16 फ़रवरी 2010

सद्भाव से समाज निर्माण संभव

भावनाओं का अनुभव तो सभी करते हैं किंतु हममें से अधिकांश उनकी ठीक समझ नहीं रखते। भावनाओं को ठीक से समझना एक महत्वपूर्ण कला है। जो व्यक्ति इन्हें समझकर सबके प्रति करुणा का भाव रखता है, उससे श्रेष्ठ जीवन ढूँढना मुश्किल है।

इसे स्पष्ट करने के लिए बहुत उपयुक्त है एक कथा- आनंद धर्मयात्रा पर थे। एक गाँव में कुएँ पर उन्होंने पकति नाम की एक युवती से जल माँगा। वह युवती मतंग (एक अस्पृश्य समझी जाने वाली) जाति की थी इसलिए उसने अपनी जाति बताकर जल देने में असमर्थता बताई।

आनंद बोले- मैंने तुमसे जल माँगा है, जाति नहीं पूछी, मुझे जल दो। प्यास लगी है। आनंद के व्यवहार से युवती का मन भर आया। भाव-विह्वल होकर युवती ने उन्हें जल पिलाया और वह उनके पीछे-पीछे महात्मा बुद्ध के दर्शन की अभिलाषा से चलने लगी। तथागत के पास पहुँचकर युवती ने आनंद के प्रति अपने प्रेम की बात बताकर उसकी सेवा में रहने की अनुमति माँगी।

महात्मा बुद्ध ने उसके भाव को समझा और बोले- पकति, तुम्हारा यह प्रेम आनंद के प्रति नहीं है बल्कि उसके सद्भाव के प्रति है। इसलिए तुम उसके आचरण को अपनाओ जिससे तुम्हें परम सुख की प्राप्ति होगी। बुद्ध आगे बोले- राजा की दासों के प्रति सहृदयता अच्छी बात है, परंतु उससे भी महान सहृदयता उस दास की है, जो अपने दमनकर्ता के अपराधों को क्षमा कर दया और मैत्री का भाव फैलाता है। पकति धन्य है। मतंग जाति में जन्म लेने पर भी तुम आर्य नर-नारियों का आदर्श बनोगी। ब्राह्मण तुमसे उपदेश लेंगे।

मनुष्य और समाज के मनोवैज्ञानिक अध्ययन पर आधारित बुद्ध का यह संदेश उस मानव समाज के निर्माण का आधार है, जो भारतीय संस्कृति का आदर्श है। वास्तव में सद्भाव से ही समाज निर्माण संभव है। जिससे एक व्यक्ति से दूसरे को अधिकाधिक हस्तांतरित होने पर श्रेष्ठ समाज की कल्पना को साकार किया जा सकता है।