21 मार्च 2010

Hindi Novel - Elove - ch-40 गुड न्यूज

अंजली अपने कॅबिनमें अपने काममें व्यस्त थी. तभी फोनकी घंटी बजी.

'' हॅलो '' अंजलीने फोन उठाया.

'' अंजली देअर इज गुड न्यूज फॉर यू..."" उधरसे इन्स्पेक्टर कंवलजित बोल रहे थे.

'' यस अंकल''

'' ब्लॅकमेलरने विवेकको छोड दिया है ...'' इन्स्पेक्टरने अंजलीको खुशखबरी सुनाई.

'' ओ.. थॅंक गॉड ... आय कान्ट एक्सप्लेन ... आय ऍम सो हॅपी...''

अंजलीको विवेकके छुटनेकी खबर जबसे मिली थी तबसे उसे कुछभी सुझ नही रहा था. उसे कब मिलती हूं ऐसा उसे हो रहा था. वह ऑफीसका सारा काम वैसाही छोडकर सिधे एअरपोर्टकी तरफ निकल पडी.

... उसे पहले बताना कैसा रहेगा ?

नही ... उसे सरप्राईज देते है ...

और उसे डायरेक्ट बतानेका कोई रास्ताभी तो नही ...

इमेल थी. लेकिन आजकल अंजलीको इमेल, चॅटींग इन सारी चिजोंसे सक्त नफरत और मनमें डरसा बैठ गया था.

एअरपोर्ट आया वैसे उतरकर उसने ड्रायव्हरको गाडी वापस ले जानेके लिए कहकर वह लगभग दौडते हूए तिकिट काऊंटरके पास गई.

'' मुंबईके लिए ... अब कोई फ्लाईट है ?'' उसने पुछा.

'' वन फ्लाईट इज देअर .. जस्ट रेडी टू टेक ऑफ...'' काऊंटरपर बैठे लडकिने बताया.

'' वन टीकट प्लीज'' अंजली अपना क्रेडीट कार्ड आगे करते हूए बोली.

उसने काऊंटरसे टिकट खरीदा और लगभग दौडते हूए ही वह फ्लाईटकी तरफ दौड पडी. तभी उसका मोबाईल बजा. उसने मोबाईलका डिस्प्ले देखा. डिस्प्लेपर उसके ऑफिसका नंबर था. उसने आगे कुछ ना सोचते हूए ही फोन बंद किया और दौडते हूएही फ्लाईटमें जाकर बैठ गई. सिटवर बैठतेही फिरसे उसका मोबाईल बजने लगा. उसने मोबाईलका डिस्प्ले देखा. वही ऑफीसका नंबर

ऑफीसचा नंबर... क्या काम होगा ?... शरवरी एक कामभी ठिकसे नही संभाल सकती ..

उसने फोन बंद किया. लेकिन वह फिरसे बजने लगा.

शरवरी कभी ऐसा बार बार फोन नही करती ...

कुछ तो जरुरी काम होगा ...

उसने फोन उठाया और उधर फ्लाईटका लास्ट कॉल हो गया.

'' क्या है शरवरी?... '' वह लगभग चिढकरही बोली.

लेकिन यह क्या? उधरसे आनेवाला आवाज आदमीका था - हां विवेकका आवाज था.

'' विवेक तूम... '' वह एकदमसे सिटसे उठकर खडी होते हूए बोली, '' ऑफीसमें तुम कैसे .. कब.. और वहां क्या कर रहे हो ...?'' उसे क्या बोला जाए कुछ समझ नही आ रहा था.

वह बोलते हूए जल्दी जल्दी प्लेनके दरवाजेकी तरफ जा रही थी.

'' तुम्हे मिलनेके लिए आया था '' उधरसे विवेकका आवाज आया.

वह जब प्लेनके दरवाजेके पास पहूंची तब प्लेनका दरवाजा बंद किया जा रहा था.

'' रुको मुझे उतरना है ... ''

'' क्यों क्या हुवा ?'' अटेंडंट्ने पुछा.

'' आय ऍम नॉट फीलींग वेल'' उसके पास अब पुरी बात समझानेका वक्त नही था.

वह दरवाजा बंद करते हूए रुक गया. और वह तेजीसे चलते हूए प्लेनसे उतर गई.

वह अटेंडंट उसकी तरफ आश्चर्यसे देख रहा था.

"इसकी तबीयत ठिक नही ... फिर वह इतने जल्दी जल्दी और जोशके साथ कैसे उतर रही है ?' उसके मनमें आया होगा.

उसकी टॅक्सी लगभग अब उसके घरके पास पहूंच गई थी. टॅक्सी जैसेही उसके घरतक आकर पहूंची उसके दिलकी धडकने तेज हो रही थी. प्लेनसे बाहर निकलतेही वह सिधे एअरपोर्टके बाहर आ गई थी और टॅक्सी लेकर उसने टॅक्सीवालेको सिथे उसके घर ले जानेके लिए कहा था. और प्लेनमें जब विवेकका फोन आया था तभी उसने उसे अपने घर आनेके लिए कहा था. उसे ऑफीसमें सिन नही चाहिए था. तबतक टॅक्सी उसके घरके आहातेमें आकर रुकी. उसे पोर्चमेही विवेक उसकी बडी अधिरतासे राह देखता हूवा दिखाई दिया. उसकी टॅक्सी आतेही वह पोर्चसे उतरकर उसके टॅक्सीके पास आ गया. उसेभी अब रहा नही जा रहा था. टॅक्सीका दरवाजा खोलकर सिधे वह उसके बाहोंमे घुस गई. न जाने कितने दिनोंसे वे एक दुसरेकों मिल रहे थे. अंजली के आंखोमें आंसू आ गए और वे फिर रुकनेका नाम नही ले रहे थे.

'' अरे अरे... यह क्या ?'' विवेक उसे थपथपाते हूए बोला.

'' देखो तो मै पुरा की पुरा सहीसलामत तुम्हारे पास पहूंच गया हूं '' वह मजाकिया अंदाजमे, मौहोल थोडा ढीला करनेके लिए बोला.

लेकिन वह उसे इतनी मजबुतीसे चिपक गई थी की वह उसे छोडनेके लिए तैयार नही थी.