21 जनवरी 2010

युद्ध के देवी-देवता

भारत में पूजा-पाठ में एक चीज का बहुत ज्यादा महत्व हैं और वह है फूल। यूँ तो आम तौर पर पूजा में गेंदा, अडहुल गुलाब जैसे फूलों का प्रचलन अधिक है, पर ख़ास मौकों पर ख़ास फूलों की आवश्यकता होती है। देवी-देवताओं को भी ख़ास फूल चढाए जाते हैं। अपराजिता भी एक ऐसा फूल है। जिसकी काफी महत्ता है। भारत में यह फूल दो रंगों में पाया जाता है।
यह देवी दुर्गा का भी अतिप्रिय फूल है। इस फूल को लोकणिका, गिरिकणिका व मोहनाशिनी भी कहा जाता है।
दुर्गा पूजा के अवसर पर इस फूल पर बड़ी महत्ता है। देवी दुर्गा के नौ रूपों के प्रतीक के स्वरुप नवपत्रिका की पूजा की जाती है। इस नवपत्रिका को सफ़ेद अपराजिता की लता से बंधा जाता है। दुर्गा पूजा के दौरान अपराजिता का फूल देवी को अर्पित किया जाता है। इसके अलावा भगवान् शिव को भी यह फूल अर्पित लिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि शिवरात्री के दौरान इस फूल को भोलेनाथ पर चढाने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है। भगवान् शंकर का वर्ण भी नीला होता है और अपराजिता का भी।
लोग इस फूल कि लता को अपने घरों में लगातें हैं। लगभग सभी बंगलाभाषी परिवारों में इस फूल की लताएं जरुर मिल जाती है। यह फूल जाड़े के समय ठीक दुर्गा पूजा के आसपास काफी संख्या में फूलता है। इसकी लताएं फूलों से भर जाती है। आम दिनों में भी इसके फूल को देवी- देवताओं को चढाया। यह फूल औषधीय गुणों से भी भरपूर है। आयुर्वेद में इसका काफी उपयोग होता है चरक संहिता में कहा गया है कि अपराजिता का फूल नजला और आँख की बीमारियों में फायदेमंद है। इस फूल को देवी दुर्गा और शिव के अलावा अन्य देवताओं को अर्पित किया जाता।