12 फ़रवरी 2010

रामायण – उत्तरकाण्ड - मान्धाता की कथा

रात्रि होने पर शत्रुघ्न ने महर्षि च्यवन से लवणासुर के विषय में अन्य जानकारी प्राप्‍त की तथा पूछा कि उस शूल से कौन-कौन शूरवीर मारे गये हैं। च्यवन ऋषि बोले, "हे रघुनन्दन! शिवजी के इस त्रिशूल से अब तक असंख्य योद्धा मारे जा चुके हैं। तुम्हारे कुल में तुम्हारे पूर्वज राजा मान्धाता भी इसी के द्वारा मारे गये थे।"

शत्रुघ्न द्वारा पूरा विवरण पूछे जाने पर महर्षि ने बताया, "हे राज्! पूर्वकाल में महाराजा युवनाश्‍व के पुत्र महाबली मान्धाता ने स्वर्ग विजय की इच्छा से देवराज इन्द्र को युदध के लिये ललकारा। तब इन्द्र ने उने से कहा कि राजा! अभी तो तुम समस्त पृथ्वी को ही वश में नहीं कर सके हो, फिर देवलोक पर आक्रमण की इच्छा क्यों करते हो? तुम पहले मधुवन निवासी लवणासुर पर विजय प्राप्त करो। यह सुनकर राजा पृथ्वी पर लौट आये और लवणासुर से युद्ध करने के लिये उसके पास अपना दूत भेजा। परन्तु उस नरभक्षी लवण ने उस दूत का ही भक्षण कर लिया। जब राजा को इसका पता चला तो उन्होंने क्रोधित होकर उस पर बाणों की प्रचण्ड वर्षा प्रारम्भ कर दी।

उन बाणों की असह्य पीड़ा से पीड़ित हो उस राक्षस ने शंकर से प्राप्त उस शूल को उठाकर राजा का वध कर डाला। इस प्रकार उस शूल में बड़ा बल है। हे रघुकुलश्रेष्ठ! मान्धाता को इस शूल के विषय में कोई जानकारी नहीं थी अतः वे धोखे में मारे गये। परन्तु तुम निःसन्देह ही उस राक्षस को मारने में सफल होगे।