31 मार्च 2010

तीन सपने


गोकर्णिक के राजा मणिकर्ण बड़े ही धार्मिक और धर्मात्मा थे। योगपुंगव व साधु संन्यासियों के प्रति वे अमित आदर भाव रखते थे। वे अ़क्सर महनीय योगियों के दर्शन कर उनके आशीर्वाद पाया करते थे। राजधानी में जो भी साधु संन्यासी आते थे, उनका सादर स्वागत करते थे और श्रद्धापूर्वक उनका आतिथ्य करते थे।

एक बार एक जटाधारी नामक संन्यासी राजभवन पधारे। राजा ने यथावत् उनका स्वागत-सत्कार किया और साष्टांग प्रणाम किया। राजा के विनयपूर्ण व्यवहार से वे बहुत ही प्रस हुए और उन्हें कितने ही आध्यात्मिक विषयों का बोध किया। राजभवन से निकलने के पहले उन्होंने राजा से कहा, ‘‘राजन्, तुमसे एक मुख्य विषय बताना चाहता हूँ। तुम आज की रात से लेकर तीन रातों तक लगातार तीन बुरे सपने देखने जा रहे हो। सावधानी बरतना। नहीं तो आपत्ति में फंस जाओगे।'' फिर वे वहाँ से चले गये।

यह सुनते ही राजा बहुत घबरा गये। उन्होंने तुरंत मंत्रियों को बुलवाया और विषय बताया। तब विवेकवर्धन नामक मंत्री ने कहा, ‘‘जटाधारी ने आपसे यह बताया कि ये बुरे सपने आप रात ही के समय देखेंगे। इसलिए आप दिन में सो जाइये और रात को जागे रहिये। तब इन सपनों को देखने की कोई गुंजाइश नहींरहेगी । इस प्रकार बुरे सपनों के कारण आनेवाली आपत्तियों से आप बच सकते हैं।''

राजा को यह सलाह सही लगी। उनमें संगीत, शतरंज और आध्यात्मिकता के प्रति अधिकाधिक रुचि थी। शेष मंत्रियों ने भी राजा को सलाह दी कि रात को वे इनसे अपना समय बिताते रहें, जिससे नींद नहीं आयेगी।

राजा ने पहली रात शतरंज खेलते हुए बिताने का निर्णय किया। शतरंज में माहिर लोगों को बुलवाया। सवेरे तक वे शतरंज खेलते रहे। पर, सवेरा होते-होते महाराज को एक छोटी-सी झपकी आ गई ।

इस छोटी-सी झपकी के दौरान महाराज ने एक सपना देखा। वे एक जंगल में थे। एक सर्प महाराज को देखते ही फुफकारता हुआ उनकी ओर दौड़्रा । उनका पूरा शरीर पसीने से भीग गया। इतने में वे जाग उठे।

राजा ने अगले दिन निश्र्चय किया कि आज रात को संगीत सुनते हुए समय काटूँगा। मधुर संगीत सुनते-सुनते कुछ क्षणों के लिए उनकी आँखें बंद हो गयीं। उस दौरान सपने में उन्होंने देखा कि आकाश से धड़ाम् से एक बिजली उन्हीं पर गिरने के लिए बढ़ी आ रही है। उससे बचने के लिए वे इधर-उधर भाग रहे थे। फिर भी सपने में वह बिजली उन्हीं का पीछा कर रही थी। इतने में राजा जाग उठे।

तीसरी रात को जब वे धार्मिक और आध्यात्मिक विषयों पर चर्चा कर रहे थे, तब हल्की सी नींद आ गई। इस बार सपने में एक भयंकर सिंह उनपर टूट पड़ा। वे एक कुंड में कूद पड़े। कुंड का पानी रुधिर रंग का था। इतने में युवरानी मणिमेखला वहाँ दिखायी पड़ी और पिता को रुधिर कुंड से बाहर निकाला। इतने में राजा की आँखें खुल गयीं।

सवेरे ही, राजा ने मंत्रियों को बुलवाया और अपने सपनों के बारे में बताया। मंत्रियों ने तुरंत उन सपेरों को बुलवाया, जो साँप की काट को मंत्र शक्ति से दूर करते हैं। उन्होंने महाराज को सलाह दी कि वे शिकार करने जंगल में न जाएँ और राजभवन में ही रहें। अंतःपुर में जितने भी थे, सबको सावधान किया। फिर भी महाराज की घबराहट दूर नहीं हुई।

उस समय शिव नामक एक युवक ने महाराज के दर्शन किये और कहा, ‘‘राजन्, मैं बहुत ही अ़क्लमंद हूँ। किन्तु कोई भी मेरी अ़क्लमंदी को मानने के लिए तैयार नहीं है। कम से कम आप मेरी अ़क्लमंदी को जानिये, नहीं तो मैं हिमालय पर्वतों पर चला जाऊँगा।''

उसकी बातें सुनकर महाराज को लगा कि यह कोई पागल है, जो जी में आया, बक रहा है। फिर उन्हें लगा कि हो सकता है, यह सचमुच ही अक्लमंद हो, इसमें कोई अपूर्व शक्ति भरी पड़्री हो। यों सोचकर उन्होंने जटाधारी के बताये तीनों सपनों के बारे में उससे बताया।

