वायव्य, ईशान और आग्नेय की ओर नहीं बैठना चाहिए।

उत्तरमुखी द्वार : दक्षिण से उत्तर की ओर, पश्चिम से पूर्व की ओर, ढलाऊंदार फर्श बना कर, वायव्य में उत्तरी दीवार को छुए बिना, पश्चिम दीवार से सट कर, बिना चबूतरे के, नीचे, या कुर्सी पर बैठ कर व्यापार कार्य संपन्न करना होगा। पूर्वाभिमुखी आसीन होने पर दायीं दिशा में गल्ले, या तिजोरी का इंतजाम करवा लेना चाहिए। उत्तरमुखी द्वार वाले दुकान में, संभव हो तो, नैर्ऋत्य में चबूतरे, या मेज का प्रबंध करना चाहिए। ईशान, या आग्नेय में नहीं बैठना चाहिए।

पूर्व दिशाभिमुखी दुकान : दुकान से बाहर जाने के लिए ईशान से उतरने लायक सीढ़ियां बनवा लेनी चाहिएं; अथवा पूरी दुकान की चौथाई में सीढ़ियां बनवा सकते हैं, या, पूर्व-आग्नेय हो कर, दुकान के आधे भाग तक चबूतरा बनवा कर, ईशान में सीढ़ियों का प्रबंध कर सकते हैं। ऐसी हालत में उत्तर-ईशान तक सीढ़ियां बनवा लेनी चाहिएं।

पश्चिमी मुख्य द्वार : वायव्य में सीढ़ियां बनवानी चाहिएं, या, नैर्ऋत्य की ओर आधे भाग तक चबूतरा बना कर, शेष आधे में वायव्य दिशा में सीढ़ियों का प्रबंध कर सकते हैं। संभव हो तो मध्य भाग में अर्ध चंद्राकृति में सीढ़ियों का प्रबंध करा सकते हैं। नैर्ऋत्य में सीढ़ियां न बनाएं। नैर्ऋत्य की दिशा का चबूतरा दुकान की फर्श के स्तर के बराबर, या थोड़ा ऊंचा होना चाहिए।

दक्षिण सिंह द्वार : आग्नेय दिशा में उतरने के लिए सोपानों का प्रबंध करना चाहिए, या, संभव हो, तो आधे भाग तक चबूतरा बनवा कर, शेष आधे भाग में आग्नेय की ओर सीढ़ियां बनवा लेनी चाहिएं। संभव हो, तो मध्य भाग में अर्ध चंद्रावृत्त में सीढ़ियां बनवा सकते हैं, किंतु नैर्ऋत्य में उतरने लायक नहीं। नैर्ऋत्य की ओर से प्रवेश और निर्गम उचित नहीं है।

उत्तर में सिंह द्वार : ईशान में सीढ़ियों का प्रबंध करवा लेना चाहिए या वायव्य की ओर से ईशान तक, पूर्ण रूप से, सीढ़ियों का प्रबंध कर लेना चाहिए। यदि मुमकिन हो, तो वायव्य की दिशा से आधे भाग तक चबूतरा बनवा कर, ईशान में सीढ़ियां रखवा लेनी चाहिएं। किसी भी स्थिति में पूर्व और उत्तरमुखी दुकानों के लिए अर्ध चंद्राकृति सीढ़ीयां नहीं बनाएं। यहां वायव्य में निर्मित होने वाला चबूतरा फर्श की सतह से ऊंचा नहीं होना चाहिए। दुकान में तराजू को चबूतरे, या मंच पर ही, पश्चिम और दक्षिण दीवारों की ओर, रखवा लेना चाहिए। शोकेस, स्टैंड, बोरे, या अन्य भारी सामान को ईशान में नहीं रखना चाहिए।

व्यापार संस्थान के मालिक, या प्रबंधक अपने कमरे नैर्ऋत्य दिशा में बनवाएं, तो अधिक लाभदायक होगा। उन कमरों में उन्हें पूर्व, या उत्तराभिमुखी हो आसीन होना चाहिए। उन कमरों के द्वारों को पूर्व और दक्षिण दिशाओं में ईशान की ओर ही रखवाना चाहिए। किसी भी स्थिति में आग्नेय, या वायव्य में द्वार नहीं रखवाना चाहिए।

पूर्व दिशामुखी दुकान के लिए दो शटर हों, तो, पूर्वी दिशा के ईशान शटर को खुला रख कर, आग्नेय दिशा के शटर को बंद रखना चाहिए। किसी भी हालत में ईशान के शटर को बंद कर के, आग्नेय शटर को खुला नहीं रखना चाहिए। लकड़ी के दरवाजे वाले को भी इसी क्रम का पालन करना चाहिए।

दक्षिण दिशाभिमुख दुकान : आग्नेय दिशा के शटर को खोल कर नैर्ऋत्य के शटर को बंद रखना होगा, अथवा दोनों को खुला रखना चाहिए। नैर्ऋत्य के शटर को खुला रख कर, आग्नेय शटर को बंद नहीं रखना चाहिए।

