31 मार्च 2010

राजकुमार और पत्थर के खम्भे


बहुत समय पहले रत्नगिरि का राजा अच्छी तरह शासन कर रहा था और उसके राज्य में प्रजा शान्तिपूर्वक जीवन-यापन कर रही थी। उसके तीन पुत्र थे और वे तीनों सुन्दर युवक के रूप में बड़े हो रहे थे। यह सोचकर कि इन्हीं में से कोई उसके सिंहासन का उत्तराधिकारी होगा, उन्हें राजा ने अपने पास बुला कर कहा, ‘‘मैं चाहता हूँ कि अब तुम सब राज्य में घूम कर यह देखो कि प्रजा कैसे रहती है, वे सुखी हैं कि नहीं। तुम सब भिन्न-भिन्न दिशाओं में जाओ और संध्या तक लौटकर यह बताओ कि तुमने क्या देखा।''

अतः दूसरे दिन प्रातःकाल तीनों राजकुमार दिन का भोजन अपने साथ लेकर पैदल निकल पड़े। सबसे बड़े राजकुमार राजकीर्ति ने बायीं ओर का मार्ग लिया; राजमूर्ति ने दायीं ओर का रास्ता लेने का निश्चय किया; सबसे कनिष्ठ राजकुमार राजस्नेही ने सीधे जानेवाले पथ का अनुगमन किया। सबने संध्याकाल तक महल में वापस लौट आने का वचन दिया।

राजकीर्ति बहुत देर तक चलने के बाद एक जंगल में पहुँचा जहाँ उसने एक सरोवर के निकट तीन खूबसूरत घोड़ों को घास चरते देखा। निकट ही एक वृक्ष के नीचे बैठा एक योगी घोड़ों की निगरानी कर रहा था। राजकुमार ने योगी के पास जाकर साष्टांग दण्डवत किया। योगी ने पूछा, ‘‘वत्स, तुम कौन हो और जंगल में तुम्हारा कैसे आना हुआ?''

राजकीर्ति ने अपना परिचय और आने का उद्देश्य बताते हुए कहा, ‘‘हे महात्मन ! क्या मैं आप के एक घोड़े पर सवारी कर सकता हूँ जिससे मैं अधिक से अधिक क्षेत्रों तक पहुँच कर वहाँ की प्रजा से मिल सकूँ?''

‘‘किसी घोड़े को ले लो लेकिन सूर्यास्त तक निश्चित रूप से लौट आना और अपनी यात्रा के बारे में बताना'', योगी ने कहा।

राजकीर्ति एक घोड़े पर सवार होकर तेज़ी से निकल पड़ा। कुछ दूरी पर वहाँ सब्जियों का एक विचित्र बाग देख कर रुक गया।

उस बाग का कोई माली नहीं था उसके बाड़े में कोई द्वार बना हुआ नहीं था। वह अपनी आँखों पर विश्वास न कर सका जब उसने देखा कि बाड़े के खूंटे हँसियों में बदल गये और सब्जियों को काटने लगे। राजकुमार चाहता तो अब बाग के अन्दर जा सकता था, लेकिन उसे साहस न हुआ।

वह जंगल में लौटकर घोड़े से नीचे उतर योगी के पास आया। ‘‘हाँ पुत्र, तुम उत्तेजित लग रहे हो। क्या बात है?'' राजकीर्ति ने रहस्यमय बाग के बारे में बताया। ‘‘राजकुमार'', योगी ने आँखें मिचकाते हुए पूछा, ‘‘तुमने उस विचित्र दृश्य से क्या सीखा?''