पूरा विषय सुनने के बाद और थोड़ी देर सोचने के बाद शिव ने कहा, ‘‘महाराज, योगी, संन्यासी दैवज्ञ होते हैं। उनके मुँह से निकली बात कभी भी व्यर्थ नहीं होती। लेकिन उनकी बातों में रहस्य और गूढ़ार्थ भरा होता है। जो तीन सपने आपको परेशान कर रहे हैं, उनका मैं विश्लेषण करूँगा और उनका समाधान भी बता सकूँगा। पहले, दो सपनों का विश्लेषण करूँगा। उनमें आपकी दृष्टि के अनुसार वास्तविकता हो तो तीसरे सपने पर प्रकाश डालूँगा।''

‘‘हाँ, हाँ, ज़रूर बताना। देरी किस बात की?'' महाराज ने कहा।

‘‘महाराज, आपने प्रथम सपने में देखा, एक जंगल और जंगल में एक सर्प। सर्प प्रतिकार का प्रतीक है, संकेत है। इस सपने का अंतरार्थ यही है कि कोई आपसे प्रतिकार लेना चाहता है और वह मौक़े की ताक़ में है। अब रही बिजली की बात। बिजली हठात् गिरती है। मतलब यह हुआ कि कोई अप्रत्याशित घटना घटनेवाली है। बिजली आपका पीछा कर रही है तो इसका यह मतलब हुआ कि जो दुर्घटना घटनेवाली है, वह आपकी तरफ इंगित कर रही है, उसका निशाना आप हैं।''

शिव की अ़क्लमंदी पर राजा को विश्वास हो गया, क्योंकि उसके विश्लेषण बुद्धिजन्य और तर्कसंगत थे। राजा के आदेश पर शिव के रहने के लिए आवश्यक प्रबंध किया गया। शिव के विश्लेषण के अनुसार खूब सोचने के बाद राजा की दृष्टि एक विषय पर गयी। हाल ही में राज्य में लुटेरे ज्यादा हो गये थे, इसलिए राजा ने उनपर रोक लगाने के लिए आवश्यक प्रयत्न किये। उन्हें लगा कि लुटेरों का सरदार भैरव उन्हें मार डालना चाहता है।

अब राजा ने सब लुटेरों को पकड़वा लिया, जिनमें भैरव भी था। उससे पूछताछ करने पर मालूम हुआ कि भैरव ने विषैले सर्प को राजा के शयनागार में भेजने का षडयंत्र रचा था और उनका अंत कर देना चाहा था। भैरव ने यह अपराध स्वीकार भी किया।


यों यह साबित हो गया कि राजा के प्रथम सपने का विश्लेषण शिव ने जो किया, वह सौ फी सदी सही है। राजा बेहद खुश हुए। द्वितीय सपने से संबंधित जानकारी पाने के लिए उन्होंने गुप्तचरों को चारों दिशाओं में भेजा।

दो दिनों के बाद एक गुप्तचर ने आकर कहा, ‘‘सिंहपुरी के राजा विक्रमसेन हमारे राज्य पर आक्रमण करने की तैयारी कर रहे हैं।''

शिव की बातों पर चकित राजा ने उसे बुलवाया और पूछा, ‘‘मुझसे भी अधिक बलवान विक्रमसेन का सामना कैसे किया जाए?''

‘‘इसका परिष्कार मार्ग आपके तृतीय सपने में सुझाया गया है महाराज'', शिव ने कहा।

‘‘कैसे?'' महाराज ने पूछा।

‘‘महाराज, आपने सपने में जिस सिंह को देखा, वह सिंहपुरी का राजा विक्रमसेन है। आपका रक्त से भरे कुंड में गिरना होनेवाले रक्तपात का संकेत है। युवरानी ने आपको उस कुंड से निकाला और आपकी रक्षा की। वही युवरानी आपको इस विपत्ति से बचा सकती है'', शिव ने कहा। ‘‘यह कैसे संभव है?'' महाराज ने संदेह व्यक्त किया।

‘‘सिंहपुरी के राजा का एक बालिग़ बेटा है। युवरानी का विवाह उससे करायेंगे तो युद्ध की बात ही नहीं उठेगी।'' शिव ने स्पष्ट किया।

राजा मणिकर्ण ने उसकी बातों में छिपी वास्तविकता को पहचाना। उन्होंने दूसरे ही दिन अपनी पुत्री का छायाचित्र विक्रमसेन को भेजा और पत्र में लिखा, ‘‘आप सहमत हों तो मेरी पुत्री को आप की बहू बनने का सौभाग्य प्रदान कीजिये। यह मेरी हार्दिक इच्छा है।''

मणिमेखला के अद्भुत सौंदर्य पर मुग्ध सिंहपुरी के युवराज ने यह प्रस्ताव सहर्ष स्वीकार किया। अब विक्रमसेन ने गोकर्णिक पर आक्रमण करने का विचार त्यज दिया और अपने बेटे की शादी की तैयारियों में लग गया। फिर उनका विवाह बहुत बड़े पैमाने पर संप हुआ।

शिव ने राजा के तीनों सपनों का विश्लेषण बड़ी ही सक्षमता से की। उसी की वजह से राज्य घोर विपत्तियों से बच पाया। शिव की समझदारी की राजा ने भरपूर प्रशंसा की और उसे अपने आन्तरिक सलाहकार के पद पर नियुक्त किया।