09 दिसंबर 2009

रास्ते का पत्थर


एक बार यूनान के महान दार्शनिक संत डायोजिनस एक सड़क के किनारे बैठे थे। सड़क के बीच में एक बड़ा पत्थर पड़ा हुआ था। अनेक राहगीर सड़क पर आते और पत्थर को देखकर दूसरे मार्ग से निकल जाते। जो यात्री अपनी ही धुन में चल रहे होते वह पत्थर से टकरा कर अपनी चोट सहलाते हुए आगे बढ़ जाते।
कुछ देर बाद अपनी रौ में चलता एक नवयुवक तेजी से उस तरफ आया और पत्थर से टकरा कर चीखता हुआ गिर पड़ा। अगले ही क्षण वह किसी तरह संभल कर उठा और उठते ही मार्ग में पत्थर डालने वाले व्यक्ति को कोसने लगा। यह देख कर संत डायोजिनस जोर से हंस पड़े। संत डायोजिनस को हंसते देख युवक गुस्से से बोला, 'मुझे चोट लग गई और आपको हंसी सूझ रही है।'
युवक की इस बात पर संत गंभीर होते हुए बोले, 'मैं तुम्हारे गिरने पर नहीं हंसा। तुम्हारी चोट के लिए तो मैं हृदय से दु:खी हूं किंतु हंसी मुझे तुम्हारी बुद्धि पर आ रही है।' युवक ने पूछा, 'वह कैसे?' संत बोले, 'मैं जब से यहां बैठा हूं तब से अनेक राहगीर इस मार्ग से गुजरे। कुछ इस पत्थर से टकराए और कुछ बच कर निकल गए। लेकिन किसी ने भी इस पत्थर को हटाने का साहस नहीं किया। तुम तो उन से भी दो कदम आगे निकले। चोट खाकर भी पत्थर हटाने की बजाय पत्थर रखने वाले को कोसते रहे पर तुम्हारी बुद्धि में यह बात नहीं आई कि उस पत्थर को मार्ग से हटा दिया जाए। अरे भलेमानस, पत्थर से तो ठोकर लगती ही है किंतु यदि जरा सी इंसानियत व समझदारी से उस पत्थर को हटा दिया जाए तो मार्ग अत्यंत सुगम हो जाता है।' यह सुनकर वह युवक लज्जित हो गया और फिर उसने संत डायोजिनस के साथ मिलकर उस पत्थर को रास्ते से हटा दिया और उनके प्रति श्रद्धा से नतमस्तक होकर आगे बढ़ गया ।