22 मार्च 2010

Hindi Novel - ELove : ch-48 करोडो रुपयोंका नुकसान

घडीमें दिख रहे शुन्य घंटेने सब लोगोंमे एक अस्वस्थता, एक डर फैलाया था.

'' अब तो सिर्फ 20 मिनटही बाकी है ... अबभी उसका फोन कैसे नही आया? '' अंजलीने कहा.

वह भलेही उपरसे नही दिखा पा रही थी, उसे कंपनीके भले बुरेसे विवेककी जादा चिंता थी, और वह लाजमीभी था. इन्स्पेक्टर कंवलजितने अंजलीके कंधेपर अपना धीरजभरा हाथ रखते हूए कहा, '' धीरज रखो ... फोन इतनेमेंही आएगा ''

'' लेकिन अगर उसका फोन नही आया तो हमारे कंपनीका क्या होगा ?'' भाटीयाजीने चिंताभरे स्वरमें कहा. यह उन्होने पुछा हुवा सवाल, सवालसे जादा चिंता दर्शा रहा था, इसलिए इस सवालको जवाब देनेके झमेलेंमे कोई नही पडा. और देंगे तो क्या जवाब देंगे ? तभी कंपनीके चार पाच कर्मचारी वहां जल्दी जल्दी आगए.

'' क्या लिया क्या बॅक अप?'' भाटीयाजींने उन्हे अधीरतासे पुछा.

'' नही सर ... उसने प्रोग्रॅमही इस तरहसे लिखा है की नेटवर्ककी सब आवाजाही बंद करके रखी है '' उनमेंसे एक कर्मचारी बोला.

'' साला यह कॉम्प्यूटर जितना काम आसान बनाता है कभी कभी उतनाही मुश्कील बना देता है '' भाटीयाजी चिढकर बोले.

भाटीयांजी चिढनेकी वजहभी वैसी ही थी. उस नेटवर्कमें सॉफ्टवेअरके रुपमें उस कंपनीके क्लायंट्सके करोडो रुपए फंसे हूए थे. और वह सारा डाटा अगर डीलीट हुवा तो करोडो रुपयोंका नुकसान होना था. वह कंपनी वे सॉफ्टवेअर फिरसे डेव्हलप कर नही सकती थी ऐसी बात नही थी. लेकिन वह सॉफ्टवेअर डेव्हलप करनेके लिए लगनेवाला वक्त और कंपनीने लाखो कर्मचारीयोंकी मेहनतपर पाणी फेरनेवाला था. और डिलेव्हरी वक्तपर ना देनेसे कंपनीका नाम खराब होकर उनके कुछ ऑर्डर्स कॅन्सलभी हो सकते थे, वह अलग. इन्स्पेक्टर कंवलजितकी भाटीयाजींको धीरज बंधानेकी इच्छा हुई लेकिन हिंम्मत नही बनी. क्योंकी अब उन्हे खुदकोभी अतूलका फोन आएगा की नही इस बारेमें आशंका हो रही थी.

'' कॅन समबडी ट्राय ऑन द मोबाईल'' एक कर्मचारीने सुझाया.

'' मै कबसे ट्राय कर रही हूं ... लेकिन 'स्विच्ड ऑफ'काही मेसेज आ रहा है '' अंजलीने कहा.

क्योंकी वह विवेकने हालहीमें खरीदा हुवा मोबाईल था और उसका नंबर अंजलीके पास था.


अतूल गाडी चला रहा था और उसके बगलमेंही विवेक बैठा हुवा था. इतने देरसे दोनोंभी चुपचाप थे. अतूल तेडे मेडे रस्तेपर इधर उधर गाडी मोडते हूए गाडी चला रहा था और विवेक रास्तेपर वह कहां गाडी ले जा रहा है और उसकी कहां भागनेकी मनिषा है यह समझनेकी कोशीश कर रहा था. वैसे बिच बिचमें अतूल विवेकको रास्ता पुछ रहा था, लेकिन जितना अतूल था उतनाही अनभिज्ञ विवेकभी था. और जब उसके यह खयालमें आगया उसके चेहरेपर एक हंसी दिखने लगी थी और उसने उसे रास्ता पुछनाभी बंद किया. विवेकको रास्ता मालूम ना होना यह बात अतूलके लिहाजसे फायदेमंदही थी. तभी अतूलने प्रमुख रास्तेसे अपनी गाडी एक निर्जन प्रदेशके लिए मोड दी.

'' इधर किधर जा रहे है हम ... वहांसे मोबाईलका सिग्नल नही मिलेगा शायद '' विवेकने कहा.

अतूल उसकी तरफ देखकर अजिब तरहसे सिर्फ मुस्कुरा दिया. रास्ते से काफी मोड लेनेके बाद अचानक अतूलने जोरसे ब्रेक दबाते हूए अपनी गाडी रोक दी और वह गाडीसे उतर गया. विवेकभी गाडीसे उतरकर सिधा डीकीकी तरफ चला गया. डीकी खोलकर पहले उसने मोबाईल बाहर निकालकर स्वीच ऑन करके देखा. मोबाईलपर आनेवाले सिग्नल्स देखकर वह राहतकी सांस लेते हूए बोला, '' सिग्नल्स तो आ रहे है ''

अतूल चलते हूए गाडीके दुसरे तरफसे विवेकके पास गया.

'' हं अब उन्हे पासवर्ड बता दे '' विवेक मोबाईल उसके पास देते हूए बोला.

'' अरे बताते है भाई ... इतनी जल्दी किस बातकी '' अतूल कंधे उचकाकर बेपरवाही से बोला.

'' नही ,... अब सिर्फ दस मिनिटही बचे हूए है ''

विवेक अतूलपर बहुत भडक गया था. लेकिन वह अपने आपपर नियंत्रण करते हूए जादासे जादा शांत रहनेकी कोशीश कर रहा था, क्योंकी शांतीसेही काम होने वाला था.

'' दस मिनट ... कॉम्प्यूटरके लिए बहुत है ... तुम्हारे जानकारीके लिए बताता हूं ... कॉम्प्यूटरमें वक्त नॅनोसेकंडमें गिना जाता है '' अतूलने कहा.

विवेकको उससे कॉम्प्यूटरके बारेमें जानकारी सुननेकी बिलकुल इच्छा नही थी. इस वक्त ऐसी बाते सुनकर विवेक अपने गुस्सेको काबू नही रख पा रहा था.

'' कॉम्प्यूटरके लिए दस मिनट बहुत होंगे... मेरे लिए नही '' विवेक चिढकर बोला.

'' हां वह भी सही है '' अतूल उसके पास जाते हूए बोला.