28 दिसंबर 2009

हिसाब-किताब की आदत डालें

तमिलनाडु के सेलम शहर में स्थित विनायक विद्यालय के एक योग टीचर महज छ्ह महीने में अपने तमाम छात्रों की पाकेटमनी की राशि लिखने के लिए कहा। इसके बाद उनहोंने छात्रों से पाकेटमनी में से खर्च किये गए एक-एक पैसे का हिसाब लिखने के लिए कहा। हालांकि उन्होंने बच्चों से कभी यह नहीं कहा की उन्हें किस आइटम पर खर्च करना चाहिए। हरेक छात्र ने दो महीने तक खर्चे का पूरा हिसाब-किताब रखा। दो महीने बाद वे अपने साठ दिनों का ब्यौरा लेकर अपने शिक्षक के सामने आये। सभी छात्रों ने अलग-अलग आइटम्स पर अपने सारे पैसे खर्च कर दिए थे। कुछ छात्रों ने चाकलेट्स पर खर्च किया तो किसी ने बिस्किट, स्नैक्स ,कोल्ड ड्रिंक्स और फिल्मों इत्यादि पर। जहां उनकी 80 फीसदी पाकेटमनी फिल्मों पर खर्च होती थी, वहीँ कुछ छात्रों ने 75 फीसदी तक चाकलेट्स पर खर्च किया था। कुछ ओवर स्मार्ट छात्रों ने जंक फ़ूड पर ज्यादा खर्च किया था, जिसके बगैर वे शायद रह नहीं सकते थे। उन्होंने इसकी गणना कर खर्चे के प्रत्येक चार्ट का पीओपी और एमओएम एनेलिसिस किया।
मैनेजमेंट की भाषा में उत्पाद-दर-उत्पाद विश्लेषण को पीओपी एनेलिसिस और महीने-दर-महीने विश्लेषण को एमओएम एनेलिसिस कहा जाता है। गणपति ने हर चार्ट का पीओपी और एमओएम एनेलिसिस करते हुए छात्रों को बताया कि वे हरेक आइटम पर हर महीने कितना ज्यादा खर्च कर रहे हैं। गणपति ने उन्हें यह भी बताया की साल भर में उन आइटम्स पर उनका अनुमानित खर्चा कितना हो सकता है।
छात्रों को सच का सामना करवाने वाली यह तकनीक बेहद आशार्यजनक लगी और अचानक उन्हें समझ में आ गया कि अब तक उनका पैसा कहाँ जा रहा था।
अगले दो महीनों में उन्होंने अनावश्यक मदों पर अपना खर्च बचाया और उनमें से कुछ छात्रों ने तो महीने के अंत में बचा पैसा अपने पितो को वापस सौंप भी दिया। गणपति ने खुश होते हुए बताया की कुछ छात्रों ने चार महीने के बाद बचे पैसे से साइकिल खरीद ली और अब उनमें पैसे के इस्तेमाल को लेकर एक अनुशासन आ गया है।


फंडा यह है कि.......

मैनेजमेंट की भाषा में कहें तो अपने द्वारा किये गए हर काम का लगातार पीओपी और एमओएम विश्लेषण करते रहे। सामने आंकड़े होने पर आपमें काफी सुधार हो सकता है।