‘‘मैं कुछ नहीं समझ सका, महात्मन! यह सब रहस्यमय था और इस विचित्र घटना की व्याख्या करना मेरे बस की बात नहीं है।'' राजकुमार ने स्वीकार किया।

‘‘यदि तुम इतनी आसान चीजें नहीं समझ सकते तो शासन कैसे करोगे? मैं तुम्हारी मूर्खता के कारण तुम्हें पत्थर का खम्भा बना रहा हूँ।''

जब राजकीर्ति रात तक भी नहीं लौटा तब राजा और दोनों राजकुमार बहुत चिन्तित हो गये। राजा दोनों राजकुमारों से भी उनके अनुभव के बारे में पूछना भूल गया। उन्होंने देखा कि दोनों राजकुमार दिन भर राज्य में घूमते रहने के कारण थक गये हैं। उन्होंने कहा कि दूसरे दिन प्रातःकाल सोचेंगे कि क्या करना है। यह निश्चय किया गया कि राजमूर्ति भाई की खोज में बायीं ओर की सड़क से जायेगा। और राजस्नेही दायीं ओर की सड़क से, क्योंकि जिस मार्ग से पहले दिन वह गया था वह पहाड़ों की ओर जाता था जिधर आबादी बहुत कम थी।

राजमूर्ति, शीघ्र ही जंगल में आ गया, जहाँ तीन ख़ूबसूरत घोड़े घास चर रहे थे और एक योगी उनकी निगरानी कर रहा था। उसने योगी को प्रणाम किया और एक घोड़े पर सवारी करने की आज्ञा मांगी। ‘‘हे महात्मन, मैंने ऐसे सुन्दर घोड़े पहले कभी नहीं देखे।''

‘‘ले जाओ, ओ राजकुमार! लेकिन सूर्यास्त तक लौट आना और अपनी साहसिक यात्रा के अनुभव बताना।'' योगी ने मुस्कुराते हुए कहा।

राजमूर्ति घोड़े पर सवारी के उत्साह में पत्थर का वह खम्भा देख न सका जिसका ऊपरी हिस्सा उसके भाई के चेहरे से मिलता-जुलता था। कहीं उसका भाई खड़ा, बैठा हुआ या लेटा हुआ मिल जाये, इस ख्याल से घोड़े पर सवार हो जाते हुए उसने अपनी बायीं और दायीं ओर देखा। लेकिन उसे कोई ऐसा नहीं मिला ।

उसे एक बूढ़ा आदमी मिला जो लकड़ी के गट्ठर से दब कर झुका हुआ था। राजमूर्ति ने घोड़े की लगाम खींचते हुए पूछाः ‘‘दादा जी, क्या मैं सहायता करूँ?''

उस आदमी ने अपना सिर भी नहीं उठाया। और न एक शब्द ही कहा। पर फिर भी और लकड़ियाँ चुनता रहा। राजमूर्ति को यह घटना अनोखी-सी लगी, इसलिए उसने योगी को बताना चाहा।

वह वापस लौटकर घोड़े से नीचे उतरा और अभिवादन के लिए झुका। ‘‘बताओ, तुम्हारा अनुभव क्या था?'' योगी ने पूछा।

राजमूर्ति ने वृद्ध के विषय में बताया और यह भी कहा कि वह उसकी सहायता करना चाहता था, लेकिन वृद्ध ने इसकी सहायता नहीं ली।

‘‘उसने तुम्हारी सहायता क्यों नहीं स्वीकार की?'' योगी ने पूछा। ‘‘मैं नहीं कह सकता, महात्मन; उसने तो एक शब्द भी नहीं कहा।'' राजमूर्ति ने कहा।

‘‘राजकुमार! यदि तुम इतनी सरल बातें भी नहीं समझ सकते तो मौका मिलने पर राज्य पर शासन कैसे करोगे? तुम मूर्ख हो, इसलिए मैं तुम्हें पत्थर का खम्भा बना देता हूँ।''

जब राजमूर्ति भी नहीं लौटा, राजस्नेही के साथ राजा भी परेशान हो गया। राजस्नेही ने राजा को आश्वस्त करते हुए कहा कि कल सवेरे ही भाइयों की खोज में निकल पडूँगा। दूसरे दिन सुबह ही वह बायें मार्ग पर चल पड़ा और शीघ्र ही उस जंगल में पहुँच गया। उसे भी चरते हुए सुन्दर घोड़ों ने आकृष्ट किया जिन्हें एक शान्तिपूर्वक बैठा हुआ योगी देख रहा था। अचानक राजकुमार ने पत्थर के दो खम्भों को देखा। ये उसे बहुत विचित्र लगे। खम्भों के ऊपरी हिस्से उसके भाइयों के चेहरों से मेल खाते थे। उसके मन में जिज्ञासा हुई।

राजस्नेही ने योगी से पूछा, ‘‘हे पावन आत्मा! क्या आपने मेरे भाइयों को देखा है?''

