18 जनवरी 2010

महालया के प्रारंभ में चन्द्र-ग्रहण

श्राद्ध-कर्म का प्रारंभ भाद्रपद मास की पूर्णिमा से हो जाता है। यद्यपि तर्पण और श्राद्ध मुख्यतया पितृपक्ष में ही होते हैं, किन्तु इसके अश्विन मास के कृष्णपक्ष में होने से इस काल-खण्ड में पूर्णिमा उपलब्ध नहीं होती है। धर्मग्रन्थों का यह निर्देश है कि मृतक का देहावसान जिस तिथि में हुआ हो, उसमें ही उसका श्राद्ध किया जाना चाहिए। इस सिद्धांत के अनुसार किसी भी मास की पूर्णिमा में शरीर त्यागने वाले का श्राद्ध महालयाके अन्तर्गत भाद्रपदीपूर्णिमा के दिन किया जाता है। भाद्रपद की पूर्णिमा को प्रौष्ठपदी पूर्णिमा भी कहा जाता है और महालयाका आरम्भ इसी दिन से माना जाता है।

इस वर्ष भाद्रपदीपूíणमा की रात्रि में चन्द्र-ग्रहण होगा। चन्द्रमा की कान्ति में मलिनता का आरंभ गुरुवार 7सितम्बर को रात्रि में 10बजकर 12मिनट से प्रारंभ हो जायेगा किन्तु चन्द्रबिम्बको ग्रहण का स्पर्श रात्रि में 11बजकर 35मिनट पर होगा और इसी समय से ग्रहण की दृश्य-प्रक्रिया की शुरुआत मानी जाएगी। तदोपरान्त ग्रहण का ग्रास चन्द्रबिम्बपर बढता जाएगा और मध्यरात्रि में 12.21बजे ग्रहण के मध्यकाल में चन्द्रमा का लगभग 19प्रतिशत भाग कालिमा से ढक जाएगा। अस्तु इसे खण्डग्रास(आंशिक) चन्द्रग्रहण कहा जाएगा। एतत्पश्चात्ग्रहण का ग्रास कम होने लगेगा तथा रात्रि में 1बजकर 8मिनट पर चन्द्रबिम्बग्रहण से मुक्त (मोक्ष) हो जाएगा। रात में 2.30बजे चन्द्रमा की कान्ति पूरी तरह निर्मल हो जाएगी। यह चन्द्रग्रहण सम्पूर्ण भारतवर्ष में दिखाई देगा। धार्मिक दृष्टि से ग्रहण का सूतक (वेध) इसके स्पर्श से 9घंटे पूर्व गुरुवार 7सितंबर को अपराह्न 2.35बजे से लगेगा। सूतककालमें भोजन-शयन, विषय-सेवन तथा देव-प्रतिमा का स्पर्श वर्जित माना गया है। इस नियम के पालन में असमर्थ बालक, वृद्ध, रोगी और अशक्त सायं 7बजे तक भोजन कर सकते हैं। गुरुवार 7सितंबर को मंदिरों के पट दिन की सेवा के बाद बंद हो जाएंगे तथा ग्रहण के मोक्ष के बाद ब्रह्ममुहूर्तसे ही देवालयों में पुन:पूजा-सेवा शुरू हो सकेगी। सूतक की समाप्ति ग्रहण की निवृत्ति के साथ हो जाती है।

भाद्रपदीपूर्णिमा में पूर्णिमा का श्राद्ध करने वालों को ब्राह्मण-भोज गुरुवार 7सितंबर को अपराह्न 2.35बजे से पहले ही करवाना होगा। सूतककालमें आचार्य को पका हुआ भोजन नहीं करवाया जा सकता, किन्तु पितरोंका तर्पण एवं श्राद्ध-कर्म इसमें हो सकता है। दोपहर 2.35बजे के बाद सूतक के कारण ब्राह्मण को बिना पका श्राद्धान्न(सीधा) ही देना पडेगा। पूर्णिमा के दिन श्रीसत्यनारायणका व्रतोत्सव करने वाले वैष्णव गुरुवार 7सितंबर को अपराह्न 2.35बजे से पूर्व ही कथा एवं पूजन कर लें।

भारतीय ज्योतिष के अनुसार यह ग्रहण चन्द्रमा को कुम्भ राशि के अन्तर्गत पूर्वाभाद्रपदनक्षत्र में लगेगा। विभिन्न राशियों के लिये इस चन्द्र-ग्रहण का फल शास्त्रीय दृष्टिकोण से यह है, मेष-लाभ, वृष-सुख, मिथुन-अपमान, कर्क-महाकष्ट, सिंह-जीवनसाथी को पीडा, कन्या-आनन्द, तुला-चिन्ता, वृश्चिक-व्यथा, धनु-आर्थिक उपलब्धि, मकर-क्षति, कुंभ-आघात और मीन- हानि। इस चन्द्र-ग्रहण का भारतीय राजनीति, व्यापार जगत् एवं शेयर बाजार पर भी व्यापक प्रभाव पडेगा।

इस ग्रहण का स्वामी यम होने से प्राकृतिक प्रकोप एवं दुर्घटनाओं से जन-धन की भीषण हानि का योग बन रहा है। ग्रहण के अग्निमण्डलमें होने से अग्निकाण्ड, आतंकवाद, युद्ध, महामारी की विभीषिका संभव है। कृषि उत्पादन भी प्रभावित होगा।

तन्त्रशास्त्रमें ग्रहण के दृश्यकाल अर्थात् दिखाई देने की अवधि को साधना का सर्वोत्तम पर्वकाल माना गया है। इसमें किया गया जप-तप-होम अनन्त गुना हो जाता है। अतएव ग्रहणकालमें मन्त्र बिना सर्वाग पुरश्चरण के, केवल निरन्तर जप मात्र से ही सिद्ध हो जाता है, किन्तु जप मानसिक रूप से ही करें। साधकों के लिए ग्रहण सिद्धि प्राप्त करने का अति संक्षिप्त पथ (शार्ट कट) ही है। इस चन्द्रग्रहण का पर्वकाल गुरुवार को रात 11.35बजे स्पर्श से 1.08बजे मोक्ष तक रहेगा। इसकी कुल अवधि 1घंटा 33मिनट होगी। आस्तिकजनग्रहण के स्पर्श के समय और मोक्ष के बाद स्नान करते हैं। ग्रहण की समाप्ति पर दान देने से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है। इससे यह स्पष्ट है कि भारतीय जनमानस के लिए ग्रहण मात्र एक खगोलीयघटना ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक साधना का महापर्वहै।