30 मार्च 2010

शाप बन गये वरदान


एक गॉंव में रामनारायण नामक एक गरीब किसान था। वह दूसरों के खेत इकरारनामे पर लेकर खेती करता और उसीसे अपने परिवार का भरणपोषण किया करता था। उसके मन में दो अतृप्त कामनाएँ थीं-एक देशाटन करने की और दूसरी बढ़िया भोजन करने की। लेकिन उसके जैसे गरीब किसान के लिए ये कामनाएँ महँगी पड़ती थीं।

एक बार उसने सोचा कि कम से कम राजधानी में मनाये जानेवाले वसंतोत्सव को तो देख ले । इस विचार के आते ही अपने मित्र केशव के साथ राजधानी की ओर चल पड़ा। दोनों ने दिन भर यात्रा की, अंधेरा होते-होते वे एक जंगल में फँस गये। उस रात को आराम करने के लिए उन्हें एक जगह एक मंदिर दिखाई पड़ा। राम नारायण ने सोचा कि इस भयानक जंगल में मन्दिर से अधिक सुरक्षित स्थान और क्या हो सकता है! इसलिए उसने उत्साह में आकर अपने दोस्त से बताया कि आज की रात इस मंदिर में काटी-जाये! इस मन्दिर के देवता हमारी रक्षा करेंगे।

पर केशव ने इनकार करते हुए कहा, ‘‘यह तो चण्डमुखी नामक देवी का मंदिर है। यह देवी तो क्रोधी स्वभाव की है। वह दिन भर संचार करके रात को मंदिर में लौटती है। उस व़क्त अगर कोई उसे मंदिर में दिखाई दे तो उसे शाप दे देती है।’’

‘‘देवी अगर मुझ पर नाराज़ हो जाती है तो होने दो, मगर मैं एक क़दम भी यहॉं से आगे बढ़ा नहीं सकता।’’ ये शब्द कहते रामनारायण मंदिर के भीतर चला गया। केशव आगे बढ़ गया।

रामनारायण मंदिर में जाकर लेट गया। दूसरे ही क्षण उसकी आँख लग गईं और वह सो गया। आधी रात के व़क्त उसे लगा कि कोई उस पर चाबुक मार रहा है । वह चौंककर उठ बैठा। उसने देखा, सामने कोई देवी आँखें लाल पीली करते चाबुक लेकर खड़ी है। देवी ने उससे पूछा, ‘‘अरे तुम कौन हो? मेरी अनुमति के बिना मेरे मंदिर में लेटने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई?’’

रामनारायण ने देवी को प्रणाम करके निवेदन किया, ‘‘माई! मैं एक ग़रीब किसान हूँ? राजधानी में जाते हुए थक गया। अंधेरा फैल गया था । रात में जंगल में भटक जाने के डर से आगे जाने का साहस नहीं हुआ। इस कारण मैं यहॉं पर आराम कर रहा था। सवेरा होते ही मैं अपने रास्ते चला जाऊँगा।’’

‘‘तुम्हें क्षमा करने की बात लोगों पर प्रकट हो जाएगी तो सब लोग इस मंदिर को सराय बना डालेंगे। मैं तुम्हें क्षमा नहीं कर सकती। तुम्हें शाप देना ही होगा! तुम अपने को किसान बताते हो, इसलिए एक वर्ष तक तुम्हारे हाथ का जल जिस किसी भी पौधे को छुएगा, वह पौधा मर जाएगा।’’ ये शब्द कहकर देवी गायब हो गई।

रामनारायण यह सोचते राजधानी की ओर चल पड़ा कि वह साल भर खेती किये बिना कैसे जीयेगा?

उस वर्ष वसंतोत्सव ठाट से मनाये गये। देश के कोने-कोने से आये हुए किसानों ने राजा को अपने कष्ट कह सुनाये। सबके सामने यही जटिल समस्या थी कि एक विचित्र प्रकार की घास उगकर फ़सलों को बरबाद कर रही है। जड़ से निकाल देने पर भी वह बार-बार उग आती है। उसका नाश करना मुमकिन न था।

यह बात सुनकर रामनारायण ने राजा को प्रणाम किया और कहा, ‘‘महाराज! मुझे मौक़ा दिया जाये तो मैं साल भर में इस अनोखी घास के पौधों को निर्मूल नष्ट कर सकता हूँ।’’

राजा ने रामनारायण के वचनों की परीक्षा ली। इसके साबित होने पर राजा ने उसके लिए आवश्यक लोगों की मदद के साथ सारा प्रबंध किया। रामनारायण ने उस दल को साथ लेकर सभी गॉंवों का भ्रमण किया और फ़सल के बोने के पूर्व अपने हाथ से सभी खेतों को पानी दिया। इस पर पहले से ही खेत में जो भी पौधे थे, वे सब पूर्ण रूप से नष्ट हो गये।

