17 मार्च 2010

आग लगाकर तमाशा देखने वाले खुद बन जाते हैं तमाशा

अशोक वाटिका में उत्पात मचा रहे हनुमान को नागपाश में बाँधकर मेघनाद रावण के भव्य दरबार में ले आया। वहाँ बड़े-बड़े योद्धाओं से घिरा दशानन एक ऊँचे स्वर्ण सिंहासन पर बैठा था।

हनुमान को निर्भय देख वह गरजती आवाज में बोला- अरे वानर, तू कौन है? तूने मेरे बारे में नहीं सुना, जो ऐसे खड़ा है।

हनुमान- मैं संपूर्ण ब्रह्मांड के स्वामी श्रीराम का दूत हूँ, जिनकी पत्नी का तूने हरण किया है। उन्हें वापस करने में ही तेरा और तेरे परिवार का कल्याण है। रावण- लगता है तेरी मृत्यु निकट है। हनुमान- मेरी नहीं तेरी मृत्यु मुझे दिखाई देती है।

यह सुनते ही रावण आग बबूला हो उठा। उसने अपने सैनिकों को हनुमान को मारने का आदेश दिया। इस पर विभीषण बोले कि दूत का वध नीति सम्मत नहीं। तब रावण सैनिकों से बोला- बंदर को अपनी पूँछ पर बहुत घमंड होता है। तुम इसकी पूँछ पर घी-तेल में भीगे कपड़े लपेटकर लंका की गलियों में घुमाओ और फिर आग लगा दो।

जब हनुमान को लंका की गलियों में घुमाया जा रहा था तो उनकी दशा देखकर लंकावासी बड़े आनंदित हो रहे थे। अंततः उनकी पूँछ में आग लगा दी गई। वे तुरंत बंधनमुक्त होकर एक ऊँचे महल की अटारी पर जा बैठे। इसके बाद एक महल से दूसरे महल की छत पर कूद-कूदकर उनमें आग लगाने लगे।

देखते ही देखते पूरी लंका आग की लपटों में घिर गई। चारों तरफ हाहाकार मच गया। अपने महल से यह दृश्य देख रहा बेबस रावण जल-भुनकर कोयला हो रहा था और अपनी सोने की लंका को राख होते देख रहा था। अपना काम पूरा करने के बाद हनुमान ने समुद्र में छलाँग लगाकर पूँछ की आग बुझा ली और सीताजी से मिलकर लौट गए।

दोस्तो, आग लगाकर तमाशा देखने वाले कई बार अपनी ही लगाई आग की चपेट में आकर रावण की तरह तमाशा बन जाते हैं। इसलिए कभी भी कोई कदम उठाने से पहले यह सोच लें कि वह आप पर ही भारी न पड़ जाए।

जब आप किसी व्यक्ति की किसी प्रिय चीज, कमजोरी या प्रतिष्ठा का खाका या उपहास उड़ाने की कोशिश करते हैं, तो वह उसे बचाने के लिए यह सोचकर अपना सब कुछ दाँव पर लगा देता है कि मेरा तो जो होगा सो होगा, लेकिन मैं तुझे भी नहीं छोड़ूँगा। इस तरह वह पलटवार करके आपकी छवि को खाक में मिला देता है और आपके अभिमान, अहंकार को चकनाचूर कर देता है।

दूसरी ओर, एक अँगरेजी कहावत के अनुसार बंदर जितना ऊँचा चढ़ता है, उतना ही ज्यादा अपनी पूँछ दिखाता है। दुम उठाकर, दिखाकर वह बताता है कि उसमें कितना दम है। बंदर यदि पूँछ दिखाता है तो आदमी अपनी मूँछ। मूँछ पर ताव देकर (भले ही हो या न हो) वह अपनी ताकत का प्रदर्शन करता है।

यह तो ठीक है, लेकिन जब यही ताकत घमंड, अहंकार, दर्प में बदल जाती है, तो उसे नुकसान उठाना पड़ता है। इसके चलते व्यक्ति यह नहीं सोचता कि वह क्या गलती कर रहा है, करने जा रहा है। अभिमानी रावण भी अपनी मूँछ पर हाथ फेरते हुए हनुमान की पूँछ में आग लगाने का आदेश देते समय यह नहीं सोच पाया कि वह कितनी भीषणतम भूल करने जा रहा है और उसकी मूँछ, उसकी शान सोने की लंका राख हो गई।

कहते हैं कि अभिमान के फूल शैतान के बगीचे में उगते हैं। शायद इसीलिए हनुमान ने भी प्रतीक रूप में रावण की अशोक वाटिका को उजाड़कर उसके अभिमान को तोड़ा। इसलिए यदि आपको अपना मान-सम्मान बनाए रखना है, तो दूसरे के मान-सम्मान का ध्यान रखें।

और अंत में, आज दशहरा है, साथ ही "फायर प्रिवेंशन डे" भी है। कहते हैं कि कभी ऐसी आग मत लगाओ, जिसे बुझा न सको। जब आग से खेलोगो तो हाथ जलने का अंदेशा तो बना ही रहता है और जलते भी हैं। फिर आप कितने ही बड़े वाले क्यों न हों। पंचतत्व के आगे आप शक्तिहीन हैं।

कई बार ताकत के घमंड में चूर व्यक्ति का सामना बजरंग बली जैसे व्यक्ति से हो जाता है, जो उसे ऐसे रंग दिखाता है कि उसका बाजा ही बज जाता है। इससे बचना हो तो अपने दुर्गुणों का दहन करें, अपनी आसुरी प्रवृत्तियों को जलाकर राख कर दें। रावण दहन के पीछे यही भावना होती है। अरे भई, हमारी सफलता से जल-भुनकर तुम कोयला क्यों हो जाते हो। जय श्रीराम।

(साथियो, गुरुमंत्र की दूसरी पारी शुरू हुए एक वर्ष हो गया है। इस बीच इसे आपका भरपूर स्नेह मिला। इसके लिए हम आपके आभारी हैं। फिलहाल आपके इस पसंदीदा स्तंभ को विराम दिया जा रहा है। हमारे इस निर्णय पर आप अपनी प्रतिक्रिया दे सकते हैं।)