30 मार्च 2010

मोटापे की दवा

महाराजा राजाधिराजा की जब शासन-सम्बन्धी कोई समस्या नहीं रही, तब उसने स्वादिष्ठ भोजन और सबसे बढ़िया शराब का आनन्द लेने का विचार किया। फलस्वरूप वह मोटा हो गया। वह इतना मोटा हो गया कि जब भी वह प्रजा के बीच जाता, लोग हँसने लग जाते। कभी-कभी वे अपने मुँह पीछे कर लेते थे जिससे महाराजा उन्हें हँसते हुए न देख पाये।

पहले, जब वह राजकुमार था, वह पतला और सुन्दर था। लोग उसे घोड़े पर सवार होते देखते और उसके ठवन की तारीफ करते। पिता के मरने पर वह राजगद्दी का उत्तराधिकारी बना। उसे शीघ्र ही मालूम हुआ कि उसके मंत्रियों में बड़ी स्पर्धा है। उनमें से हरेक प्रधान मंत्री बनना चाहता था। जब युवा महाराजा ने कोई निर्णय नहीं लिया तब उन्होंने अपने कर्त्तव्य की उपेक्षा की और राज्य का प्रशासन अस्त-व्यस्त हो गया। एक-दो विश्वासपात्र मंत्रियों की मदद से शासन को उसने पुनः व्यवस्थित किया। किसी को प्रधान मंत्री बनाने के स्थान पर, कुछ मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया और कुछ को रख कर उन्हें अधिक अधिकार दे दिया। अब राज्य में शान्ति स्थापित हो गई। अब ऐसी कोई समस्या नहीं रही, जिस पर उसे तुरन्त ध्यान देना पड़े। तभी वह खाने-पीने का मज़ा लेने लगा।

राजाधिराजा ने देखा कि जब भी वह अपने मंत्रियों को विचार-विमर्श के लिए बुलाता, वे मुश्किल से अपनी हँसी दबा पाते थे। उसने एक मंत्री को विश्वास में लेकर पूछा कि लोग क्या देख कर हँस पड़ते हैं। ‘‘यदि महाराजा क्रोध न करें तो मैं कारण बता सकता हूँ।’’ मंत्री ने कहा। राजा का आश्वासन पाकर मंत्री ने अपनी आवाज़ धीमी करते हुए कहा, ‘‘क्या आपने स्वयं इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि आप कितने मोटे हो गये हैं?’’

महाराजा ने अपने शरीर को ध्यान से देख कर कहा, ‘‘ठीक है, मैं मानता हूँ कि मैं मोटा हूँ। लेकिन मैं कर ही क्या सकता हूँ?’’ मंत्री ने सुझाव दिया, ‘‘महाराज, क्या आप स्वादिष्ठ भोजन खाना बन्द कर सकते हैं?’’ ‘‘असम्भव!’’ एक शब्द में महाराजा ने मंत्री के सुझाव को अमान्य कर दिया। मंत्री चुप रह गया। अचानक महाराजा खुशी से उछल पड़ा, ‘‘मैं जानता हूँ, मुझे क्या करना चाहिये। मैं आज्ञा दूँगा कि मेरी प्रजा का हर आदमी स्वादिष्ठ और पौष्टिक भोजन खाकर मेरी तरह मोटा बन जाये। इसकी घोषणा कर दो और ध्यान रखो कि दुकानों में सब सामान उपलब्ध हों और सस्ते दामों पर मिलें। सब लोगों को जी भर खाने-पीने की छूट होनी चाहिये। घोषणा कर दो कि अगले छः महीनों में जो भी दुबला-पतला पाया जायेगा, उसे कैद में रखा जायेगा और बलपूर्वक खिलाया जायेगा।’’

राज्य भर में इस आदेश का एलान कर दिया गया। कोई कैदखाने में नहीं जाना चाहता था, इसलिए सबने खूब खाया-पीया। कुछ ही दिनों में हर घर के बाहर बैठा हुआ आदमी मोटा दिखाई पड़ा। जब भी महाराजा राजाधिराजा की सवारी गलियों से गुज़रती तो मार्ग के दोनों ओर मोटे आदमी और औरतें दिखाई पड़तीं। वह बहुत प्रसन्न होता था।

