01 मार्च 2010

होली पर करें कुवृत्तियों का दहन

सर्दियां समाप्त हो रही हैं। खेतों में लहलहाती फसलों को देखकर किसान फगुआ गा रहे हैं। इन दिनों वे खुशी से झूमने के मूड में इसलिए आ गए हैं, क्योंकि होली के आगमन के साथ ही उनके घर धन-धान्य से समृद्ध होने लगते हैं। उनकी यह प्रसन्नता और स्फूर्ति रंगों के रूप में अभिव्यक्त होती है। देश के अलग-अलग हिस्सों में इस उत्सव को भिन्न-भिन्न नामों से मनाते हैं, जैसे- दोल जतरा,रंग पंचमी, धुलैंदी,फागुन पूर्णिमा और लट्ठमार होली। होली सिर्फ रंगों का पर्व ही नहीं है, बल्कि इसका आध्यात्मिक अर्थ भी है।

नई यात्रा की शुरुआत

कुरुक्षेत्र के मैदान में श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था, सांसारिक वस्तुओं का भोग करते-करते मनुष्यों को उनसे मोह हो जाता है। यही मोह लोभ पैदा करता है। किसी वस्तु के लोभ में पडकर ही हमारा स्वभाव क्रोधी हो जाते हैं। क्रोध हमें भ्रम की स्थिति में ले जाता है, बल्कि मानसिक रूप से कमजोर भी कर देता है। इससे हमारी बुद्धि और विचार प्रभावित होते हैं। यहीं से शुरुआत होती है व्यक्तित्व के पतन की। होली हमें पिछले वर्ष के कटु अनुभवों को भूल कर एक नई यात्रा की शुरुआत करने की सलाह देती है। इससे हमें छोटे-बडे, अमीर-गरीब, सभी लोगों से समान व्यवहार रखने और कुवृत्तियोंको खत्म करने का संदेश मिलता है।

प्रतीक

होलिकादहन का यह प्रतीक है मन की कुवृत्तियोंके दहन का। इसकी तैयारी 40दिन पहले यानी वसंत पंचमी के दिन से शुरू हो जाती है। पंडित नंदन मिश्र बताते हैं, होलिका की प्रदक्षिणा और पूजन के बाद पुरुष होलिका के पुतले को जलाने का जो उपक्रम करते हैं, उसका विशेष अर्थ निकलता है। दरअसल, होलिका का पुतला मनुष्य की आसुरी प्रवृत्तियों का प्रतीक होता है, जिसे जलाने यानी खत्म करने की सलाह दी जाती है। अहंकार, लोभ और घमंड जैसी अज्ञानता को समर्पण और ज्ञान की अग्नि से जला डालने की यह प्रतीकात्मक क्रिया है। ऐसा करने से लौकिक प्रेम, सद्भावना और दया का भाव उत्पन्न होता है। दूसरे दिन सुबह लोग होलिका की राख [भभूत] को शरीर पर लगाते हैं। यह प्रतीक है तन और मन, दोनों के शुद्धीकरण का। होली से पूर्व होलिकादहन की यही प्रक्रिया हर वर्ष अपनाई जाती है। इस वर्ष होलिका दहन 28फरवरी को है, जिसके अगले दिन यानी 1मार्च को होली का पर्व है।

मंत्र का प्रभाव

होलिकादहन के दूसरे दिन हम होली खेलने में जुट जाते हैं, लेकिन ज्योतिष के अनुसार, इस दिन हम सुबह स्नान के बाद मंत्र का जाप करें, तो काफी फायदा मिल सकता है। हम जिस भी देवता को मानते हैं, उनकी स्तुति के मंत्र का जाप करें। इससे हमारा मस्तिष्क शांत होता है। धुलंडी रंगों वाली होली देश भर में एक मार्च को मनाई जाएगी।

बहुओं की लट्ठमार होली

उत्तर प्रदेश में वृंदावन से 15किलोमीटर दूर है बरसाना गांव। यहां मनाई जाती है लट्ठमार होली। कथा है कि इस दिन श्रीकृष्ण कुछ गोपियों के साथ यहां आकर धोखे से राधा और उनकी सखियों के चेहरों पर काला रंग पोत गए थे। उन लोगों के इस चुहल का जवाब राधा और उनकी सहेलियों ने लाठी से उन्हें गांव के बाहर खदेडते हुए दिया था। बरसाने में एक मंदिर है-राधा रानी मंदिर। यहां पुरुष महिलाओं को रंग लगाते हैं और महिलाएं उन्हें लट्ठ से पीटने का उपक्रम करती हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार, गांव में इसकी तैयारी एक महीने पहले शुरू हो जाती है। सास अपनी बहुओं की तीमारदारी में जुट जाती हैं, ताकि वे लट्ठमार होली के दिन मैदान में डटकर मुकाबला कर सकें।