28 फ़रवरी 2010

निशागमे तु पूज्यते होलिका सर्वतोमुखे:

आज सायंकाल भद्रारहित काल में होलिका दहन किया जाएगा। भद्रा दिन में 12 बजे तक रहेगी। भद्रा के मुख का त्याग करके निशा मुख में होली का पूजन करना शुभफलदायक सिद्ध होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भी पर्व-त्योहारों को मुहूर्त शुद्धि के अनुसार मनाना शुभ एवं कल्याणकारी है।

हिंदू धर्म में अनगिनत मान्यताएं, परंपराएं एवं रीतियां हैं। वैसे तो समय परिवर्तन के साथ-साथ लोगों के विचार व धारणाएं बदलीं, उनके सोचने-समझने का तरीका बदला, परंतु संस्कृति का आधार अपनी जगह आज भी कायम है। आज की युवा पीढ़ी में हमारी प्राचीन नीतियों को लेकर कई सवाल उठते हैं, परंतु भारतीय धर्म साधना के परिवेश में वर्ष भर में शायद ही ऐसा कोई त्योहार हो जिसे हमारे राज्य अपने-अपने रीति रिवाजों के अनुसार धूमधाम से न मनाते हों।

ये पर्व हमारे आचार-व्यवहार, रहन-सहन, खान-पान, वेशभूषा और लोक विश्वास के परिचायक हैं। ज्योतिष गणना के अनुसार इस वर्ष 22 फरवरी से 28 फरवरी होलाष्टक की अवधि में गृह प्रवेश, मुंडन आदि जैसे शुभ कार्यो के आरंभ का निषेध माना गया है। आज सायंकाल होलिका दहन के बाद होलाष्टक का प्रभाव समाप्त हो जाएगा। इसके बाद 1 मार्च के दिन प्यार और एकता के रंग से सराबोर होलिकोत्सव का यह रंग भरा त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाएगा।

हर राज्य की होली का अपना एक अलग रंग और मनाने का ढंग दिखाई पड़ता है। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, तमिलनाडु, गुजरात, महाराष्ट्र, उड़ीसा, गोवा में होली का अलग अंदाज है। मनभावन और पावन होली का अनोखा स्वरूप हमें मथुरा, वृंदावन, बरसाना और नंदगांव में देखने को मिलता है।

शरद ऋतु के पश्चात गर्मियों के स्वागत में होली का पर्व मनाते हैं। राजपूत आज के दिन कई प्रकार के अस्त्र-शस्त्र की प्रतियोगिताएं भी करवाते हैं। तमिलनाडु में होली को कामविलास के नाम से मनाया जाता है। कामदेव की श्रद्धापूर्वक उपासना करके कई लोकगीतों के साथ इस दिन को मनाने की प्रथा है। पंजाब का तो कहना ही क्या, यहां होली को ‘होला मोहल्ला’ के नाम से मनाते हुए ढोलक की थाप पर भांगड़ा करते हैं। महाराष्ट्र में इसे ‘रंगपंचमी’ के नाम से मनाते हैं। जगह-जगह दूध और मक्खन की मटकी तोड़ने का प्रयास करते हुए कृष्ण स्वरूप का जीवंत रूप देखने को मिलता है। महाराष्ट्र की तरह ही इसे गुजरात में गोविंदा के नाम से मनाते हैं। रंग और अबीर की बरसात के साथ विभिन्न जगहों पर मटकियां फोड़ी जाती हैं।

होलिका दहन के समय लोग कच्चे आम, नारियल, भुट्टे, चीनी के बने खिलौने होली की आहुति के रूप में भेंट करते हैं। एक-दूसरे को गुलाल का तिलक लगाकर गले मिलते हैं। पौराणिक एवं धार्मिक आस्थानुसार कई सुंदर चित्रण दर्शाए जाते हैं। उत्तर प्रदेश व बिहार में पुराने संवत्सर के जाने व नए के इंतजार में होलिका दहन द्वारा पिछले साल की बुरी यादें और पुरानी रंजिश व क्रोध को आग की भेंट चढ़ाते हुए आज के दिन नवीन सतरंगों से अपने मन को रंग देते हैं।

संपूर्ण भारतवर्ष के लोग विभिन्न रीति-रिवाजों के अनुसार होली के अवसर को मनाने में गौरव महसूस करते हैं। वेद-पुराणों से लेकर संपूर्ण साहित्य में भी होली के प्रचलन का पता चलता है। भगवान शिव से लेकर गुरु गोरखनाथजी ने भी इसे विशेष साधना पर्व कहा है। आज के दिन साधक, साधु, संन्यासी विशेष मुहूर्त में अपनी साधना संपन्न करते हैं। आज के दिन 28 फरवरी सायंकाल भद्रारहित काल में होलिका दहन किया जाएगा। भद्रा 12 बजे तक रहेगी। भद्रा के मुख का त्याग करके निशा मुख में होली का पूजन करना शुभफलदायक सिद्ध होता है। आज के दिन होलिका दहन, प्रहलाद का स्मरण और अन्याय पर न्याय की विजय का स्मरण तो होता है। इसके अलावा आज के दिन नवान्नेष्टि यज्ञ भी संपन्न किया जाता है।

होली के दिनों में किसानों की फसल भी कटकर आ जाती है। सभी किसान मिल-जुलकर होलिका दहन करके अपनी खुशहाली व समृद्धि के लिए अग्नि को अपनी फसल का पहला भाग अर्पित करते हैं। किसान अपनी धान की परख भी इस होली से करते हैं। होलिका दहन के विषय में कई गाथाएं सर्वाधिक प्रचलित हैं, जैसे होलिका का प्रहलाद को मारने के लिए गोद में लेकर आग में बैठना। दूसरी कथा के अनुसार पूतना का वध इसी दिन किया गया था। तीसरी कथा के अनुसार भगवान शिव ने कामदेव को इसी दिन श्राप देकर भस्म कर दिया था।

प्रदोषव्यापिनी ग्राह्या पूर्णिमा फाल्गुनि सदा।
निशागमे तु पूज्यते होलिका सर्वतोमुखे:।।


ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पर्व-त्योहारों को मुहूर्त शुद्धि के अनुसार मनाना शुभ एवं कल्याणकारी है। आज के दिन प्रात:काल स्नानादि करके शुद्ध वस्त्र पहनकर हनुमानजी व भैरव बाबा की पूजा करने का विधान है। सभी देवी-देवताओं का ध्यान करते हुए लाल रोली व चंदन से तिलक लगाकर प्रार्थनापूर्वक अपनी रक्षा के लिए आशीर्वाद प्राप्त करें। थोड़े से तेल को बच्चों से हाथ लगवाकर किसी चौराहे पर डाल दें। नजर तोड़ की यह प्राचीन प्रथा आज भी चली आ रही है। आज के दिन पकवान, मिठाइयां विशेषकर किसी ब्रह्मण को देना भी अत्यंत शुभ माना जाता है।