लेकिन अधिक दिनों तक नहीं। क्योंकि उसने देखा कि उसकी एक मात्र बेटी राजकुमारी मालविका भी जो कभी बहुत सुन्दर दिखाई देती थी, मोटी हो गई है। यह देख कर वह दुखी हो गया। उसने अपने मंत्रियों से सलाह ली जो सब के सब एक से एक बढ़कर मोटे थे। उन सब ने एक मत से सलाह दी कि राजकुमारी को इस आदेश से मुक्त रखा जाये और उसे दुबली होने के लिए स्वीकृति दी जाये। लेकिन यह उसके लिए कठिन समस्या बन गई, क्योंकि अब उसे स्वादिष्ठ भोजन की आदत पड़ चुकी थी। वह खाने पर नियन्त्रण नहीं रख सकती थी, इसलिए हमेशा मोटी बनी रही।

महाराजा ने सोचा कि दवा से इसकी चिकित्सा की जा सकती है, इसलिए दूसरी घोषणा करवाईः जो भी राजकुमारी का मोटापा ठीक कर देगा, उसे ढेर सारे इनाम दिये जायेंगे । और यदि वैद्य छरहरा और सुन्दर गठन का होगा तो राजकुमारी से उसका विवाह कर दिया जायेगा और वह राज्य का वारिस भी बनेगा। फिर भी, यदि राजकुमारी की चिकित्सा करने के लिए आगे आनेवाला उसे ठीक नहीं कर सका तो उसे प्राण गँवाने होंगे।

अब, कुछ वैद्य तो डर से छिप गये ताके उन्हें महाराजा के पास न जाना पड़े। कई दिन, सप्ताह और महीने गुज़र गये। महाराजा, राजकुमारी, मंत्री और राजा की प्रजा खूब खाते और मोटे होते रहे।

एक सुबह महाराजा के सिपाहियों ने राजधानी के निकट जंगल में पौधों के बीच कुछ तलाश करते हुए एक युवक को देखा। पूछताछ करने पर उसने कहा कि वह पड़ोसी राज्य का वैद्य है और एक विशेष प्रकार की जड़ी की तलाश कर रहा है। सिपाही उसे मना कर महल में ले गये।

महाराजा युवा वैद्य को सामने देख कर बहुत प्रसन्न हुआ। वह सुन्दर शारीरिक बनावट का एक छरहरा युवक था। उसने जंगल में आने का कारण बताया, लेकिन राजकुमारी के देखने तक से इनकार कर दिया। ‘‘इस राज्य में हरेक व्यक्ति मोटा है। केवल राजकुमारी को मैं कैसे चंगा कर सकता हूँ? यह रोग इस राज्य की कोई विचित्रता के कारण ही हो रहा होगा। कृपया मुझे जंगल में वापस जाने दीजिये’’, उसने विनती की।

‘‘मैं तुम्हारा कोई बहाना नहीं सुनूँगा। मेरे साथ आओ। तुम जानते हो, तुम्हें क्या पुरस्कार मिलेगा? तुम्हें दुल्हन के रूप में राजकुमारी मिलेगी और तुम मेरे राज्य के वारिस बनोगे।’’ महाराज यह कहते हुए उसे हाथ पकड़ कर राजकुमारी के कमरे में ले गया। ‘‘उसे देख कर बताओ कि क्या तुम उसका मोटापा ठीक कर सकते हो? उसे ठीक करने के लिए ज़रूरत की हर चीज़ पूरी की जायेगी।’’

युवा वैद्य ने राजकुमारी की आँखों में घूर कर देखा और उसके चेहरे को छू कर यह पता लगाया कि उसे क्या बुखार है। फिर उसने उसका हाथ लेकर उसकी तलहथी को धीमे से सहलाया। अब उसने अपना सिर उठा कर राजा को ध्यान से देखा और कहा, ‘‘मुझे यह कहते खेद है महाराज कि आप की बेटी केवल एक सौ तीन दिनों तक जीवित रहेगी। इसलिए उसकी बीमारी का इलाज करना बेकार है।’’

महाराजा, राजकुमारी तथा वहाँ उपस्थित सब को आघात-सा लगा। राजा ने सन्तुलित होने पर कहा,‘‘मैं तुम्हें इस भविष्यवाणी के लिए सजा नहीं दूँगा। लेकिन यदि मेरी बेटी एक सौ तीन दिनों से अधिक जीवित रही तो तुम्हें फाँसी दी जायेगी। तब तक तुम कैदखाने में रहोगे!’’

