31 मार्च 2010

अफवाह



गणपतिसिंह की यह आदत थी कि कोई खास बात हो तो सबसे पहले वह उसका पता लगा ले और सबको सूचना दे! इस जल्दबाजी में वह कई बार ऐसी गलत सलत ख़बरों का प्रचार कर बैठता था, जिससे कोई भी उसकी बातों पर यक़ीन नहीं करता थाऔर दुखी हो जाता था। अपनी बातों पर किसी को विश्वास न करते देख गणपति बड़ी पीड़ा का अनुभव करता था। मगर उसके प्रति लोगों का जो विचार था, उसे बदलने के लिए गणपति ने अनेक प्रयत्न किये, पर वह सफल न हुआ।

एक दिन गाँव में कोई गड़बड़ी हो गई। ऐसी गड़बड़ियों को सुलझाने में पड़ोसी गाँव का पटवारी बड़ा मशहूर था। गाँववालों ने जब पटवारी के पास इस समस्या को सुझाने की ख़बर भेजी तो उसने दूसरे दिन आने की सूचना दी।

जिन दो पक्षों के बीच झगड़ा हुआ था, वे दोनों दूसरे दिन सवेरे पटवारी के इंतज़ार में चौपाल में इकट्ठे हो गये। उन लोगों ने बड़ी देर तक पटवारी का इंतज़ार किया, लेकिन किसी कारण से पटवारी अपने वादे के मुताबिक़ पहुँच नहीं पाया। आखिर झगड़ा करनेवाले दोनों दल के लोग अपने अपने घर चले गये।

पड़ोसी गाँव का पटवारी कभी अपने वचन से मुकरता न था। उसके न आने का कोई बड़ा कारण हो सकता है। गणपति ने सोचा कि सब से पहले वही उस कारण का पता लगा लेगा और गाँववालों को सूचना देगा। यों विचार करके कड़ी धूप में खाने की चिंता तक किये बिना गणपति पटवारी के गाँव की ओर चल पड़ा।

गाँव के बाहर गणपति के सामने से एक लाश आ गुजरी। उसने एक व्यक्ति से पूछा, ‘‘भाई, यह लाश किसकी है? साधारण आदमी की प्रतीत नहीं होती।''


‘‘यह तो इस गाँव के एक बड़े आदमी की लाश है।'' उस व्यक्ति ने कहा।

‘‘इस गाँव का सबसे बड़ा आदमी कौन है?'' गणपति ने फिर पूछा।

‘‘इस गाँव में हमारे पटवारी से बढ़कर कौन बड़ा आदमी है।'' पड़ोसी गाँव के व्यक्ति ने जवाब दिया। गणपति ने सोचा, बेचारे इस गाँव का पटवारी मर गया है। इसीलिए आज सुबह पंचायत करने उसके गाँव में नहीं आया।

यह अनोखी ख़बर अपने गाँववालों को सुनाने के लिए गणपति दौड़े-दौड़े अपने गाँव को लौट आया। सबको बताने लगा, ‘‘बेचारे आज सवेरे पड़ोसी गाँव के पटवारी का देहांत हो गया है। इसीलिए वे आज हमारे गाँव में नहीं आये। मैंने उनकी लाश को खुद देखा है।''

पर एक भी व्यक्ति ने उसकी इस अनोख़ी खबर पर यक़ीन नहीं किया। इस पर गणपति को बड़ा दुख हुआ। वह सोचने लगा, ‘सच्ची बात बताने पर भी लोग उसकी बात पर विश्वास क्यों नहीं करते? सब के मन में यह विश्वास कैसे पैदा करे कि वह सच्ची बात ही बताता है।'

यों विचार कर उसने लोगों को समझाया, ‘‘भाइयो, पटवारी की मृत्यु पर हमारे गाँव के कुछ बुजुर्ग लोगों को जाकर शोक-संताप प्रकट करना जरूरी है न? इसलिए आप लोग अभी चलिए, सच्ची बात का पता आप लोगों को लगेगा।''

तिस पर भी किसी ने उसकी बात पर ध्यान न दिया। कुछ लोगों ने गणपति से पूछा, ‘‘तुम बताते हो कि तुमने पटवारी की लाश देखी है। क्या तुमने कभी पटवारी को जिंदा देखा भी है?'' ‘‘ऐसे बड़े आदमी के मरने पर उसकी लाश को पहचानने की ज़रूरत है?'' गणपति ने पूछा।


फिर भी कोई फ़ायदा न रहा। तब उसने सोचा, उसके गाँववाले पड़ोसी गाँव के मृत पटवारी के प्रति अन्याय कर रहे हैं। इसलिए उसी गाँव के किसी आदमी को बुलवाकर उसके मुँह से यह खबर सुनवा दे तब उसके प्रति गाँववालों की गलत फहमी दूर हो जाएगी।

यों विचार कर गणपति फिर पड़ोसी गाँव के लिए चल पड़ा। रास्ते में एक बुजुर्ग से उसकी मुलाक़ात हो गई। गणपति ने पूछा, ‘‘ महाशय, आप तो यक़ीन करेंगे न कि आज सुबह आप के गाँव के पटवारी का देहांत हो गया है?''

‘‘मैं यक़ीन नहीं करूँगा।'' उसने कहा।

‘‘क्यों यक़ीन नहीं करते?'' गणपति ने आश्चर्य में आकर पूछा।

‘‘क्योंकि मैं ही उस गाँव का पटवारी हूँ।'' उस व्यक्ति ने कहा।

गणपति यह जवाब सुनकर अवाक् रह गया। फिर उस दिन सुबह उसके तथा उस गाँव के एक और व्यक्ति के बीच जो वार्तालाप हुआ था उसे सुनाया। इस पर पड़ोसी गाँव के पटवारी ने समझाया, ‘‘अचानक आज मेरे गाँव के एक बहुत धनी आदमी का देहांत हो गया है। इस कारण मैं तुम्हारे गाँव नहीं जा सका। मेरे गाँव भी में तुम जैसा एक आदमी है। वह झूठ बोले बिना विश्वास करने योग्य झूठ बोलता है। उसने कहा कि मृत व्यक्ति बड़ा आदमी है। और गाँव में बड़ा आदमी मुझे बताया। इन दोनों अर्थों को जोड़कर तुमने सोचा कि मैं ही मर गया हूँ। तुम उसके स्वभाव से परिचित नहीं हो, इसीलिए तुमने उसकी बातों पर यक़ीन किया। पर मेरे गाँव में उसकी बातों पर कोई यक़ीन नहीं करता।''

इस पर गणपति का ज्ञानोदय हो गया। झूठ ध्वनित करनेवाला सत्य बतानेवाले पर कोई यक़ीन नहीं करता, तो सत्य जाने बिना खबरें फैलानेवाले पर कोई विश्वास नहीं करे तो इसमें आश्चर्य क्या है?