14 फ़रवरी 2010

ये इश्क नहीं आसाँ...

'मुझे तो अब भी यकीन नहीं हो रहा यार कि राजेश ने सोनम के अलावा किसी और से शादी कर ली। आदमी इतना बदल कैसे जाता है?' सचिन के मुँह से यह वाक्य सुनकर अब तक चुपचाप बैठे मनीष ने कहा, 'हाँ यार, राजेश और सोनम को हम लोग दो जिस्म एक जान समझा करते थे। कॉलेज के दिनों में कैसे दोनों के चेहरे हमेशा फूल की तरह खिले रहते थे।

कॉलेज के लड़के-लड़कियाँ उनके प्रेम को अपना आदर्श मानते थे। मैंने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि राजेश सोनम के अलावा किसी और से शादी करने के बारे में सोच तक सकता है। 'सोनम और राजेश की यह कहानी अकेले उनकी ही नहीं है। कॉलेज जाने वाला हर लड़का और लड़की प्रेम के इस दरिया में डुबकियाँ लगाना चाहते हैं। यह बात अलग है कि ज्यादातर की परिणति वही होती है, जो राजेश और सोनम के प्यार की हुई। कॉलेज के संबंध बेवफाई की एक अंतहीन दास्ताँ है। यह कोई नया ट्रेंड भी नहीं है। हमेशा से ऐसा होता रहा है।

यह बात अलग है कि कॉलेज जाने वाला हर लड़का और लड़की प्रेम करना चाहते हैं, लेकिन कुछ ही किस्मत वाले होते हैं जो तमाम बाधाओं के बावजूद कॉलेज के दिनों के कस्मे-वादों को उम्र भर हमसफर बनकर निभाते हैं। एक शायर ने भी कहा है- 'ये इश्क नहीं आसाँ इतना तो समझ लीजै, एक आग का दरिया है और डूब के जाना है।' ये दो पंक्तियाँ प्यार की कठिन डगर को बयान करने के लिए काफी हैं। फिर भी सब कुछ जानते हुए भी लड़के-लड़कियाँ इस दरिया में कूद ही जाते हैं।

समाज में लैला-मजनू के किस्से बेशक ध्यान से सुने जाते हों, लेकिन समाज को यह कतई मंजूर नहीं कि इस तरह की प्रेम कहानी उसका हिस्सा भी बने। फिर भी गली-मोहल्लों से लेकर कॉलेजों तक प्यार में दिल लूटने-लुटाने वालों की कमी नहीं रहती। हर लड़के-लड़की का ख्वाब होता है कि उसके सपनों का हमसफर उसे कहीं जिंदगी की राहों पर टकरा जाए। इसी कामना के वशीभूत वे एक-दूसरे में अपने प्यार का प्रतिबिंब तलाशते हैं। जहाँ भी इस प्रतिंिंबब की झलक दिखाई देती है, वहीं नजदीकियाँ बढ़ने लगती हैं। ये नजदीकियाँ प्यार में बदलती हैं, जिसकी परिणति अक्सर बेवफाई के रूप में सामने आती है।

वास्तव में देखा जाए तो प्यार की अग्निपरीक्षा शादी ही है। पर देखा गया है कि प्रेम की गाड़ी में सवार होकर चलने वाले इस अग्निपरीक्षा में अक्सर असफल हो जाते हैं। कॉलेज के प्रेम संबंधों का अक्सर दुखांत होता है। ऐसा आखिर क्यों है? यह सवाल प्रेम संबंधों के समाजशास्त्र में एक फाँस की तरह अटका हुआ है? कॉलेज में जो लड़का-लड़की एक पल भी एक-दूसरे के बगैर चैन से नहीं रह पाते, कॉलेज छोड़ते ही अक्सर एक-दूसरे को यूँ भूल जाते हैं जैसे ट्रेन में सफर के यात्री अपने स्टेशन के प्लेटफार्म पर उतरते ही अजनबी हो जाते हैं। अगर किसी का प्यार किसी तरह से शादी की मंजिल तक पहुँचता भी है, तो देखने में आता है कि वह अक्सर टूट जाता है। आखिर ऐसा क्यों होता है?