‘‘हाँ, वे इधर आये थे।'' योगी ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘‘वे घोड़ों पर सवार होना चाहते थे। जब वे वापस आये मेरे प्रश्नों के उत्तर न दे सके, इसलिए मैंने उन्हें पत्थर के खम्भों में बदल दिया।''

‘‘क्या उन्हें पुनः जीवित नहीं किया जा सकता, महात्मन?'' राजस्नेही ने विनती की।

‘‘एक घोड़ा ले जाओ और मार्ग में कुछ अनोखी चीज़ दिखाई दे तो मुझे उसका रहस्य समझाओ।''

योगी ने कहा। ‘‘यदि तुम्हारा उत्तर सन्तोषजनक हुआ तो तुम तीनों राजकुमार तीनों घोड़ों पर सवार होकर वापस जा सकते हो।''

राजकुमार राजस्नेही ने थोड़ी देर के लिए सोचा और अपने भाग्य की परीक्षा लेने का निश्चय किया, जिससे उसके भाइयों के प्राण भी बचाये जा सकते थे। वह योगी के आदेशानुसार एक घोड़े पर सवार होकर चल पड़ा। उसने कोई अनोखी घटना नहीं देखी और न किसी विचित्र व्यक्ति से उसकी मुलाकात हुई जिससे योगी के उत्तर देने के लिए उसे कोई संकेत मिल सके।

उसे प्यास लग रही थी और वह घोड़े को विश्राम भी देना चाहता था। उसने कुछ दूरी पर एक सरोवर देखा।

वह घोड़े को घास चरने के लिए छोड़ दिया और पानी पीने के लिए सरोवर की ओर बढ़ा। जैसे ही उसने अपनी अंजलि में पानी लेने के लिए हाथ बढ़ाया कि आश्चर्य! सरोवर पीछे हट गया। वह आगे बढ़ा, लेकिन जल पीछे हटता गया। और, घोर आश्चर्य! राजकुमार थोड़ी ही देर में सूखे सरोवर के तल पर खड़ा था।

यह सचमुच एक आश्चर्यजनक घटना थी। वह तुरन्त योगी के पास वापस चला गया और अपने अनुभव के बारे में बोला। ‘‘हाँ, ठीक है, लेकिन इस घटना से तुमने क्या समझा?'' योगी ने प्रश्न किया।

राजकुमार ने बहुत माथापच्ची की लेकिन उसे कोई युक्तियुक्त उत्तर न सूझा जो साधु को सन्तुष्ट कर सके। ‘‘तुम भी अपने भाइयों के समान मूर्ख हो और तुम्हारी भी वही दुर्गति होगी।'' योगी ने कहा। दूसरे ही क्षण राजकुमार राजस्नेही पत्थर के खम्भे में बदल गया। कोई भी कल्पना कर सकता है कि सबसे छोटे राजकुमार के देर रात तक भी नहीं लौटने पर महल में कितनी खलबली मची होगी।

राजा के पश्चाताप का कोई अन्त नहीं था, क्योंकि उसी के आदेश पर राजकुमार बाहर गये थे।

मंत्री ने सुझाव दिया कि राजकुमारों की खोज करने के लिए सेना को चारों ओर भेज देना चाहिये। किन्तु राजा ने घोषणा की कि राजकुमारों की खोज करने वह स्वयं जायेगा। राजा ने उसी मार्ग का अनुगमन किया और शीघ्र ही उसी जंगल में आ गया जहाँ योगी शान्तिपूर्वक घोड़ों को चरते हुए निगरानी कर रहा था।

राजा ने सोचा कि योगी अपने तपोबल से राजकुमारों के बारे में कुछ कह सकेगा। ‘‘हे धर्मात्मा, मेरा विश्वास है कि मेरे तीनों बेटे राज्य का भ्रमण करने के लिए इस मार्ग से आये हैं...''

