09 फ़रवरी 2010

यूथ की नजर में पर्सनल मसला है समलैंगिकता

समलैंगिकता को लेकर भले ही धार्मिक नेता हो हल्ला मचा रहे हैं, लेकिन नौजवान पीढ़ी इसे किसी का भी व्यक्तिगत मामला और आईपीसी के सेक्शन 377 को व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन मानती है। वहीं सायकायट्रिस्ट का कहना है कि इसके लिए काफी हद तक जेनेटिक कारण और फैमिली एनवायरनमेंट जिम्मेदार होता है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक समलैंगिकता दिमागी बीमारी नहीं है, यह एक व्यावहारिक दिक्कत है।

फॉरेन ऐंबंसी में काम करने वाली अर्चना का कहना है कि सेक्शन 377 खत्म होना चाहिए क्योंकि लोगों को उनकी सेक्सुअल प्रिफरेंस चुनने का हक देना चाहिए। लेकिन व्यक्तिगत तौर पर मेरा मानना है कि शादी या सेक्स मेल-फीमेल के बीच ही होना चाहिए। ऐड एजंसी में क्रिएटिव राइटर बिमल कहते हैं कि इस दुनिया में बिना किसी को नुकसान पहुंचाए सभी को वह करने का हक है, जो वह चाहते हैं। सेक्सुअल प्रिफरेंस व्यक्तिगत मामला है। यहीं काम कर रहे आदित्य का मानना है कि इसके साथ ही समाज के नजरिए को भी बदलने की जरूरत है। अगर आप इसके खिलाफ हैं तो किसी को भी समझा सकते हैं और उसे अपनी बात पर सहमत कर सकते हैं लेकिन इसे अपराध नहीं माना जाना चाहिए।

मीडिया हाउस में काम करने वाली कामिनी का कहना है कि अगर हेल्थ की चिंता है तो अवेयरनेस बढ़ानी चाहिए, बल्कि होमोसेक्सुअल लोगों को सरकार को भरोसे में लेना चाहिए, ताकि वे खुलकर सामने आएं और अपने संदेह दुनिया के सामने रखें। सॉफ्टवेयर इंजीनियर साहिल कहते हैं कि फिल्मों सहित खबरों तक में जिस तरह से समलैंगिकता की बातें हो रही हैं, उससे सामान्य दोस्ती को भी शक की निगाह से देखा जाने लगा है। दोस्त अपने बीच की नजदीकी को पब्लिकली जाहिर करने से पहले सोचने लगे हैं।

वहीं लोगों की इस दुविधा पर सीनियर सायकायट्रिस्ट डॉ। संदीप वोहरा कहते हैं कि जरूरी नहीं कि हर दोस्ती समलैंगिकता हो। बार-बार इस तरह से शक करने पर बच्चों के मन पर गलत असर भी पड़ सकता है। पैरंट्स को शक करने के बजाय बच्चों से प्यार से साफ-साफ पूछ लेना चाहिए और अगर ऐसी कोई बात हो तो उन्हें प्यार से समझाएं और सायकायट्रिस्ट की मदद लें।

आखिर कोई क्यों समलैंगिक होता है?

आरएमएल हॉस्पिटल में सायकायट्री डिपार्टमेंट की हेड डॉ। स्मिता देशपांडे बताती हैं कि यह अभी तक पता नहीं लग पाया है, लेकिन केस स्टडी से पता चलता है कि इसके लिए काफी हद तक जेनेटिक कारण और फैमिली एनवायरनमेंट जिम्मेदार होता है। वह कहती हैं कि जिसकी फैमिली में पहले कोई समलैंगिक रह चुका हो, उसमें इसकी संभावना ज्यादा रहती है। डॉ. संदीप वोहरा कहते हैं कि अगर किसी बच्चे के मन में अपोजिट सेक्स वालों की नेगेटिव इमेज बन जाए तो वह भी सेम सेक्स की तरफ आकर्षित हो सकता है।

(पहचान छुपाने के लिए नाम बदले गए हैं।)