इस प्रकार रामनारायण की दोनों कामनाओं की पूर्ति हुई। उसने एक वर्ष के अन्दर सारे देश का भ्रमण किया और सब जगह बढ़िया सत्कार के साथ-साथ स्वादिष्ट भोजन पाया। राजा ने उसे सौ एकड़ ज़मीन इनाम में दे दी।


दूसरे साल भी रामनारायण वसंतोत्सव में भाग लेने राजधानी में जाते हुए चण्डमुखी मंदिर के पास पहुँचा तो अंधेरा हो गया। इसलिए उसने उस मंदिर में ही विश्राम किया। आधी रात के व़क्त देवी पुनः प्रत्यक्ष हो गई।

रामनारायण ने देवी को प्रणाम करके कहा, ‘‘देवीजी! आप के शाप के कारण मेरी सारी इच्छाएँ पूरी हो गईं और साथ ही देश का उपकार भी हो गया।’’

चण्डमुखी क्रोधित हो बोली, ‘‘अरे मूर्ख! तुम मुझे फिर से उकसाने आये हो? इस साल तुम जहॉं -जहॉं पैदल चलोगे, वहॉं-वहॉं तुम्हारे क़द के बराबर गड्ढा बन जाएगा।’’ यों शाप दे देवी गायब हो गई।

रामनारायण ने भॉंप लिया कि वह अब वहॉं से हिल नहीं सकता है। सवेरा होने तक वह उसी मंदिर में बैठा रहाऔर विचार करता रहा कि क्या इस शाप से राज्य की प्रजा के लिए कोई लाभ उठाया जा सकता है । सवेरा होते ही उस रास्ते से चलनेवाले एक यात्री के द्वारा राजा के पास ख़बर भेज दी, और एक पालकी मँगवाकर उसमें बैठ गया। राजा के दर्शन करके उसने अपने शाप का वृत्तांत सुनाया। उस शाप के द्वारा फ़ायदा उठाने की एक योजना राजा को बताई।

वह योजना यह थी कि राज्य भर में जहॉं-जहॉं नहरें खुदवानी थीं, उनपर रंगोली के साथ निशान लगाये जायें । रामनारायण उनसे होकर पैदल चलता जाएगा। उसके पीछे अपने आप उसकी ऊँचाई तक की गहरी नहरें बन जाएँगी।

यह योजना अमल की गई। रामनारायण को नहरों के वास्ते जब पैदल चलने की ज़रूरत नहीं पड़ती थी, तब वह पालकी में यात्रा करता था। वह जहॉं भी टिक जाता, सोने के थालों में राजोचित भोजन उसे मिल जाता था।

इस प्रकार देवी ने रामनारायण को जो दो शाप दिये थे, उनके द्वारा देश का और ज़्यादा उपकार हुआ। बिना श्रम के थोड़े से ख़र्च में देश भर में नहरें बन गईं। नई ज़मीन खेती के लायक़ उपजाऊ बन गई। रामनारायण को देशाटन के साथ स्वादिष्ठ भोजन भी प्राप्त हुआ।

तीसरे वर्ष भी रामनारायण वसंतोत्सव में भाग लेने जाते हुए शाम तक चण्डमुखी मंदिर पहुँचा। उसने फिर उसी मन्दिर में विश्राम किया। आधी रात के व़क्त उसे देवी ने दर्शन दिये।

रामनारायण ने हाथ जोड़कर कहा, ‘‘देवीजी, आप के शाप अद्भुत हैं। आप के शाप के कारण ही मुझे एक बार और देशाटन के साथ राजोचित भोजन प्राप्त हुआ, साथ ही जनता का उपकार करने का पुण्य-लाभ भी हुआ। आप शाप देना बंद कर दें तो प्रतिदिन आपकी पूजा-अर्चना का प्रबंध करूँगा।’’

इस पर चण्डमुखी देवी ने क्रोध में आकर पुनः शाप दिया, ‘‘अरे मूर्ख! तुमने अब तक दो बार मेरे आदेश का तिरस्कार करके मेरे मंदिर में प्रवेश किया। मेरे शापों की अवहेलना की। मैं देखूँगी कि इस बार तुम्हारा देशाटन और परोपकार कैसे फलीभूत होते हैं? तुम्हारी नज़र में जो भी चीज़ आएगी, वह भस्म हो जाएगी। तुम ज़िंदगी भर आँखों पर पट्टी बॉंधे अंधे की तरह अपने दिन काटोगे।’’

इस पर रामनारायण ने झट से अपनी पगड़ी से आँखों पर पट्टी बॉंध ली। रात भर वह सोचता रहा। सवेरा होते ही टटोलते हुए मंदिर के बाहर आया और पट्टी खोलकर मंदिर पर अपनी दृष्टि डाली। फिर क्या था, दूसरे ही क्षण मंदिर जलकर भस्म हो गया। साथ ही रामनारायण का शाप भी जाता रहा।

इसके बाद रामनारायण ने वहॉं पर एक सराय बनवाई। वह यात्रियों के काम आने लगी।