राजकुमारी मालविका कुछ दिनों तक अपनी सम्भावित मृत्यु के विचार से शोक में डूबी रही। वह अपनी सखियों से सदा के लिए बिछड़ना नहीं चाहती थी। खाना उसे बेस्वाद लगने लगा और धीरे-धीरे उसने खाना बिलकुल छोड़ दिया। वह सिर्फ पानी पीती थी। महाराजा यह सोचकर चिन्तित रहने लगा कि बेटी के बिना जीना उसे कैसा लगेगा। इस चिन्ता में उसने भी खाना छोड़ दिया, खास कर स्वादिष्ट भोजन।

एक सौ दिन जल्दी बीत गये। महाराजा मालविका से मिलने में कतराता रहा। वह उसका उदास चेहरा देखना नहीं चाहता था। लेकिन साथ ही, उसकी सखियों से मिल कर उसके स्वास्थ्य के बारे में पूछताछ करता रहता था। एक सौ एकवाँ दिन उसकी एक सहेली ने कहा, ‘‘महाराज, राजकुमारी अब मुस्कुराने लगी है। वह कहती है कि वह दीर्घायु होगी।’’ महाराजा ने उसे अपना मोती का हार निकाल कर इनाम में दे दिया।

दूसरे दिन एक अन्य सहेली की बारी थी। ‘‘महाराज, आज राजकुमारी ने पीने के लिए एक कप अनार का रस माँगा!’’ उसे भी इनाम दिया गया। निर्णयात्मक एक सौ तीसरे दिन एक अन्य सहेली और भी अच्छी खबर लेकर आई। ‘‘महाराज, आज राजकुमारी ने बहुत दिनों के बाद एक प्लेट खाना खाया!’’ महाराजा ने उसे इनाम दिया और कहा, ‘‘मालविका को बता दो कि मैं कल उसे देखने आऊँगा!’’ सहेली के जाने के बाद महाराजा उदास हो सोचने लगा, ‘‘लेकिन क्या मेरी बेटी सचमुच कल की सुबह देख पायेगी?’’

अगला दिन आ गया। महाराजा जल्दी उठ कर राजकुमारी के कमरे में जाने के लिए तैयार हो गया, लेकिन तभी मालविका अपनी सहेलियों के साथ महाराजा के पास पहुँच गई। ‘‘मालविका, तुम बहुत सुन्दर लग रही हो।’’

‘‘पिता, उस वैद्य को बुला दीजिये। मैं उससे मिलना चाहती हूँ।’’ राजकुमारी ने कहा।

‘‘मालविका, मैं उसे ज़रूर बुलाऊँगा। लेकिन गलत भविष्यवाणी करने के कारण उसे फाँसी के लिए भी भेजूँगा।’’

‘‘लेकिन मैं तो जीवित हूँ। तो उसे क्यों मारते हैं?’’ राजकुमारी ने प्रार्थना की।

शीघ्र ही युवा वैद्य को महाराजा के सामने लाया गया। ‘‘तुम्हें अपनी भविष्यवाणी के विषय में क्या कहना है?’’

फाँसी के भय से थर-थर काँपने की बजाय वैद्य ठठाकर हँस पड़ा। ‘‘महाराज, क्या राजकुमारी अब छरहरी और सुन्दर नहीं लग रही है? उसका मोटापा कहाँ चला गया? और अपने ऊपर एक नज़र डालिये। क्या आप अब कह सकते हैं कि आप मोटे हैं। क्या आप हल्का और प्रफुल्ल महसूस नहीं कर रहे हैं?’’

महाराजा ने अपने आप को ध्यान से देखा और कहा, ‘‘हाँ, तुम ठीक कहते हो। लेकिन मैंने इसे कैसे किया?’’

‘‘मैंने कोई भविष्यवाणी नहीं की महाराज’’, युवक ने कहा, ‘‘मैं केवल ऐसी हालत पैदा करना चाहता था जिसमें आप खाना छोड़ दें। और वह भी स्वादिष्ठ भोजन। भोजन ही समस्या की जड़ था। कृपया अपना आदेश वापस ले लें और अपनी प्रजा को आजादी दें कि वे अपनी पसन्द से जो भी खाना चाहें खा सकते हैं।’’

‘‘मैं उसे अवश्य करूँगा, लेकिन मुझे तुम्हें दिये वचन का पालन भी ज़रूर करना होगा।’’ महाराजा ने मुस्कुराते हुए कहा। ‘‘मैं शीघ्र ही अपनी बेटी के साथ तुम्हारे विवाह की व्यवस्था करूँगा।’’

विवाह के तुरन्त पश्चात राजाधिराजा ने अपने पद-त्याग की घोषणा कर दी। युवा राजकुमार सिंहासन पर बैठा और उस दिन को याद करने लगा जब वह एक जड़ी-बूटी की तलाश करते हुए जंगल में भटक रहा था।