31 मार्च 2010

लाभ-हानि


कामेश मनौती पूरी करने एक दिन रामेश को लेकर पैदल चल पड़ा। उसे ब्रह्मपुर का मंदिर जाना था। रास्ते में बारिश से दोनों भीग गये। कामेश लगातार छींकने लगा, तब रामेश ने उसे सलाह दी, ‘‘हर दिन स्नान के बाद तुलसी के पत्ते खाना। जुकाम से बचोगे। मैं खुद इसका उदाहरण हूँ।''

‘‘तुलसी के पत्ते खाने मात्र से क्या छींकें रुक जायेंगी?अपनी व्यर्थ राय मुझपर थोपना मत।'' कामेश ने चिढ़ते हुए कहा।

ब्रह्मपुर पहुँचकर दोनों वैद्य के पास गये। रामेश ने वैद्य से कहा, ‘‘मैंने इससे कहा कि हर रोज़ तुलसी के पत्ते खाने से जुकाम से बचोगे। पर, यह विश्वास ही नहीं करता। कृपया इसे समझाइये।'' उसने कामेश की शिकायत की।

वैद्य ने उसे क्रोध से देखते हुए कहा, ‘‘मेरे पास आनेवाले अधिकाधिक जुकाम से ही पीड़ित रोगी हैं। मैं इसे रोकने के लिए अचूक दवा देता हूँ'', कहते हुए उसने तीन दिनों की दवा दी।

कामेश, रामेश की हार पर खुश हुआ और दवा खा ली। दवा लेने के बाद भी वह छींकने लगा तो रामेश बोला, ‘‘बता चुका हूँ दवा लेने के बाद भी छींकें आती रहेंगी। मेरी मानो, हर रोज़ तुलसी के पत्ते खाना शुरू कर दो।''

‘‘बाप रे, तुम तो तुलसी के पत्तों पर, ज़ोर देते जा रहे हो।'' चिढ़ते हुए कामेश ने कहा। जब दोनों मंदिर की सीढ़ियों पर चलने लगे तब एक आदमी लगातार छींकता रहा। रामेश उसे तुलसी के पत्ते खाने की सलाह देने लगा। उस समय धनराज नामक एक व्यक्ति कामेश को प्रणाम करते हुए कहने लगा, ‘‘एक साधु ने कहा है कि इस मंदिर में आनेवाले किसी भक्त से बीस अशर्फ़ियाँ लेकर व्यापार करोगे तो काफी धन कमाओगे। क्या आप मेरी सहायता कर सकेंगे?''

रामेश को सताने का अच्छा मौका कामेश को मिला। उसने रामेश को दिखाते हुए उस व्यक्ति से कहा, ‘‘तुम एक-एक करके उस के पास आदमी भेजते जाओ और हर कोई उससे यह पूछे कि जुकाम का क्या उपाय है। फिर उससे दान माँगे। वह हरेक को एक अशर्फी देगा।''


धनराज ने कामेश के अनुसार एक-एक करके बीस आदमियों को उसके पास भेजा। रामेश ने धैर्य के साथ उन्हें तुलसी के पत्तों को खाने की सलाह दी। एक ने कहा, ‘‘हमारे गॉंव में तुलसी के पौधे नहीं हैं, क्या मैं उनके बदले आंवले के पत्ते खा सकता हूँ?'' एक और ने कहा, ‘‘मेरी स्मरण शक्ति कमज़ोर है। क्या हर दिन मेरे घर आकर याद दिला सकते हो?''

वे रामेश का मखौल उड़ाते रहे, पर वह नाराज़ नहीं हुआ। थोड़ी देर बाद एक आदमी ने धनराज को रामेश के पास लाकर कहा, ‘‘ये महाशय ही आपका मज़ाक उड़ाने के लिए आप के पास आदमियों को भेज रहे हैं।''

रामेश ने धनराज को ग़ौर से देखा। धनराज की समझ में नहीं आया कि क्या जवाब दे। पर अपने को संभालते हुए उसने कहा, ‘‘हम जो भी करते हैं, उससे होनेवाले लाभ और हानि एक समान होने चाहिये। अपनी ही बात पर डटे रहोगे तो तुम्हें कोई लाभ नहीं होगा। इससे तुम हँसी के पात्र बन जाओगे। तुम यह जानो, इसी के लिए मैंने यह नाटक किया।''

‘‘तुलसी की चिकित्सा से एक को भी लाभ होगा तो पर्याप्त है। इस पर मेरा कोई मखौल उड़ाये भी तो मुझे कोई हानि नहीं पहुँचेगी।'' रामेश ने हँसते हुए कहा।

तब धनराज ने हाथ जोड़कर कहा, ‘‘उस आदमी का धन मुझे नहीं चाहिये, जो आपका मखौल उड़ाता है। उससे मेरा लाभ नहीं होगा। मुझे आप माफ कर दीजिए।''

रामेश ने उसे बीस अशर्फियाँ देते हुए कहा, ‘‘तुम व्यापार शुरू कर दो। जिस काम को अच्छा समझते हो, उसके बारे में अधिकाधिक लोगों से कहते रहना।''

फिर एक बार कामेश, रामेश के हाथों हार गया, उसका चेहरा फीका पड़ गया।