वास्तव में इसकी प्रमुख वजह यही है कि ये रिश्ते केवल दिल की भावनाओं पर टिके होते हैं। भावनाएँ भी ऐसी, जो एक हल्की सी ठोकर में ही चकनाचूर हो जाएँ। अक्सर कहा जाता है कि भावनात्मक आदमी अपने जीवन में कभी खुश नहीं रह सकता। यह बात सोलह आने सच है। भावनाएँ सपनों की आधारशिला पर टिकी होती हैं।

दूसरी तरफ सपनों का वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं होता। जब एक लड़का और एक लड़की प्रेम के मोहपाश में बँधते हैं, तो उनकी दुनिया सिर्फ और सिर्फ अपने तक ही सीमित होकर रह जाती है। वे सुबह सोकर उठने से लेकर रात को सोने तक केवल एक-दूसरे के बारे में ही सोचते हैं। इतना ही नहीं, सोने से पूर्व भगवान से यह प्रार्थना करना नहीं भूलते कि रात को सपने में उसका प्रिय दिखाई दे। प्यार को अगर नशा कहा गया है तो यह सही ही कहा गया है। जिस तरीके से नशेड़ी को दुनियादारी से कोई लेना-देना नहीं होता ठीक उसी तरह प्रेमी युगल का समाज के बंधनों अथवा रीति-रिवाजों से कोई सरोकार नहीं होता। यह प्यार सिर्फ 'टाइमपास' के लिए होता है। कॉलेज के दिनों में प्रेमी-प्रेमिकोमिकाओं की मुहब्बत मंजिल नहीं पाती अगर कोई जोड़ा शादी कर भी लेता है, तो ज्यादातर की शादी टूट जाती है क्योंकि शादी के बाद वे एक-दूसरे का वास्तविक स्वरूप देखते हैं, जो अक्सर कल्पनाओं से भिन्न होता है।

यही वह चीज होती है जो दोनों को अलगाव की नींव तक ले जाती है। जो लोग वास्तविकता से समझौता कर लेते हैं, वे तो सफल हो जाते हैं। जो सिर्फ अपनी कल्पनाओं को ही साकार देखना चाहते हैं, उनके बीच दूरियाँ बढ़ने लगती हैं। यही दूरी आखिर में दोनों को अलगाव की दहलीज तक खींचकर ले जाती है। यह अलगाव कई बार सामान्य अलगाव से अलग और उलझन भरा होता है। कहते हैं कि प्यार जब नफरत में बदल जाए तो वह ज्यादा खतरनाक होता है। यही वजह है कि जब दो प्रेमियों के बीच शादी के बाद अलगाव होता है तो उसकी प्रक्रिया काफी कष्टदायी होती है।

इस तरह के सैकड़ों उदाहरण हमारे सामने हैं। ये उदाहरण इस बात की पुष्टि करते हैं कि सपनों का टूटना आदमी को पागलपन की हद तक पहुँचा देता है। कॉलेज के ऐसे प्रेम-संबंध जो शादी की परिणति तक पहुँचते हैं, उनमे से नब्बे फीसदी अलगाव की भेंट चढ़ जाते हैं। यह सारा खेल सपनों के बनने एवं उनके टूटने पर टिका है। सच कहा जाए तो प्यार की दुनिया स्वप्निल दुनिया है। जब तक जमीनी सच्चाई से इसका मेल-मिलाप नहीं होता, तब तक इस दुनिया पर खतरे के बादल मँडराते रहते हैं।

शादी से पूर्व लड़की ख्वाब देखती है कि मेरा प्रेमी मुझे राजकुमारी की तरह रखेगा। लड़का सोचता है कि प्रेमिका मेरे सारे दुःखों को एक ही झटके में समाप्त कर देगी। लेकिन शादी के बाद ठीक इसके विपरीत होता है। इस विपरीत परिस्थिति से वे सामंजस्य नहीं बिठा पाते और गंभीर परिणाम भुगतते हैं। अतः कितना अच्छा हो कि यदि कल्पनाओं पर आधारित प्रेम को हकीकत की तराजू पर पहले ही तौलकर देख लिया जाए।

1 टिप्पणी:

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