04 फ़रवरी 2010

Hindi Books Library - Novel - E Love : CH 12 हॉटेल ओबेराय

विवेक सायबर कॅफेमें अपने कॉम्प्यूटरपर बैठा था। फटाफट हाथकी सफाई किए जैसे उसने गुगल मेल खोलतेही उसे अंजलीकी मेल आई हूई दिखाई दी. उसका चेहरा खुशीसे दमकने लगा. उसने एक पलभी ना गवांते हूए झटसे डबल क्लीक करते हूए वह मेल खोली और उसे पढने लगा -

'' विवेक ... 25 को सुबह बारा बजे मै एक मिटींगके सिलसिलेमें मुंबई आ रही हूं ... 12।30 बजे तक हॉटेल ओबेराय पहूचूंगी... और फिर फ्रेश वगैरे होकर 1.00 बजे मिटींग अटेंड करुंगी.... मिटींग 3 से 4 बजेतक खत्म हो जाएगी ... तुम मुझे बराबर 5.00 बजे वर्सोवा बिचपर मिलना ... बाय फॉर नॉऊ... टेक केअर''

विवेकने मेल पढी और खुशीके मारे खडा होकर '' यस्स...'' करके चिल्लाया।

सायबर कॅफेमें बैठे बाकी लोग क्या होगया करके उसकी तरफ आश्चर्यसे देखने लगे। जब उसने होशमें आकर बाकी लोगोंको अपनी तरफ आश्चर्यसे ताकते पाया वह शर्माकर निचे बैठ गया.

वह फिरसे अपने रिसर्चके सिलसिलेमें गुगल सर्च ईंजीनपर जानकारी ढुंढने लगा। लेकिन उसका ध्यान किसी चिजमें नही लग रहा था. कब एक बार वह दिन आता है , कब अंजली मुंबइको आती है और कब उसे वह वर्सोवा बिचपर मिलता है ऐसा उसे हो गया था.

' वर्सोवा बिच' दिमागमें आगया लेकिन उस बिचकी तस्वीर उसके जहनमें नही आ रही थी। वर्सोवा बिचका नाम उसने सुना था लेकिन वह कभी वहां नही गया था. वैसे वह मुंबईमें रहकर पिएचडी कर तो रहा था लेकिन वह जादातर कभी घुमता नही था. मुंबईमें वह वैसे पहले पहले काफी घुमा था. लेकिन वर्सोवा बिचपर कभी नही गया था. अब यहां सायबर कॅफेमें बैठे बैठे क्या करेंगे यह सोचकर उसने गुगल सर्च ओपन किया और उसपर 'वर्सोवा बिच' सर्च स्ट्रींग दिया. इंटरनेटपर काफी जानकारी फोटोज और जानेके रास्ते मॅप्स अवतरीत हूए . उसने वह जानकारी पढकर जानेका रास्ता तय किया. अब और क्या करना चाहिए ? उसका दिमाग सुन्न हो गया था. चलो उसने भेजी हूई पुरानी मेल्स पढते है और उसने भेजे हूए फोटोज देखते है ऐसा सोचकर वह एक एक कर उसकी पुरानी मेल्स खोलने लगा. मेल्सकी तारीखसे उसके खयालमें आ गया की उनका यह 'सिलसिला' वैसे जादा पुराना नही था. आज लगभग 1 महिना हो गया था जब वह पहली बार उसे चॅटींगपर मिल गई थी. लेकिन उसे उनकी पहचान कैसे कितनी पुरानी लग रही थी. उन्होने एकदुसरेको भेजे मेल्स और फोटोजसे वैसे उन्हे एक दुसरेको जाननेका मौका मिला था और एक दुसरेके जहनमें उन्होने एकदुसरेकी एक तस्वीर बना रखी थी. वैसे उन्होने एकदुसरेके स्वभावकाभी एक अंदाजा लगाकर अपने अपने मनमें बसाया था.

' वह अपने कल्पनानूसारही होगी की नही ?' उसके दिमागमें एक प्रश्न उपस्थित हुवा।

या मिलनेके बाद मैने सोचे इसके विपरीत कोई अनजान... कोई कभी ना सोची होगी ऐसी एक व्यक्ती अपने सामने खडी हो जाएगी...

' चलो आमने सामने मिलनेके बाद कमसे कम यह सब शंकाए मिट जाएगी ' उसने उसका फोटो अल्बम देखते हूए सोचा।

अचानक उसे उसके पिछे कोई खडा है ऐसा अहसास हो गया। उसने पलटकर देखा तो जॉनी एक नटखट मुस्कुराहट धारण करते हूए उसकी तरफ देख रहा था.

'' साले बस बात यहीतक पहूंची है तो यह हाल है ... तुझे आजुबाजुकाभी कुछ दिखता नही... शादी होनेके बाद पता नही क्या होगा?'' जॉनीने उसे छेडते हूए कहा।

'' अरे... तुम कब आए ?'' विवेक अपने चेहरेपर आए हडबडाहटके भाव छुपाते हूए बोला।

'' कमसे कम पुरा आधा घंटा हो गया होगा... ऐसा लगता है शादी होनेके बाद तु हमें जरुर भुल जाएगा '' जॉनी फिरसे उसे छेडते हूए बोला।

'' अरे नही यार... ऐसा कैसे होगा ?... कमसे कम तुम्हे मै कैसे भूल पाऊंगा ?'' विवेक उसके सामने आए हूए तोंदमें मुक्का मारनेका अविर्भाव करते हूए बोला।

1 टिप्पणी:

  1. सही बात है, आभासी दुनिया के दोस्तों से मिलने की ललक इतनी होती है, जितनी कि अपने पास के रिश्तों को निभाने में नहीं।

    लाजबाब

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