पश्चिम दिशा की दुकान : वायव्य दिशा का शटर खोल कर नैर्ऋत्य दिशा के शटर को बंद रखना होगा, या दोनों खोल देने चाहिएं। किसी भी हालत में, नैर्ऋत्य दिशा का शटर खोल कर, वायव्य दिशा के शटर को बंद नहीं रखना है।

उत्तर दिशाभिमुख दुकान : ईशान दिशा का शटर खोल कर वायव्य शटर को बंद रखना चाहिए, अथवा दोनों शटरों को खोल कर रखना चाहिए। किसी भी हालत में, नैर्ऋत्य शटर को खुला रख कर, ईशान शटर को बंद नहीं रखना चाहिए।

कुछ लोग इस विश्वास के बल पर ईशान कोण की छत को खुला रखते हैं कि घर के ईशान में सूर्य रश्मि का प्रसार अत्यंत लाभदायक होता है। यह अत्यंत दोषपूर्ण हैं, क्योंकि जब उत्तर और पूर्व का मिलन स्थल ईशान में यदि छत न हो, तो उत्तर-वायव्य और पूर्व-आग्नेय की छत बंद हो जाती है। इसके अलावा छत पर लघु दीवार के निर्माण से ईशान कट जाता है। यह दुकान और मकानों के लिए हितकर नहीं है। यदि इस प्रकार खुला रखना ही है, तो पूर्व में ईशान से ले कर आग्नेय तक पूर्ण रूप से छत को, समान माप के साथ, हटा सकते हैं। यदि पूर्वी दिशा में ऐसा संभव नहीं है, तो उत्तरी दिशा में ईशान से ले कर वायव्य तक, एक ही माप के साथ, हटा देना उत्तम है।

दुकान, मकान, अथवा कोई और निर्माण हो, तो, दक्षिण में नैर्ऋत्य से आग्नेय तक की माप की अपेक्षा, उत्तर में वायव्य से ईशान तक की माप ज्यादा होनी चाहिए। पश्चिम में नैर्ऋत्य से वायव्य तक की माप की अपेक्षा पूर्व और आग्नेय दिशाओं से ईशान तक की माप अधिक होनी चाहिए।

परिश्रम का केंद्र कारखाना : कारखाने का आधार भी भूमि ही है। यदि उद्योग को निरंतर चलते रहना है, तो वास्तु सूत्रों के अनुरूप भूमि का चुनाव करना है। सर्वप्रथम ऐसी भूमि का चयन करें, जिसका नैर्ऋत्य उन्नत हो, ईशान नीचा हो, कोने स्थिर हों। तदनंतर वास्तु सूत्रों का पालन करते हुए कारखाने का निर्माण करना चाहिए।

कारखाने के लिए भारी यंत्रों की आवश्यकता होती है। भारी यंत्रों की स्थापना नैर्ऋत्य में ही करवानी होगी। फर्श के नीचे स्थापित किये जाने वाले यंत्रों को बिठाने के लिए गड्ढा खोदना पड़ेगा। ऐसे यंत्रों को पूर्व और उत्तर में ही स्थापित करना होगा। गोदामों का निर्माण भी नैर्ऋत्य में ही होना चाहिए। परंतु बॉयलर की स्थापना आग्नेय में ही होनी चाहिए।

कारखाने के मालिक अपने कार्यालय का प्रबंध अपनी सुविधानुसार कर रहे हैं। यहां आजकल नियमों का पालन नहीं हो रहा है। यह शुभदायक नहीं। पूरब और पश्चिम दिशाओं में फाटक वाले कारखानों के दक्षिण और उत्तर की दिशाओं में गोदाम निर्मित होते हैं। ऐसी हालत में दक्षिण दिशा में फाटक हो, तो गोदामों का निर्माण पूर्व और पश्चिम में होना चाहिए तथा यहां पश्चिम में कार्यालय का प्रबंध कर लेना चाहिए।

भूतल गोदाम : अगर पूर्वी मुख्य द्वार वाला घर हो, तो भूतल गोदामों को पूर्वी ईशान, या पूर्व में निर्माण कर सकते हैं। दक्षिणमुखी भवन के आगे निर्माण नहीं करवाना चाहिए। ऐसा करना पश्चिममुखी के आगे भी वर्जित है। उत्तरमुखी घर के लिए उत्तर-ईशान, अथवा उत्तरी दिशा में गोदाम के लिए खुदवा सकते हैं।

भारत में 75 प्रतिशत औद्योगिक क्षेत्रों के नक्शे वास्तु शास्त्र के विपरीत बनाये जा रहे हैं। भौगोलिक, भौतिक, रासायनिक इत्यादि समस्त क्षेत्रों के सिद्धांतों में कालानुसार अनेक परिवर्तन होते जा रहे हैं। परंतु आज भी निरर्थक प्राचीन सिद्धांतों से चिपके लोगों की संख्या कम नहीं है।

आज भवन, बांध, सड़क आदि के निर्मार्णों में वास्तु शास्त्र के नियमों का खुल कर उल्लंघन हो रहा है। भारत सरकार इस का फल भी भुगत रही है।