17 दिसंबर 2009

शनि की साढ़े साती से जुड़े भ्रम

ज्योतिष विज्ञान. ज्योतिष शास्त्र में शनि की साढ़े साती को लेकर बहुत कुछ लिखा गया है। हर मनुष्य के जीवनकाल में कुछ समय तनाव आ सकता है पर आम ज्योतिषी हर छोटी-बड़ी समस्या को शनि और शनि की साढ़े साती से जोड़ देते हैं, जो बिलकुल गलत है। ज्योतिष एक संपूर्ण विज्ञान है। पूरी धरती 360 कोणों में विभाजित है। कुंडली की 12 राशियां होने से हर राशि 30 कोण की होती है। 9 ग्रहों में से शनि सबसे मंदगति का ग्रह है। यह एक राशि में ढाई साल रहता है। दूसरे शब्दों में शनि को 30 अंश चलने के लिए 30 माह लगते हैं यानी एक माह में एक अंश। इस हिसाब से शनि की औसत गति दो मिनट प्रतिदिन होती है।

तारामंडल की गति के अनुसार शनि वक्री और मार्गी होता रहता है, जिसके कारण कभी-कभी ये गति बढ़कर 4-5 या 6 मिनट की हो जाती है। घर के हिसाब से लगभग ढाई वर्ष या 30 माह में शनि एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है। इसी कारण शनि का ढैया बोला जाता है।

चंद्र सबसे तेज गति का ग्रह है। शनि अगर ढाई वर्ष में राशि परिवर्तन करता है तो चंद्र ढाई दिन में। शनि का 12 राशि का एक चक्र 30 साल में पूरा होता है तो चंद्र का तीस दिन में। पृथ्वी का सबसे सशक्त ग्रह सूर्य है। 24 घंटे के दिन और रात होने में लगभग 6 से 8 घंटे हमें सूर्य का प्रकाश नहीं मिलता। यदि हम पूरे भूमंडल के इन आठ घंटों को प्रकाशमान करने के लिए खर्च का विश्लेषण करें तो यह अरबों-खरबों रुपए होता है। क्या कोई व्यक्ति सूर्य के प्रकाश के बिना इस धरती की कल्पना कर सकता है। करोड़ों किमी दूर होने पर भी सूर्य का प्रकाश लगभग साढ़े सात मिनट में धरती पर पहुंच जाता है।

वैज्ञानिक गणना के अनुसार प्रकाश की गति सबसे ज्यादा है। ज्योतिषीय गणना और तारामंडल के गणित के अनुसार सूर्य के प्रभाव क्षेत्र में जो भी ग्रह आता है वह अस्त हो जाता है। यह प्रभाव क्षेत्र सूर्य के 15 अंश पर होता है। इसका विश्लेषण इस तरह करें कि यदि सूर्य 20 अंश का है तो उस राशि में जो भी ग्रह 5 अंश से ज्यादा का होगा वह अस्त होगा और उसकी अगली राशि में भी 5 अंश तक चलेगा। यानी 15 अंश पहले व 15 अंश बाद। इस तरह शनि तो सूर्य से कहीं कम प्रभावक्षेत्र वाला ग्रह है।

हालांकि शनि को सूर्यपुत्र माना गया है। ऐसा मान ले कि चंद्र कुंडली के पहले भाव में 20 अंश का है। इस हिसाब से यदि शनि 12 वें घर में प्रवेश करता है तो उसे 30 अंश चलना होगा और पहले घर में 20 अंश चलने के पश्चात उसका संपर्क चंद्र से होगा। 12 घर के 30 अंश व पहले घर के 20 अंश जोड़ने पर ये 50 अंश हो जाते हैं। इस तरह शनि चंद्रमा से 50 अंश दूर है। ज्योतिषी जैसे ही शनि 12वें घर में आया शनि की साढ़े साती के पहले ढैये का बखान शुरू कर देते हैं। इस प्रकार यह पूर्णत: मिथ्या व भ्रामक है कि चंद्र स्थापित होने वाले घर से एक घर पहले शनि आने पर साढ़े साती का ढैया लागू हो जाता है और यह स्थिति चंद्र के बाद वाले घर पर भी लागू होता है।

वास्तविकता यह है कि चंद्र और शनि जब साथ आते हैं तो ये ज्योतिष में विष योग कहलाता है। इसमें मानसिक तनाव और कुछ काम बिगड़ते हैं, तो हर किस्म की रुकावट आती है। यह स्थिति ज्यादा से ज्यादा 30 माह तक रह सकती है। इस तरह हर समस्या को साढ़े साती से जोड़ देना अनावश्यक है। इसका कोई वैज्ञानिक आधार भी नहीं है। यदि कोई व्यक्ति अपने चरित्र को ठीक रखता है, मांस, शराब, तंबाकू आदि का सेवन नहीं करता है। गरीब और गिरे-पड़े लोगों को उठाता है, आंखों की दवाई बांटता है तो निश्चित ही उसे कभी भी किसी भी रूप में बुरे फल नहीं मिलते हैं।

कुंडली में जब भी चंद्र पर शनि की दृष्टि हो या गोचर या जन्म स्थान पर चंद्र शनि इकट्ठे हों यानी चंद्र शनि से या शनि चंद्र से 15 अंश से कम दूर हो तो ये योग विष योग के साथ नीच केतु का फल देगा। कुंडली का विश्लेषण करते समय यह देखें कि इसमें ज्यादा बुरे फल कौन सा ग्रह दे रहा है। जो ज्यादा बुरे फल दे रहा हो उसे कुंडली के उस घर से हटा दें या कमजोर कर दें तो चंद्र शनि की युति होते हुए भी विष योग के फल नहीं मिलेंगे।

जैसे कि एक चांदी की कटोरी में पानी भरकर किसी लोहे की अलमारी या संदूक में रख दें और पानी को कम नहीं होने दे। जितना पानी सूखे उतना और भर दें। यह तब तक करें जब तक चंद्र शनि की युति है। यदि ये जन्मस्थ युति है तो इसे (चांदी की कटोरी में पानी) हमेशा रखा रहने दें। जितना तनाव होगा उतना पानी ज्यादा सूखेगा। यदि तनाव नहीं होगा तो पानी नहीं सूखेगा। तनाव कम होगा तो पानी कम सूखेगा। मगर पानी कम नहीं होने दें। जितना सूखे उतना भरते जाएं तो आप समस्या को जीत लेंगे और यदि पानी सूख जाए तो समस्या आपको जीत लेगी।