04 जनवरी 2010

भागवत (सुखसागर) की कथाएँ – चन्द्रमा की चाल



“हे परीक्षित! जिस प्रकार कुम्हार के चलाने पर उसका चक्र स्वयं अपनी धुरी पर घूमता है उसी प्रकार ज्योतिषस्वरूप भगवान के चलाने पर यह ग्रह, नक्षत्र, तारे, सूर्य, चन्द्रमा आदि सभी स्वतः अपनी अपनी गति पर चलते रहते हैं। भगवान भुवन भास्कर काल को बारह मासों में बाँट कर एक एक राशि में एक एक मास तक तप करते हैं। दो-दो मास की छः ऋतुएँ मानी गईं हैं। प्रत्येक मास को शुक्ल पक्ष तथा कृष्ण पक्ष नामक दो पक्षों में बाँटा गया है। छः छः मास के उत्तरायण और दक्षिणायण नामक दो अयण होते हैं। जितने काल में सूर्य भगवान बारह राशियों को भोग लेते हैं उसे संवत्सर कहते हैं।
“सूर्य से एक लाख योजन ऊपर चन्द्रमा विराजते हैं। चन्द्रमा ग्रह की चाल अति तीव्र है। वह सब नक्षत्रों से आगे रहता है। जिस मार्ग को सूर्य एक वर्ष में तय करते हैं उसे चन्द्रमा एक मास में तय कर लेता है। जितने मार्ग को सूर्य एक मास में तय करते हैं उसे चन्द्रमा सवा दो दिन में तय कर लेता है। चन्द्रमा साठ घड़ी में एक नक्षत्र को पार करता है। अभिजित सहित अट्ठाईस नक्षत्र हैं। चन्द्रमा कृष्ण पक्ष में क्षीण कला तथा शुक्ल पक्ष में पूर्ण कला से रहता है।
“चन्द्रमा से तीन लाख योजन ऊपर अट्ठाईस नक्षत्र रहते हैं। ये विराट भगवान के का चक्र में स्थित हैं। इनसे दो लाख योजन ऊपर शुक्र ग्रह घूमता है। यह सूर्य की शीघ्र तथा मन्द दोनों ही गतियों से कभी आगे, कभी पीछे और कभी साथ-साथ चलता है। यह वर्षा कराने वाला ग्रह है। बुध की गति भी शुक्र के अनुसार है यह शुक्र से दो लाख योजन ऊपर रहता है। यह कभी मार्गी तो कभी वक्री हो जाता है। यह एक शुभ ग्रह है। जब सूर्य से आगे चलता है तो आँधी बवण्डर उत्पन्न करता है। बुध से दो लाख योजन ऊपर मंगल ग्रह है। यह अमंगलकारी है। यह भी वक्री तथा मार्गी दोनों चाल से चलता है। मार्गी होने पर एक राशि को तीन पक्ष में तय कर लेता है। इससे दो लाख योजन ऊपर वृहस्पति ग्रह रहता है। यह एक राशि को तेरह महीने में तय करता है। वृहस्पति से दो लाख योजन ऊपर शनि ग्रह घूमता है। यह एक राशि को ढाई वर्ष में तय करता है। यह अशुभ तथा मन्द गति ग्रह है।
“हे राजन्! इन सब ग्रहों से ऊपर ग्यारह लाख योजन की दूरी पर सप्तर्षि ध्रुव लोक की प्रदक्षिणा करते हैं। ये सब लोकों की शुभ कामना करते रहते हैं।”