योगी बीच में ही हस्तक्षेप करते हुए बोला, ‘‘हाँ, वे आयेथे । मैंने उनसे आसान सवाल पूछे जिनका उत्तर वे नहीं दे सके। मेरी नज़र में वे मूर्ख थे और राजा होने लायक नहीं थे। इसलिए मैंने उन्हें पत्थर के खम्भों में बदल दिया। तुम उन्हें यहाँ देख सकते हो।''

राजा खम्भों के ऊपरी हिस्सों को अपने बेटों के चेहरों से मिलते देख चकित रह गया।

‘‘वे प्रश्न क्या थे, महात्मा? क्या मैं अपने बेटों के लिए उत्तर दे सकता हूँ।'' राजा ने कहा।

योगी ने तब सबसे बड़े राजकुमार के अनुभव के बारे में बताया। ‘‘राजकुमार ने सब्जियों का एक बाग देखा जिसका कोई रक्षक नहीं था। अचानक ब़ाडे के खूंटे हँसियों में बदल कर सब्जियों को काटने लगे। इसका अर्थ क्या है?''

‘‘बाड़ा पौधों और सब्जियों की रक्षा के लिए था। लेकिन एक दुष्ट रखवाले की तरह अपने मालिक की दौलत को उसने बर्बाद कर दिया।''

योगी ने मुस्कुराते हुए दूसरे राजकुमार के अनुभव का विवरण दिया। ‘‘भारी बोझ से दबा हुआ होते हुए भी उसकी परवाह किये बिना और लकड़ियाँ चुन कर वृद्ध अपना भार बढ़ाये जा रहा था। हे राजन, इसका अर्थ क्या है?''

राजा ने कहा, ‘‘वृद्ध को अपने पास की सम्पति से सन्तोष नहीं था। परिणाम पर विचार किये बिना वह और अधिक प्राप्त करने के लोभ से ग्रस्त था।''

योगी अब भी मुस्कुरा रहा था। ‘‘तुम्हारा सबसे छोटा राजकुमार प्यास बुझाने के लिए सरोवर से पानी पीना चाहता था, लेकिन सरोवर ने उसे धोखा दिया। हे राजा, इस रहस्य का क्या अर्थ है?''

‘‘एक फ़िज़ूलखर्च के पास जो बेकार की चीजों पर अपनी दौलत बर्बाद करता है, अन्त में कुछ नहीं बचता।'' राजा ने कहा। उसे एक अदृहास सुनाई पड़ा और उसने अपने तीनों बेटों को अपने पास देखा। खम्भे अदृश्य हो गये थे।

‘‘हे महात्मन!'' राजा ने साष्टांग दण्डवत केसाथ कहा। ‘‘मेरे तीनों बेटों को पुनर्जीवन देने के बदले मैं आजीवन आप की सेवा करूँगा। आज मैं इन्हें अपने महल में ले जाऊँगा और यदि आप मेरे बच्चों को यह शिक्षा देने के लिए कि वे अच्छे राजा कैसे बनें, आप इनके गुरु बनकर हमारे साथ चलें तो मैं आप का आभारी रहूँगा।''

योगी ने राजा का निमन्त्रण स्वीकार कर लिया और राजकुमारों को कहा, ‘‘तुम सब एक-एक घोड़ा लेकर अपने पिता के साथ लौट जाओ।''

कुछ दिनों के पश्चात योगी को समारोहपूर्वक महल में ले जाकर राजकुमारों के राजगुरु के रूप में प्रतिष्ठित किया गया।