04 फ़रवरी 2010

Hindi sahitya - Novel : Elove CH -5 मिटींग

सुबहके लगभग दस बजे होंगे। अंजली जल्दी जल्दी अपने कॅबिनमें घुस गई. जब वह कॅबिनमें आगई थी तब शरवरीकी कॅबिनकी चिजे ठिक लगाना चल रहा था. अंजलीके अनुपस्थितीमें उसके कॅबिनकी पुरी जिम्मेदारी शरवरीकीही रहती थी.

अंजलीके कॅबिनमें प्रवेश करतेही शरवरीने अदबसे खडे रहते हूए उसे विश किया, '' गुडमॉर्निंग...''

'मॅडम' उसकें मुंहमें आते आते रह गया। अंजली उसे कितनीभी दोस्तकी तरह लगती हो या उससे दोस्तकी तरह व्यवहार करती हो फिरभी शरवरीको कमसे कम उसके कॅबिनमें उससे दोस्तकी तरह बरताव करना बडा कठिण जाता था, और वह भी कभी कभी बाकी लोगोंके सामने.

अंजलीने अंदर आकर उसके पाससे गुजरते हूए उसके पिठपर थपथपाते हूए कहा, '' हाय''

उसके पिछे पिछे उसका ड्रायव्हर उसकी सुटकेस लेकर अंदर आ गया। जैसेही अंजली अपने कुर्सीपर बैठ गई, ड्रायव्हरने सुटकेस उसके बगलमे रख दी और वर कॅबिनसे निकल गया.

शरवरी अंजलीके आमने सामने कुर्सीपर बैठ गई और उसने उसकी अपॉईंटमेंट्सकी डायरी खोलकर उसके सामने खिसकाई। अंजलीने अपने कॉम्पूटरका स्विच ऑन किया और वह डायरीमें लिखी अपॉईंटमेट्स पढने लगी.

'' सुबह आए बराबर मिटींग...'' अंजली बुरासा मुंह बनाकर बोली, '' अच्छा इस दोपहरके सेमीनारको मै नही जा पाऊंगी ॥ क्यों न शर्माजीं को भेज दे?...''

'' ठिक है '' शरवरी उस अपॉईंटके सामने स्टार मार्क करते हूए बोली।

'' क्या करें इन लोगोंको मुंहपर कुछ बोलभी नही सकते ... और समयके अभावमें सेमीनार को जा भी नही सकते.... सचमुछ किसी कंपनीके हेडका काम कोई मामुली नही होता।''

अंजली अपनी सूटकेस खोलकर उनमेंसे कुछ पेपर्स बाहर निकालने लगी। पेपर निकालते हूए एक पेपरकी तरफ देखकर, वह पेपर बगलमें निकालकर रखते हूए बोली, '' अब यह देखो ... इस कंपनीके टेंडरका काम अब तक पुरा नही हुवा ... यह पेपर जरा उस कुलकर्णीकी तरफ भेज देना ...''

'' कुलकर्णी आज छुट्टीपर है '' शरवरीने कहा।

'' लेकिन मेरे जानकारीके अनुसार उनकी छुट्टी तो कलतक ही थी। ...'' अंजली चिढकर बोली.

'' हां ...लेकिन अभी थोडी देर पहले उनका फोन आया था। ... वे कामपर नही आ सकते यह बोलनेके लिए '' शरवरीने कहा.

'' क्यों नही आ सकते ?'' शरवरीने गुस्सेसे पुछा।

'' मैने पुछा तो उन्होने कुछ ना कहते हूएही फोन रख दिया।

यह कुलकर्णी मतलब एक बेहद गैरजिम्मेदाराना आदमी ...'' अंजली चिढकर बोली।

और फिर जो अंजलीकी बडबड शुरु होगई वह रुकनेका नाम नही लेही थी। शरवरीको खुब पता था की जब अंजली ऐसी बडबड करने लगे तो क्या करना चाहिए. कुछ नही, चूपचाप बैठकर सिर्फ उसकी बडबड सुन लेना. बिचमें एकभी लब्ज नही बोलना. अंजलीने ही उसे एक बार बताया था की जब अपना बॉस ऐसा बडबड करने लगे, तो उसकी वह बडबड मतलब एक तरह का स्ट्रेस बाहर निकालने का तरीका होता है. जब उसकी ऐसी बडबड चल रही होती है तब जो सेक्रेटरी उसे और कुछ बोलकर या और कुछ पुछकर उसकी और स्ट्रेस बढाती है उसे मोस्ट अनसक्सेसफुल सेक्रेटरी कहना चाहिए. और जो सेक्रेटरी चूपचाप अपने बॉसकी बकबक सुनती है और अपने बॉसको फिर से नॉर्मल होनेकी राह देखती है उसे मोस्ट सक्सेसफुल सेक्रेटरी कहना चाहिए.

अंजलीकी बकबक अब बंद होकर वह काफी शांत हो गई थी। वह हाथमें कुछ पेपर्स और फाईल्स लेकर मिटींगको जानेके लिए अपने कुर्सीसे उठ खडी हो गई. शरवरीभी उठ खडी होगई.

बगलमें चल रहे कॉम्प्यूटरके मॉनिटरकी तरफ देखते हूए वह शरवरीसे बोली, '' तूम जरा मेरी मेल्स चेक कर लेना ... मै मिटींगको हो आती हूं ...'' और अंजली अपने कॅबिनसे बाहर जाने लगी।

'' पर्सनल मेल्सभी ?'' शरवरीने उसे छेडते हूए मुस्कुराकर मजाकमें कहा।

'' यू नो... देअर इज नथींग पर्सनल... और जोभी है ... तुम्हे सब पता है ही ...'' अंजलीभी उसकी तरफ देखकर, मुस्कुराते हूए बोली और पलटकर जल्दी जल्दी मिटींगको जानेके लिए निकल पडी।